‘गरमी का कष्ट न हो’; इसके लिए निम्न सावधानियां बरतें !

‘आजकल गर्मी का मौसम चल रहा है । इस काल में ‘शरीर का तापमान बढ जाना, पसीना छूटना, शक्ति न्यून होना, थकान होना’ इत्यादि कष्ट होते हैं । तापमान बढने से व्यक्ति मूर्च्छित होकर (लू लग जाने से) मृत्यु होने के भी कुछ उदाहरण हैं । गर्मियों में होनेवाली विभिन्न बीमारियों से दूर रहने हेतु सभी को निम्न बातों का ध्यान रखना आवश्यक है –

१. दिनभर में आवश्यक पानी अथवा तत्सम पेय पीएं । घने रंग का मूत्र होता हो, तो ‘अधिक पानी पीना चाहिए’, इसे ध्यान में लें । पानी पीने हेतु प्यास लगने की प्रतीक्षा न करें । फ्रीज का पानी पीना टालें । सवेरे घर से बाहर निकलने से पूर्व एक गिलास पानी पीएं । बाहर जाते समय अपने साथ पानी की बोतल रखें ।

२. एक ही समय में गटगट बहुत पानी न पीकर धीरे-धीरे एक-एक घूंट पीएं । धूप से घर में आने के तुरंत उपरांत पानी न पीकर ५ से १० मिनट शांति से बैठकर उसके पश्चात पानी पीएं ।

३. चीनीमिश्रित पेय पी सकते हैं; परंतु अधिक चीनीयुक्त पेय पाचन के लिए भारी होने से यथासंभव न पीएं । संभव हो, तो प्रतिदिन के आहार में छाछ अथवा आम पन्ना का समावेश हो । मटकी के ठंडे पानी से बनाए गए शर्बत, खस, हरसिंगार इत्यादि सुगंधित द्रव्यमिश्रित मटकी का ठंडा पानी पीएं ।

४. बाहर के खाद्यपदार्थ खाना टालें । कसैले, तीखे, कडवे तथा अतिखट्टे पदार्थों का अतिसेवन न करें ।

५. ढीले, फीके रंग के तथा वजन में हल्के (संभव हो, तो सूती) वस्त्रों का उपयोग करें ।

वैद्या (कु.) शर्वरी बाकरे

६. धूप में घर में अथवा छायावाले स्थान पर रुकें ।

७. संभवतः सवेरे १० से दोपहर ४ की अवधि में घर से बाहर न निकलें । ‘धूप की आंच न लगे’, इसके लिए बाहर निकलते समय बाहर जाते समय ‘गॉगल’ लगाएं । छाता अथवा ‘सिर पर सभी ओर से छांव आए’, इस प्रकार की टोपी (‘हैट’) का उपयोग करें । टोपी उपलब्ध न हो, तो सिर एवं कान पर श्वेत रूमाल बांधें ।

८. कुछ साधकों को अध्यात्मप्रसार की सेवा अथवा अन्य कारणवश बाहर जाना पडता है अथवा यात्रा करनी पडती है । ‘गर्मी से कष्ट न हो’, इसके लिए पुरुष अपनी जेब में तथा महिलाएं उनके पर्स में प्याज रखें । प्याज शरीर की गर्मी को खींच लेता है; इसलिए ३ – ४ दिन पश्चात वह सूख जाता है । उस सूखे प्याज को फेंककर अपने साथ नया प्याज रखें ।

९. वातावरण में ठंडक बने रहने हेतु कूलर की (वायु प्रशीतक यंत्र की) सुविधा हो, तो दिन के कुछ घंटे उसका उपयोग करें ।

१०. जागरण करने से शरीर में पित्त एवं वात दोष बढते हैं । इसलिए अतिजागरण टालें । (सभी ऋतुओं में ये सावधानियां बरतनी आवश्यक है ।)

११. इन दिनों में अधिक पसीना छूटने से थकान भी शीघ्र होती है । उसके कारण व्यायाम अल्प करें ।

१२. उपरोक्त सूत्रों के आधार पर १ वर्ष से अधिक छोटे बच्चे, साथ ही ६५ वर्ष से अधिक आयु के व्यक्तियों का विशेष ध्यान रखना आवश्यक है ।’

– वैद्या (कु.) शर्वरी बाकरे, सनातन आश्रम, रामनाथी, गोवा.

(१.३.२०२४)