कुछ दिन पहले भारतीय प्रतिष्ठानों के ४ प्रसिद्ध मसालों पर सिंगापुर और हाँगकाँग ने भी ऐसा आरोप किया था !
नई देहली – भारतीय प्रतिष्ठानों के ४ मसालों में कैंसर निर्माण करनेवाला रसायन है, ऐसा आरोप सिंगापुर और हांगकांग द्वारा होने के उपरांत अब यूरोपीयन युनियन द्वारा भी वैसा ही आरोप किया गया है । ‘यूरोपीयन फूड सेफ्टी एथॉरिटी’ ने की जांच के समय ५२७ भारतीय उत्पादों में ‘इथिलीन ऑक्साईड’ नामक पदार्थ बार-बार पाया गया है और वह कैंसर के लिए कारणभूत है, ऐसा दावा इस संस्था द्वारा किया गया है ।
‘यूरोपीय संस्था ने इस रसायन का उपयोग रोकने के लिए कोई उपाय नहीं किया है’, ऐसा भी इस संस्था ने बताया है । एक अंग्रेजी समाचारपत्रिका के ब्योरे के अनुसार बताया जा रहा है कि, यूरोपीयन युनियन के अन्न सुरक्षा अधिकारियों को सितंबर २०२० से अप्रैल २०२४ तक यह घातक पदार्थ प्राप्त हुआ है । इन उत्पादों में अखरोट और तील, औषधियां, मसाले और अन्य खाद्यपदार्थ समाविष्ट हैं ।
क्या है, ‘इथिलीन ऑक्साईड’ ?
‘इथिलीन ऑक्साईड’, एक रंगीन वायु है, जो कीटनाशक के रूप में प्रयुक्त होता है । यह रसायन मूलतः चिकित्सकिय उपकरणों के किटाणु हनन के लिए बनाया गया था । कहा जाता है कि, ‘इथिलीन ऑक्साईड’ के संपर्क में आने से लिंफोमा और लेकिमिया के साथ अन्य कैंसरों का संकट बढ सकता है ।
Baseless claim by the #EuropeanUnion on 527 Indian food products causing #Cancer
Similar allegations made on 4 renowned Indian brands by #Singapore and #HongKong a few days back
The sudden spate of accusations can’t help but be seen as anti-India tactics.
If the 527 Indian… pic.twitter.com/K5VRv7q6t3
— Sanatan Prabhat (@SanatanPrabhat) April 25, 2024
कैंसरजन्य पदार्थ की मात्रा कितनी है ? इसे अवश्य देखा जाना चाहिए ! – प्रसिद्ध कैंसर शल्यचिकित्सक (सर्जन) डॉ. शेखर साळकर, मणिपाल चिकित्सालय, गोवा
इस संबंध में ‘सनातन प्रभात’ के प्रतिनिधि, प्रसिद्ध कैंसर शल्यचिकित्सक (सर्जन) तथा गोवा के मणिपाल चिकित्सालय के वरिष्ठ परामर्शदाता (सलाहकार) डॉ. शेखर साळकर की प्रतिक्रिया ली गई । इस समय डाॅ. साळकर ने कहा कि इन खाद्य पदार्थों में ‘एथिलीन ऑक्साइड’ की मात्रा कितनी है ? यह देखना चाहिए । यदि यह १ पी.पी.एम. है (१० लाख यूनिट में १ यूनिट) तो कोई हानि नहीं हो सकती । अपितु ‘प्रसंस्कृत’ (प्रोसेस्ड) अथवा डब्बा बंद (‘पैकेज्ड’) खाद्य पदार्थों में अधिक कैंसरकारी पदार्थ होते हैं । दूसरी ओर, अमेरिका में प्रति १ लाख लोगों में से ४०० लोगों को कैंसर होता है । भारत में यही संख्या केवल १०० है । हम सदैव खाना पकाकर ही खाते हैं । इसलिए भले ही मूल भोजन में कार्सिनोजेनिक सामग्री हो, खाना पकाने के दौरान भाप लगने से यह सामग्री बाहर आ जाती है ।
डॉ. साळकर ने आगे कहा कि मूल रूप से यदि भारतीय खाद्य पदार्थों पर इस तरह के आरोप लगाए जा रहे हैं, तो ‘भारतीय खाद्य सुरक्षा एवं मानक प्राधिकरण’ को इस पर ध्यान देना चाहिए एवं यदि ऐसा हो, तो उसे रोकने का प्रयास करना चाहिए । यदि वे ऐसा नहीं करते हैं, तो खाद्य पदार्थों की गुणवत्ता पर प्रतिकूल प्रभाव पडेगा । अंततोगत्वा ऐसे आरोपों से देश की छवि धूमिल होती है । डॉ. साळकर ने कहा, यदि इसके पीछे अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं का अपना वर्चस्व स्थापित करने का छिपा उद्देश्य (हिडेन एजेंडा) है, तो उन्हें यह भी याद रखना चाहिए कि इससे उन्हें हानि होने वाली है ।
संपादकीय भूमिकाअचानक इस प्रकार के आरोपों के लगने का कारण भारतविरोधी नीति को नकारा नहीं जा सकता । ५२७ भारतीय उत्पादों में कर्करोग के लिए कारणीभूत घटक होते, तो भारत में कर्क रोगियों की लंबी लाइनें लग गई होतीं । इसलिए, ‘भारतीय अन्न सुरक्षा और प्रमाणन संस्था’ की ओर से इन आरोपों का ठोस प्रत्युत्तर दिया जाना चाहिए ! |