१. मुजफ्फरपुर शहर का नाम बदलने हेतु प्रयास
मैं भारत एवं नेपाल के सीमावर्ती क्षेत्र के ‘मिथिलांचल’ से आया हूं । यह सीतामाता की जन्मभूमि है, इस पर मुझे गर्व है; परंतु इस जिले का नाम पूछा जाए, तो दुर्भाग्यवश मुझे ‘मुजफ्फरपुर’ बताना पडता है, इसका मुझे बहुत बुरा लगता है; क्योंकि यह नाम एक विदेशी आक्रांता के नाम पर आधारित है । छात्रावस्था में मैं अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद का कार्यकर्ता था, तब से ‘मुजफ्फरपुर’ नाम मुझे अच्छा नहीं लगता था । वर्ष १९८० में मैंने मेरे मित्रों से कहा, ‘हमारे शहर का नाम परिवर्तित किया जाना चाहिए ।’ उसमें कुछ मित्र अन्य संगठन से भी थे । एक दिन हमने एकत्रित बैठकर सुनिश्चित किया कि ‘अब से हम ‘मुजफ्फरपुर’ नाम नहीं लेंगे ।’
२. क्रांतिकारी खुदीराम बोस एवं प्रफुल्ल चंद चाकी के कारण मुजफ्फरपुर की इतिहास में बनी पहचान !
मुजफ्फर खां नामक अकबर का एक तहसीलदार था । वहां उसके नाम से एक गांव था । वह वहां राजस्व एकत्रित करने का काम करता था । उसने गांव के मूल नाम में परिवर्तन कर उस गांव को अपना नाम दिया । इसलिए हमने इस गांव को ‘मोदफलपुर’ बोलना सुनिश्चित किया । मुजफ्फरपुर अनेक बातों के लिए विख्यात है । वर्ष १८५७ में किसी कारणवश स्वतंत्रता संग्राम सुप्तावस्था में था । उसके लंबे समय उपरांत ऐसा लगने लगा कि अब भारत के लोग स्वतंत्रता हेतु कोई भी संघर्ष नहीं करेंगे । ऐसे में मुजफ्फरपुर की मिट्टी में ‘खुदीराम बोस’ एवं ‘प्रफुल्ल चंद चाकी’ नामक दो युवक संघर्ष के लिए उठकर खडे हुए । उन्होंने स्वतंत्रता हेतु बलिदान दिया । इससे मुजफ्फरपुर की सर्वत्र पहचान बनी ।
३. मुजफ्फरपुर का नामकरण ‘मोदफलपुर’ !
दूसरी बात यह कि मुजफ्फरपुर की ‘शाही लीची’ की संपूर्ण विश्व में पहचान है । उसके कारण मुजफ्फरपुर को ‘स्वीट सिटी’ भी कहा जाता है । इस प्रकार वर्ष १९८० से १९८२ के समय समविचारी संगठनों को संगठित कर एकत्रित विचारमंथन करना आरंभ हुआ । हमने २०-२५ लोगों की एक समन्वय समिति गठित की थी, जो ४०-४५ वर्षाें से कार्य कर रही है । मुजफ्फरपुर का नाम परिवर्तित करने के पीछे तर्क यह है कि मुजफ्फरपुर की ‘लीची’ मोदक अथवा लड्डू की भांति दिखाई देती है; इसलिए उसका नाम ‘मोदफल’ होना चाहिए तथा उस पर आधारित शहर का नाम ‘मोदफलपुर’ किया गया । इसके लिए स्थानीय प्रशासन से अनेक बार मांग की; परंतु प्रशासन ने अब तक हमारी मांग पूरी नहीं की है । हमने आर्य समाज मंदिर में विधिवत यज्ञ हवन कर मुजफ्फरपुर का नामकरण ‘मोदफलपुर’ किया है ।
४. पशुवधगृह बंदी हेतु प्रयास
हम विभिन्न संगठनों से समन्वय रखकर कार्य करते हैं । विभिन्न उद्देश्यों के लिए कार्य कर रहे हैं । मुजफ्फरपुर की जनसंख्या लगभग ५ लाख है, जिसमें ५० सहस्र मुसलमान हैं । शहर में उनके द्वारा लगभग १५० पशुवधगृह चलाए जा रहे थे । उन्हें बंद करने के लिए हमने बहुत प्रयास किए । इस विषय में हमने केंद्र सरकार की ‘क्रुएलिटी प्रिवेंशन सोसाइटी’ को लिखित रूप में सूचित किया । तब उन्होंने भी पहल कर एक महिला को कार्यकारी अधिकारी के रूप में भेजा । उन्होंने जब इस पर कार्यवाही करने के लिए पुलिसकर्मियों को हमारे साथ जाने के लिए कहा, तब पुलिस बिल्कुल तैयार नहीं थी । हमने उन्हें बताया कि जिस क्षेत्र में सर्वाधिक पशुहत्याएं होती हैं तथा मांस को सीलबंद कर भेजा जाता है, वहां वे छापामारी करें; परंतु उन्होंने हमारी बात नहीं सुनी । स्थानीय पुलिस कहती थी, ‘हम दिन में नहीं, अपितु रात में छापामारी करेंगे । रात में वहां इतना भीषण सन्नाटा होता था कि गायों पर तलवार चलानेवाले वे लोग कदाचित हमारे ही प्राण हर लेंगे, ऐसा लगता था; इसलिए पुलिसकर्मी उन्हें हाथ लगाने का साहस नहीं करते थे । अपितु पुलिस को उनसे प्रति सप्ताह पैसों का बडा लिफाफा (घूस) मिलता था; परंतु इस स्थिति में भी हमें सफलता मिली ।
पशुवधगृह से ६-७ किलोमीटर की दूरी पर औद्योगिक क्षेत्र है । वहां कुछ लोगों ने अन्नप्रक्रिया की अनुमति ले रखी थी । उसी स्थान पर गोमांस सीलबंद कर देश-विदेश में भेजा जाता था । केंद्र सरकार की सहायता मिलने पर हम वहां छापामारी कर पाए । उस छापामारी में एक रात में ५०० टन गोमांस मिला । उस क्षेत्र में कुल १५० पशुवधगृह थे, वे सभी बंद हुए । दुर्भाग्यवश सामान्य लोग इस संबंध में सहायता के लिए आगे नहीं आते; इसलिए इसमें हमें स्वयं ही आगे आना पडता हैै ।
कालांतर में ये पशुवधगृह पुनः खुलने लगे । एक ओर हम उन्हें बंद कर रहे थे, तो दूसरी ओर उन्हें खोला जा रहा था । अनेक बार गोवंश की तस्करी होती है, जिसमें हमें भी अभियोग का सामना करना पडता है । हम पर डाका डालने का अभियोग पंजीकृत किया जाता है । जब भी हम कुछ करते हैं, तब हम पर गंभीर धाराएं लगाई जाती हैं । इस प्रकार हमारी ‘समन्वय समिति’ में हिन्दू जनजागृति समिति सहित १४-१५ संगठन हैं ।
५. धर्मांतरित हिन्दुओं की घरवापसी करवाना
पिछले ४ दशकों से हमारी समन्वय समिति धर्मांतरित हिन्दुओं की घरवापसी (शुद्धीकरण) करने का कार्य कर रही है । केवल मुजफ्फरपुर अथवा मोदफलपुर जिले में ही नहीं, अपितु आसपास के जिलों में भी हमारे इस कार्य को बडे स्तर पर लोकप्रियता प्राप्त हुई है । हम लोगों का शुद्धीकरण कर उनकी घरवापसी कराते हैं, साथ ही उन्हें आश्रय, सुरक्षा देकर व्यवसाय करने हेतु उनकी सहायता करते हैं तथा उन्हें नौकरियां भी दिलवाते हैं । इसके कारण ‘सीतामढी’ एवं ‘शिवहर’ इत्यादि सीमावर्ती जिलों से भी शुद्धीकरण करने हेतु हमसे संपर्क किया जाता है ।
६. झोपडपट्टी में मूलभूत सुविधाएं उपलब्ध कराना
मुजफ्फरपुर में श्रावणी मेला लगता है । इस मेले में प्रतिवर्ष हम शिविर आयोजित करते हैं । सामान्यतः हमारे २०० कार्यकर्ता लोगों को हमारी समन्वय समिति के विषय में बताते हैं । बिहार की सबसे बडी झोपडपट्टी मोदफलपुर शहर से २ किलोमीटर की दूरी पर स्थित है । हमारी समन्वय समिति ने इस झोपडपट्टी को गोद लिया है । पहले इस बस्ती में विद्यालय नहीं थे, साथ ही वहां किसी प्रकार की स्वास्थ्य सुविधाएं, सडकें तथा जल की व्यवस्था नहीं थी । जब बिहार को ‘जंगलराज’ कहा जाता था, उस काल में हमने यहां ये सुविधाएं उपलब्ध करवाई ।
७. राष्ट्रवादी साहित्यकारों को मंच उपलब्ध करवाना
बौद्धिक जगत में वामपंथियों का आतंक एवं वर्चस्व है, इसके अंतर्गत मोदफलपुर में बिहार के वामपंथियों का संगठन है । उनके वर्चस्व के कारण जो साहित्यकार उनके मंच की सदस्यता नहीं लेते, उनके साहित्य को मंच उपलब्ध नहीं करवाया जाता तथा इससे उन्हें प्रोत्साहन नहीं मिलता ।
इसलिए हमने हिन्दी के राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर के नाम से ‘राष्ट्रकवि दिनकर अकादमी’ की स्थापना की । वहां विगत २० वर्षाें से कवि सम्मेलन आयोजित किया जा रहा है । वर्ष २००८ में जब कवि दिनकर की जन्मशताब्दी थी, उस समय हमने ‘राष्ट्रकवि दिनकर अकादमी’ की स्थापना की । वर्तमान में हम प्रतिवर्ष ‘तिरहोत्साही महोत्सव लिटरेचर फेस्टिवल’ के नाम से ७ भाषाओं में तीन दिवसीय कार्यक्रम आयोजित करते हैं । जो नए कवि काव्यवाचन करते हैं, उन्हें हम इस कार्यक्रम के माध्यम से मंच उपलब्ध करवाते हैं । जो हिन्दू उनके नाम के साथ उर्दू उपनाम लगाते हैं, उन्हें हम हमारे मंच पर आमंत्रित नहीं करते, उदा. मनोज मुंतशिर है तथा हमारे शहर के प्रसिद्ध कवि प्रल्हाद नारायण खन्ना ने भी उनका नाम ‘खन्ना मुजफ्फरपुरी’ किया था; लोगों ने उनका बहिष्कार किया । हम राष्ट्रवादी विचारधारा के साहित्यकारों को प्रोत्साहन देते हैं, साथ ही उनके द्वारा संकलित साहित्य को प्रसिद्धि देते हैं ।
८. पंडित धीरेंद्रकृष्ण शास्त्री के कार्यक्रम के आयोजन में सहायता
पाटलीपुत्र (पटना) में बागेश्वर धाम के स्वामी धीरेंद्रकृष्ण शास्त्री के प्रवचन का आयोजन किया गया था । पाटलीपुत्र प्रशासन ने उन्हें कार्यक्रम के लिए स्थल उपलब्ध नहीं करवाया; इसलिए वहां के हिन्दू समाज ने यह कार्यक्रम संपन्न कराने का संकल्प लिया । नौबतपुर के तरेत पाली मठ ने उनकी भूमि प्रवचन के लिए उपलब्ध करवाई । गांव के अन्य किसानों ने उनके खेत खाली करने की तैयारी दर्शाई । वास्तव में देखा जाए, तो उस समय खेतों में गेहूं की फसल अंतिम अवस्था में थी, जबकि मक्के की फसल अभी हरी-भरी थी; परंतु ऐसा होते हुए भी किसानों ने उनकी डेढ सहस्र एकड भूमि पर खडी हरी फसल काटकर भूमि तैयार की । वहां संपूर्ण देश से प्रतिदिन १ लाख लोग आते थे । अंत में वहां इतनी भीड उमडने लगी कि भक्तों के टिकट निरस्त कर उन्हें घर पर ही दूरदर्शन पर प्रवचन का लाभ उठाने का अनुरोध करना पडा । इस आयोजन में हमारी ‘समन्वय समिति’ सम्मिलित थी । इस समिति में हमने अन्य कुछ समितियों को जोड लिया । हम बिहारियों ने १ करोड रुपए तथा तत्सम मूल्यवान सामग्री एकत्रित कर प्रवचन का सफल प्रबंधन कर दिखाया । समाचार वाहिनियों के लोगों ने हमसे यह पूछा, ‘आप लोग यह सब किसलिए कर रहे हैं ?; क्योंकि यह कार्य देखकर मानो सरकार ही यह कार्य कर रही है, ऐसा लगता है ।’ उस पर हमने कहा, ‘हम संपूर्ण हिन्दू हैं, जबकि सरकारी लोग आधे-अधूरे हिन्दू हैं ।’
– आचार्य चंद्रकिशोर पराशर, संयोजक, भारतीय सांस्कृतिक संगठन समिति, बिहार
आचार्य चंद्रकिशोर पराशर का परिचयबिहार के आचार्य चंद्रकिशोर पराशर ‘अंतरराष्ट्रीय सनातन हिन्दू वाहिनी’ के संस्थापक हैं । इस संगठन के माध्यम से वे हिन्दूसंगठन तथा हिन्दू धर्म पर हो रहे आघात रोकने का कार्य करते हैं । मुजफ्फरपुर में उन्होंने सभी हिन्दुओं के संगठन हेतु ‘भारतीय सांस्कृतिक संगठन समिति’ के नाम से एक समन्वय समिति आरंभ की । वे प्रतिमाह बैठक कर कार्य की दिशा सुनिश्चित करते हैं, उदा. अवैध पशुवधगृह बंद करना; कॉन्वेंट विद्यालयों में हिन्दुओं के त्योहार-उत्सवों को जो विरोध किया जाता है, उसके विरुद्ध संवैधानिक पद्धति से आंदोलन करना इत्यादि कार्य वे करते हैं । |