रामायण धारावाहिक का प्रभाव तथा प्रभु श्रीराम के दैवीय अस्तित्व की साक्षात्कारी घटनाएं !

दूरदर्शन पर प्रसारित धारावाहिक ‘रामायण’ से सभी भारतीय  सुपरिचित हैं । इस धारावाहिक के कारण वास्तव में रामायण घर-घर पहुंचा । यह धारावाहिक बनाना चुनौतीपूर्ण कार्य था । उस समय की सीमित प्रौद्योगिकी तथा भव्य मंच खडा करना तथा उसमें काम करनेवाले व्यक्तिरेखाओं से भावपूर्ण अभिनय करवाना बहुत ही कठिन था । इस बडे धारावाहिक के चित्रीकरण से संबंधित कुछ बातें बहुत ही विशेषतापूर्ण हैं ।

रामायण मालिका मे प्रसंग समझाते हुए रामानंद सागर

१. काकभुशुंडि ऋषि के चित्रीकरण के समय प्रत्यक्ष कौवा आना

रामायण की कथा का एक प्रसंग है काकभुशुंडि ऋषि तथा श्रीराम के बालक रूप में भेंट का ! रामायण धारावाहिक के निर्माता स्वर्गीय रामानंद सागर तथा उनके भाई को इस प्रसंग के चित्रीकरण की चिंता थी । उस समय गुजरात में इस धारावाहिक का चित्रीकरण चलता था । श्रीराम के बालरूप हेतु एक शिशु को लाया गया था तथा उसके साथ खेलने के लिए कौए की आवश्यकता थी । रामानंद सागर को ऐसा लग रहा था कि इसके लिए अलग से कुछ योजना बनाने की अपेक्षा यहां प्रत्यक्ष रूप से कौआ ही आ जाए, तो बहुत अच्छा होगा । उन्हें उस परिसर में एक वृक्ष पर बैठे कौए की आवाज सुनाई दी ।

रामायण धारावाहिक के काकभुशुंडि ऋषि के चित्रीकरण के समय का प्रसंग

उन्होंने तुरंत ही उस वृक्ष के पास जाकर कौए से प्रार्थना की, ‘चित्रीकरण के लिए कृपया आप रामरूपी बालक के पास आएं ।’ रामानंद सागर की यह प्रार्थना सुनकर कौआ तुरंत ही रामरूपी बालक के पास आया । कौआ उसके पास आने पर रामरूपी बालक उसके साथ खेलने लगा, उसे सहलाने लगा, बच्चे को खाने के लिए दी गई मिठाई, वह बालक कौए को देने लगा । बालक कौए को वहां से खदेड रहा था; परंतु तब भी कौआ पुनः बालक के पास आकर बैठता था । ऐसा लगभग १० मिनट तक चल रहा था । रामानंद सागर ने छायाचित्रकार से इस संपूर्ण प्रसंग का चित्रीकरण करने के लिए कहा था । उस समय उपस्थित सभी कलाकारों तथा चित्रीकरण संघ के सदस्यों को यह अनुभूति हुई ।

२. स्व. रामानंद सागर को प्राप्त आशीर्वाद

रामानंद सागर उनकी युवावस्था में एक बार क्षयरोग से ग्रस्त थे । उस समय क्षयरोग का उपचार करनेवाली औषधियां नहीं थी । क्षयरोग के रोगियों को अलग चिकित्सालय में रखा जाता था । ऐसे चिकित्सालयों में क्षयग्रस्त रोगी भर्ती होते थे; परंतु जीवित स्थिति में घर नहीं लौटते थे । इसी स्थान पर एक बार एक साधु आए तथा उन्होंने बीमार रामानंद सागर को कहा, ‘आपको कुछ नहीं होगा । आप के द्वारा रामायण से संबंधित कथा की निर्मिति होगी ।’ उसके अनुसार सचमुच ही रामानंद सागर स्वस्थ हो गए तथा आगे जाकर महान धारावाहिक ‘रामायण’ की निर्मिति कर उसे घर-घर पहुंचाया । उन्हें ‘आधुनिक तुलसीदास’ कहा जाता है ।

श्री. यज्ञेश सावंत

३. रामायण की भूमिकाओं के प्रति लोगों का भाव

रामायण धारावाहिक में श्री. अरुण गोविल ने श्रीराम की तथा अभिनेत्री दीपिका चिखलिया ने सीता माता की भूमिका निभाई थी । श्री. गोविल एवं दीपिका चिखलिया जहां जाते थे, वहां लोग उनके चरणस्पर्श करते थे । लोग उन्हें राम एवं सीता के रूप में ही देखते थे । श्री. गोविल की यह भूमिका लोगों को तथा धारावाहिक-चलचित्र के निर्माताओं को इतनी अच्छी लगी थी कि उससे उन्हें इस भूमिका को छोडकर अन्य भूमिकाएं नहीं मिल रही थी ।
श्री. गोविल को ‘श्रीराम’ के रूप में देखना ही लोगों को अच्छा लगता था ।

४. रावण की भूमिका निभानेवाले कलाकार के द्वारा क्षमा मांगी जाना

धारावाहिक रामायण में श्री. अरविंद त्रिवेदी ने रावण की भूमिका निभाई थी । उन्होंने केवल यह भूमिका ही नहीं निभाई, अपितु उन्होंने उस भूमिका को जीवित कर दिया । कोरोना महामारी के काल में दूरदर्शन पर पुनः एक बार ‘रामायण’ दिखाया गया । उस समय सीता माता के हरण का प्रसंग देखते समय वृद्ध अरविंद त्रिवेदी ने कान पकडकर क्षमा मांगी थी । यह अच्छे संस्कारों का प्रभाव है । धारावाहिक देखते समय क्षमा मांगनेवाले श्री. त्रिवेदी का यह वीडियो बडे स्तर पर प्रसारित हुआ था ।

५. रामायण धारावाहिक का प्रभाव

रामायण जैसा दिव्य धारावाहिक १९८० के दशक में प्रसारित हुआ । उस समय उसके भाग देखने के लिए बस एवं रेलगाडियां रुक जाती थीं तथा यात्री सडक के पास जहां टी.वी. उपलब्ध होगा, वहां जाकर यह धारावाहिक देखते थे । प्रत्येक टी.वी. के सामने सैकडों की संख्या में भीड उमड पडती थी । धारावाहिक आरंभ होते ही भारत की लगभग सभी सडकें, चौक एवं गलियां वीरान हो जाती थीं । व्यापारी भी अपनी दुकानें बंद रखते थे । कुछ लोग स्नान कर दूरदर्शन संच का पूजन कर तथा संच को पुष्पमाला समर्पित कर भक्तिभाव के साथ संपूर्ण परिवार के साथ यह धारावाहिक देखते थे ।

– श्री. यज्ञेश सावंत, सनातन संकुल, देवद, पनवेल.
(१७.१.२०२४)

वर्तमान में भी कार्यरत श्रीराम की वानर सेना

श्रीराम मंदिर के निर्माण कार्य के लिए प्रयोग की जानेवाली ईंट पर बैठे २ बंदर के बच्चे

कारसेवकों की रक्षा करनेवाली वानर सेना !

वर्ष १९९२ में अयोध्या में विवादित ढांचे को गिराने हेतु सहस्रों की संख्या में कारसेवकों के जत्थे जा रहे थे । उत्तर प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव ने कारसेवकों को रोकने हेतु पुलिस को लाठी चार्ज का आदेश दिया था, जबकि कारसेवकों को पकडने हेतु विभिन्न स्थानों पर बैरिकेड्स लगाए गए थे । ३० अक्टूबर को मुलायम सिंह ने कहर बरसाकर कारसेवकों पर गोलाबारी करने का आदेश दिया । उस समय पुलिसकर्मी, दिखाई देनेवाले प्रत्येक कारसेवक पर गोलियां चला रहे थे । पुलिस द्वारा गोलीबारी आरंभ किए जाने से कारसेवक भाग रहे थे । कुछ कारसेवक बसों में बैठकर अन्य स्थान पर जाने लगे । उस समय बसों को रोकने के लिए बैरिकेड्स लगे दिखाई दिए । उसी समय वानरों का एक समूह आगे बढता हुआ दिखाई दिया । उन्होंने बिजली के सभी खंबों पर चढकर वहां लगाए सभी तार तोडकर फेंक दिए । उस समय कारसेवकों को पता चला कि कारसेवकों को रोकने के लिए बैरिकेड्स में बिजली का प्रवाह छोडा गया था, जिससे झटका लगकर अनेक कारसेवकों की मृत्यु हो जाती; परंतु प्रभु श्रीराम की वानरसेना ने कारसेवकों की रक्षा की ।

अयोध्या के श्रीराम मंदिर में पहुंचे सैकडों गिद्ध, सांप एवं वानर !

श्रीराम जन्मभूमि के स्थान पर जैसे मंदिर बनकर पूर्ण हो रहा था, उस समय गिद्ध जैसे पक्षी समूह में अयोध्या की सीमा के पास आ रहे थे । ये पक्षी अयोध्या में इससे पहले कभी दिखाई नहीं दिए थे । ये पक्षी निकट के जंगलों में भी दिखाई नहीं देते । रामायण के जटायु जैसे दिखाई देनेवाले पक्षी अयोध्या के आकाश में उडते हुए दिखाई दे रहे थे । गिद्ध पक्षियों के साथ-साथ अयोध्या के ग्रामीण क्षेत्रों में नाग तथा अन्य सांप दिखाई दे रहे थे । केवल १-२ ही नहीं, अपितु ये नाग एवं सांप समूहों में दिखाई दे रहे थे । अयोध्या के पास सांप दिखाई देने के कारण ग्रामवासियों में भले ही भय का वातावरण थो; परंतु कुछ लोगों ने इसे शुभसंकेत माना । अयोध्या के निवासी क्षेत्रों में ९० से अधिक सांप तथा नाग दिखाई दिए ।

जब से श्रीराम मंदिर का निर्माणकार्य आरंभ हुआ, तब से निर्माणकार्य के स्थान पर वानरों का समूह कुछ समय के लिए आता था । वास्तव में देखा जाए, तो मंदिर का काम करनेवाले श्रमिकों को इन वानरों से कष्ट हो सकता है; परंतु ये वानर कुछ नहीं करते । ये बंदर एवं वानर बडी संख्या में मंदिर के आसपास के परिसर में दिखाई दे रहे थे । स्थानीय लोगों की श्रद्धा है कि रामभक्त हनुमानजी ही इन बंदरों एवं वानरों के माध्यम से श्रीराम मंदिर के दर्शन हेतु आ रहे थे । उसके कारण स्थानीय लोग इन वानरों को नहीं खदेडते ।

गिद्ध, नाग एवं वानरों के अयोध्या में आने को स्थानीय लोग शुभसंकेत मान रहे थे । श्रीराम मंदिर में श्रीराम की प्राणप्रतिष्ठा का दिन निकट होने से रामायण में उल्लेखित ऐसे प्राणी श्रीराम के दर्शन हेतु आ रहे थे । जो प्रभु श्रीराम का अस्तित्व अस्वीकार कर रहे हैं, उन्हें श्रीराम के अस्तित्व की अनुभूति देने हेतु इन प्राणियों के माध्यम से दैवीय संकेत मिले । इन दैवीय संकेतों के माध्यम से आगे जाकर प्रभु श्रीराम का अवतरण होकर आनेवाले समय में जब रामराज्य आएगा, तब श्रीराम का अस्तित्व अस्वीकार करनेवालों का अस्तित्व कहां होगा ?, इस पर उन्हें विचार करने की आवश्यकता है ।

– श्री. यज्ञेश सावंत