Zero Food Report : भारत में ६७ लाख बच्चे शून्य-अन्न श्रेणी में हैं, अमेरिका की संस्था का झूठा दावा !

  • अमेरिकन मेडिकल असोसिएशन के जर्नल में प्रकाशित शोधकार्य !

  • शोधकार्य निराधार, भारत सरकार का मत

नई देहली – अमेरिकन मेडिकल असोसिएशन के जर्नल में १२ फरवरी को एक शोधकार्य प्रकाशित हुआ । इसमें भारत के ६ से २३ मास की आयु के बच्चों का अध्ययन किया गया । इस ब्योरे में दावा किया गया है कि भारत में ६७ लाख (१९.३ प्रतिशत) बच्चे शून्य-अन्न (झीरो फूड) श्रेणी में आते हैं । इसका अर्थ यह है कि देश में ऐसे ६७ लाख बच्चे हैं, जिन्होंने २४ घंटों में ना दूध पीया, ना अन्न ग्रहण किया ।

भारत तीसरे स्थान पर !

इस अध्ययन में ऐसा दावा किया गया है कि शून्य-अन्न श्रेणी में विद्यमान संसार के ९२ अल्प और मध्यम आय के देशों की सूचि में भारत तीसरे स्थान पर है, जहां इतने बच्चे ‘जीरो फूड’ बच्चों की श्रेणी में हैं । गिनी (२१.८ प्रतिशत) और माली (२०.५ प्रतिशत) ये देश क्रमशः पहले तथा दूसरे स्थान पर हैं । इन देशों की परिस्थिति भारत से अधिक खेदजनक है । कहा गया है कि यह समस्या पश्चिम आफ्रिका, मध्य आफ्रिका और भारत में सर्वाधिक है ।

ब्योरा बनावटी, भारत का मत केंद्रीय बालविकास मंत्रालय ने कहा है कि यह अध्ययन निराधार है । मंत्रालय ने कहा है कि,

१. ब्योरा प्रस्तुत करते समय इसमें प्राथमिक शोधकार्य नहीं हुआ है । झूठे समाचार फैलाने के लिए यह अध्ययन किया गया है । इसमें किए गए दावे संदेह उत्पन्न करनेवाले हैं ।

२. शोधकर्ताओं के अध्ययन पर विश्वास करना संभव नहीं है; क्योंकि उसमें ‘जीरो फूड’ बच्चों की शास्त्रीय परिभाषा नहीं है ।

३. अध्ययन में केवल प्राणियों का दूध और अन्न खाने के संदर्भ में बताया गया है; परंतु जो बच्चे मां का दूध पीते हैं, उनका उल्लेख नहीं है ।

४. अध्ययन में कहा है कि भारत के १९.३ प्रतिशत बच्चों में से १७.८ प्रतिशत बच्चों को स्तनपान करवाया जाता है । यदि ऐसा है, तो ये बच्चे शून्य-अन्न श्रेणी में कैसे आते हैं ?

५. अंगणबाडी केंद्रों के माध्यम से देश के ८ करोड बच्चों की खाने की आदतों का ब्योरा लिया जाता है । इसके लिए ‘न्यूट्रीशन ट्रॅकर’ नामक पोर्टल बनाया गया है । अध्ययन में पोषण ‘ट्रॅकर डेटा’ पर विचार नहीं किया गया है ।

संपादकीय भूमिका

भारत की प्रतिमा मलिन करने के लिए अमेरिकी संस्थाएं ऐसे ब्योरे प्रकाशित करती हैं । इसलिए भारत को केवल निषेध व्यक्त कर चुप बैठने की अपेक्षा अंतरराष्ट्रीय स्तर पर ऐसी संस्थाओं की दांभिकता उजागर करने के लिए प्रयत्न करना आवश्यक !