‘केवल एशिया उपमहाद्वीप में ही नहीं, अपितु संपूर्ण विश्व का सर्वाधिक असंस्कृत देश है चीन ! आज जब सारा संसार प्रौद्योगिकी (तकनीकी) युग में जी रहा है, तब प्रत्येक देश की महत्त्वाकांक्षा यही होनी चाहिए कि ‘सभ्य, सुविद्य एवं सुसंस्कृत समाज से युक्त देश के रूप में हमारी पहचान हो ।’ विश्व के श्रेष्ठ एवं बलशाली देशों को अपने आचरण एवं कार्याें से विश्व को मानवता का श्रेष्ठ संदेश देना चाहिए । जो देश अपने साम्राज्य का विस्तार तथा स्वयं की श्रेष्ठता सिद्ध करने का प्रयास करता है, उसमें तथा डकैत में कोई अंतर है, ऐसा नहीं कहा जा सकता ।
१. बलशाली राष्ट्र का कर्तव्य
आज के आधुनिक युग में भी अनेक देश अत्यंत पिछडे, गरीब एवं दुर्बल हैं । अनेक देश अपनी जनता को प्राथमिक स्तर की सुविधाएं भी उपलब्ध नहीं करा पाते । प्रतिकूल भौगोलिक स्थिति, आर्थिक दुर्बलता, अत्यंत अल्प जनसंख्या, भौतिक सुविधाओं का अभाव, कुशलताहीन एवं निपुणताहीन सामान्य समाज आदि विभिन्न समस्याओं से ग्रसित अनेक देश इस विश्व में हैं । सुविद्य एवं सुसंस्कृत देशों को ऐसे देशों को सुशिक्षित एवं सुरक्षित बनाने हेतु अगुवाई लेनी चाहिए । साथ ही उनका आर्थिक, शैक्षिक एवं बौद्धिक विकास करने के प्रयास निष्ठापूर्वक करने चाहिए । ‘हमें इस आधुनिक विश्व में सुसंगठित मानव समाज के निर्माण हेतु वातावरण तैयार करना चाहिए तथा वह हमारा दायित्व है’, ऐसा बलशाली राष्ट्र को लगना चाहिए ।
२. चीन का अनुचित उद्देश्य तथा उसकी वास्तविक पहचान !
चीन के पास आधुनिक प्रौद्योगिकी (तकनीक) है, पैसा भी है; परंतु उसके पास सत्यनिष्ठा, परोपकारी वृत्ति, निर्मल निरपेक्ष भावना जैसे सद्गुणों का अभाव है । गरीब देशों की आर्थिक सहायता करते समय उस देश की सर्वांगीण उन्नति हो, इस सद्भावना से चीन किसी भी देश की सहायता नहीं करता । ‘आर्थिक दृष्टि से पिछडे देशों की आर्थिक सहायता करना, उन्हें सभी प्रकार की सुख-सुविधाएं उपलब्ध कराना, इसकी आड में उस देश को कर्ज की खाई में ढकेलना, उसके उपरांत उस देश में उस ऋण को चुकाने की क्षमता उत्पन्न न होने देना, उस देश पर अपना वर्चस्व स्थापित करना तथा उचित अवसर देखकर उस देश की अर्थव्यवस्था को पूर्णत: अपने नियंत्रण में लेना’; यह दुष्ट उद्देश्य मन में रखकर चीन ने अनेक देशों की सहायता की है । इसलिए चीन एक धोखाधडी करनेवाला डकैत देश है । सभ्यता का चोगा पहनकर विश्व में विचरण करनेवाला चीन भारत को बदनाम करने का प्रयास कर रहा है, यह हमने बार-बार अनुभव किया है ।
‘आतंकियों को हथियारों की आपूर्ति करनेवाले देश’ के रूप में चीन विश्व में जाना जाता है । चीन ने भारत को सुख से जीने न देने का मानो बीडा ही उठा रखा है । चीन विगत अनेक वर्षाें से सीमा पर तनावपूर्ण वातावरण बनाने का काम करता आया है । पूरे दक्षिण एशिया पर अपना वर्चस्व स्थापित करने की आसुरी महत्त्वाकांक्षा रखनेवाले देश के रूप में चीन की वास्तविक पहचान है ।
भारत ने आरंभ से ही अपने राष्ट्रीय जीवन में संत तुकाराम महाराजजी के ‘एक एका साह्य करूं । अवघे धरू सुपंथ’ (अर्थ : एक-दूसरे की सहायता कर सभी अच्छे मार्ग पर आगे बढेंगे ।), इस वचन को अनन्य महत्त्व दिया । उसके अनुसार भारत ने विकट काल में सभी राष्ट्रों की सहायता की है ।
३. भारत ने संकटकाल में तथा समय-समय पर की है मालदीव की सहायता
मालदीव के तत्कालीन राष्ट्रपति के रूप में मौमून अब्दुल गयूम ने वर्ष १९७८ से २००८ तक ३० वर्ष सत्ता संभाली । मालदीव के नागरिक व्यापारी अब्दुल्ला लुथुफी ने उन्हें सत्ताच्युत करने का प्रयास किया, परंतु वह सफल नहीं हो पाया । मौमून गयूम को सत्ता से हटाने हेतु अब्दुल्ला लुथुफी ने श्रीलंका के आतंकी संगठन ‘पीपल्स लिबरेशन ऑर्गनाइजेशन ऑफ तमिल इलम’ से सहायता ली ।
मालदीव के राष्ट्रपति मौमून अब्दुल गयूम ३ नवंबर १९८८ को भारत यात्रा पर जानेवाले थे । श्रीलंका के आतंकी संगठन ने गयूम को सत्ता से हटाने हेतु यही दिन सुनिश्चित किया, तथापि भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री उनके पूर्वनियोजित कार्यक्रम के अनुसार उस दिन उपलब्ध नहीं थे; इसलिए मालदीव के राष्ट्रपति की भारतयात्रा रद्द की गई । तब भी इस आतंकी संगठन ने अपनी गतिविधि रद्द नहीं की । श्रीलंका के आतंकियों ने मालदीव सरकार के सभी सरकारी कार्यालयों पर अपना नियंत्रण स्थापित किया । राष्ट्र एवं राष्ट्रपति इन सभी को छुडाने के उद्देश्य से मालदीव ने पाकिस्तान, सिंगापुर, इंग्लैंड, इन देशों से सहायता मांगी; परंतु इनमें से कोई भी देश मालदीव की सहायता करने के लिए आगे नहीं आया । इंग्लैंड ने मालदीव को सुझाया कि ‘भारत से सहायता लें’ तथा उसके अनुसार मालदीव ने भारत से सहायता मांगी । भारत ने मालदीव की तत्काल सहायता करने का आश्वासन दिया ।
भारत ने मालदीव की रक्षा हेतु अपनी सेना भेजी । भारत की सेना कुछ ही घंटों में मालदीव की भूमि पर उतरी । भारत के वीर सैनिकों ने अनेक आतंकियों को पकडा, तथा कुछ आतंकियों को मार दिया । भारत की सहायता के कारण मालदीव के राष्ट्रपति तथा उनकी सरकार सुरक्षित रह पाई । इस प्रकार गयूम को सत्ताभ्रष्ट करने का सपना रसातल पहुंचा । ऐसे विकट काल में चीन मालदीव के साथ खडा नहीं रहा । जो संकटकाल में दौडा चला आता है, उसे ‘सज्जन’ कहते हैं तथा जो दूसरे के संकट में अपना लाभ देखता है, उसे ‘धोखेबाज’ एवं ‘असंस्कृत’ कहते हैं । चीन धोखेबाज एवं असंस्कृत है; इसलिए चीन को भारत से किसी प्रकार की स्पर्धा करने का प्रयास नहीं करना चाहिए ।
वर्ष २०२० में कोरोना महामारी ने संपूर्ण विश्व को घेर लिया । ऐसे विकट काल में चीन ने मालदीव की सहायता नहीं की; परंतु भारत ने उस विकट काल में मालदीव को २५ करोड डॉलर्स की सहायता की । मालदीव की एक परियोजना में आग लगने के कारण वहां बडे स्तर पर पानी का अभाव हुआ । ऐसी कठिन स्थिति में भारत ने मालदीव को जल की आपूर्ति कर उसका जीवन बचाया । इस प्रकार भारत केवल मालदीव की ही नहीं, अपितु अनेक देशों की उनके विकट काल में आवश्यक सहायता करता रहा है ।
४. भारत के मालदीव के साथ मित्रतापूर्ण संबंध से चीन को मिर्ची लगना !
भारत के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करने हेतु चुनाव में विजय प्राप्त कर राष्ट्रपति पद प्राप्त कर मालदीव में अपनी सत्ता स्थापित करनेवाला प्रत्येक व्यक्ति भारत की यात्रा पर आता है । भारत के मालदीव के साथ मित्रतापूर्ण संबंध से चीन को मिर्ची लगती है । यह मित्रतापूर्ण संबंध न सह पाने के कारण चीन ने स्वार्थवश मालदीव की अर्थव्यवस्था पर अपना नियंत्रण स्थापित करने हेतु वहां अपनी पैठ जमाई है । स्वयं की आसुरी महत्त्वाकांक्षा को छिपाकर चीन भारत को आरोपी के कटघरे में खडा कर रहा है । चीन की यह कुटिलता संपूर्ण विश्व ने पहचान ली है । भारत पूरे विश्व का प्रिय बन रहा है, यह चीन सह नहीं पा रहा । चीन की यह छटपटाहट विकृत पद्धति से उजागर हो रही है, उसमें भी चीन सुसंकृत भारत पर झूठे आरोप लगाकर अपने ही हाथ से अपनी ही नाक कटवा रहा है ।
५. भारत के प्रधानमंत्री द्वारा मालदीव के साथ किया व्यवहार उचित ही है !
मालदीव के वर्तमान राष्ट्रपति ने अपनी परंपरा को भुलाकर भारत के साथ मित्रतापूर्ण संबंधों को आगे बढाने का कोई प्रयास नहीं किया । मालदीव के तीन मंत्रियों ने भारत के प्रति शत्रुता प्रकट की । उन्होंने भारत के प्रधानमंत्री के विषय में अपशब्दों का प्रयोग कर उन्हें अपमानित किया । अपने अस्तित्व की एवं स्वाभिमान की रक्षा करना अपराध नहीं है तथा बिना किसी कारण अन्यों के स्वाभिमान को आहत करने का प्रयास करना भद्रता का एवं सुसंस्कृतता का लक्षण नहीं है । भारत के प्रधानमंत्री ने अपने देश का सम्मान बनाए रखने हेतु मालदीव के साथ के संबंध तोड दिए तथा मालदीव को दी जानेवाली सभी प्रकार की सहायता बंद की ।
समर्थ रामदासस्वामीजी ने –
धटासी आणावा धट । उत्धटासी पाहिजे उत्धट ।
खटनटासी खटनट । अगत्य करी ।।
– दासबोध, राजकारण निरूपण, समास ९ वां, श्लोक ३०
यह उपदेश दिया है । भारत के प्रधानमंत्री ने उसके अनुसार ही आचरण किया है । प्रधानमंत्री की इस प्रतिक्रिया का एकमात्र उद्देश्य है मालदीव की बुद्धि ठिकाने पर आए ।’
– श्री. दुर्गेश जयवंत परुळकर, व्याख्याता एवं लेखक, डोंबिवली, मुंबई (१२.१.२०२४)