प्रकाण्डकाण्डकाण्डकर्मदेहछिद्रकारणम्
कुकूटकूटकूटकौणपात्मजाभिमर्दनम् ।
तथागुणंगुणंगुणंगुणंगुणेन दर्शयन्
कृपीटकेशलंघ्यमीशमेकराघवं भजे ।।
– श्रीरामताण्डवस्तोत्र, श्लोक ४
अर्थ :जो अपने तीक्ष्ण बाणों से निंदनीय कृत्य करनेवाले राक्षसों को पराजित करता है; जो अधर्म की वृद्धि हेतु माया एवं असत्य का आश्रय लेनेवाले मदमस्त राक्षसों का विनाश करता है; जो अपने पराक्रम एवं अपने धनुष की प्रत्यंचा एवं चतुराई से, तथा राक्षसों का पराभव करने की इच्छा से प्रचंड संहारक, समुद्र पर सेतु बांधता है और उसे पार करता है, ऐसे राघव की मैं पूजा करता हूं ।
यह श्लोक राम तांडव स्तोत्र से है । इस स्तोत्र का पाठ करके देखें । इसमें एक निराली ही ऊर्जा है । वही ऊर्जा जिसने क्रूर आक्रमणकारियों का नामोनिशान मिटा डाला । वही ऊर्जा जिसने लाखों कारसेवकों को बल प्रदान किया । वही ऊर्जा जो ‘मंदिर वहीं बनाएंगे’ का हमारा (हिन्दुओं का) सपना पूर्ण करनेवाली है ।
– वैद्य परीक्षित शेवडे, आयुर्वेद वाचस्पति, डोंबिवली, महाराष्ट्र.