राममंदिर से रामराज्य (हिन्दू राष्ट्र) की ओर !

५ अगस्त २०२० को एक महान कार्य आरंभ हुआ । अयोध्या में मा. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के हस्तों राममंदिर पुननिर्माण का शिलान्यास हुआ । असंख्य रामभक्तों को संतुष्ट करनेवाला राममंदिर के भूमिपूजन का समारोह अयोध्या में संपन्न हुआ । यह दिन राममंदिर हेतु संघर्ष करनेवालों के लिए अत्यंत महत्त्वपूर्ण तथा उतना ही आनंदमय था ।

पहले रामजन्मभूमि पर बनाया गया बाबरी ढांचा तथा अब पुनः श्रीराममंदिर, यह लगभग ५०० वर्ष का भीषण काल ! यह काल हिन्दुओं के लिए संघर्षपूर्ण था । वर्ष १५२९ में रामजन्मभूमि पर बाबरी ढांचा बनाया गया । वर्ष १९९२ में हिन्दू कारसेवकों ने उसे वहां से हटाकर हिन्दुओं के आक्रोश का मार्ग प्रशस्त किया; परंतु यह लडाई संपन्न होने हेतु वर्ष २०२० तक प्रतीक्षा करनी पडी । आज प्रभु श्रीराम की कृपा से पुनः एक बार मंदिर बन रहा है ।

रामराज्य की निर्मिति करने हेतु क्या करें ?

इसके लिए एक और बात करनी होगी तथा वह है पहले इस संकल्पना को लोगों तक पहुंचाना होगा । इससे जुडे भ्रम दूर करने होंगे । छोटे बच्चों को भी रामराज्य का सपना देखना सिखाना होगा । उन्हें विद्यालयों में रामराज्य की निर्मिति के संस्कार देने होंगे । इसका आरंभ हम राममंदिर के पुनर्निर्माण से कर सकते हैं । हमें उससे प्रेरणा लेकर रामराज्य की ओर अग्रसर होना आरंभ करना है । यह यात्रा बहुत बडी एवं संघर्षपूर्ण होगी; परंतु हम उसमें निश्चितरूप से सफल होंगे; क्योंकि हमारे राष्ट्र में इससे पूर्व भी रामराज्य की निर्मिति हुई है । जैसे मंदिर का पुनर्निर्माण हुआ है, वैसे ही हमें रामराज्य का पुनर्निर्माण करना है । उसके लिए केवल हमें अपने विचारों के प्रति निष्ठा एवं संयम रखना होगा ।

१. प्रभु श्रीराम को ‘मर्यादापुरुषोत्तम’ क्यों कहते हैं ?

मर्यादापुरुषोत्तम प्रभु श्रीराम, मानवता का महान सपना नहीं हैं, वे वास्तविक इतिहास हैं ! प्रत्यक्ष परमेश्वर ने इस भूमि पर जन्म लेकर सभी मर्यादाओं का पालन कर महान कैसे बनना चाहिए ? इसका आदर्श स्थापित किया, वे हैं प्रभु श्रीराम ! मर्यादाओं के पालन का अर्थ स्वयं पर किसी प्रकार के अनुचित बंधन डालना नहीं, अपितु इस विश्व के प्रति, परमेश्वर के प्रति कृतज्ञ होना तथा कोई भी संकट आए, तो बिना डगमगाए उसका सामना कर सफल होना ! रामायण में महर्षि विश्वामित्र दशरथ से कहते हैं, ‘युवावस्था, धन, सामर्थ्य एवं पैतृक संपत्ति; इन चार में से कोई भी वस्तु हाथ में आने पर मनुष्य स्वयं को महान मानने लगता है; किंतु तुम्हारे पुत्र के पास ये चारों बातें होते हुए भी वह मद में चूर नहीं है’; इसीलिए श्रीराम को ‘मर्यादापुरुषोत्तम’ कहते हैं । सभी संकटों को झेलकर उन्होंने मानव को बताया कि ‘चाहे कितने भी संकट आएं; परंतु तब भी स्वयं के सामर्थ्य पर विश्वास तथा परमेश्वर के प्रति श्रद्धा दृढ रखनी है । इससे हम निश्चित सफल होते हैं !’

२. राममंदिर का अर्थ है विश्व को उचित मार्ग दिखानेवाले वास्तु का निर्माण !

ऐसे श्रीराम का मंदिर आज बन गया है । यह मंदिर केवल प्रत्येक हिन्दू के लिए ही नहीं, अपितु प्रत्येक मनुष्य के लिए भी महत्त्वपूर्ण है । श्रीराम द्वारा किया गया संघर्ष, उनके द्वारा पालन की गई मर्यादाएं, स्वयं के जीवन में किया हुआ त्याग तथा उसके उपरांत स्थापित किया महान राष्ट्र, इन सभी का प्रतीक यह मंदिर है । श्रीराममंदिर विश्वनिर्माण के कार्य का ऊर्जास्रोत है । यह राममंदिर अपने धर्म के प्रति निष्ठा तथा समाज के प्रति कृतज्ञ रहने के विचारों का प्रतीक होगा । साथ ही अशुभ, धर्मद्रोही, अधर्म तथा अनुचित बातों के विरुद्ध कैसे लडना चाहिए; इसकी भी यह राममंदिर सीख देगा । मंदिर पुनर्निर्माण का कार्य पैसों का अपव्यय नहीं, अपितु वह विश्व को उचित मार्ग दिखानेवाले महान वास्तु का निर्माण है ।

कु. अन्नदा मराठे

३. रामराज्य : एक उत्तम राज्य की मानवतापूर्ण संकल्पना !

प्रभु श्रीराम एक महान राजा हैं । रामराज्य का आदर्श सर्वत्र बताया जाता है । ‘महान राज्य का अर्थ है रामराज्य’, ऐसा कहा जाता है; परंतु निश्चितरूप से यह राज्य क्या है, यह हमें पहले समझ लेना होगा । रामराज्य केवल कोई धार्मिक संकल्पना नहीं है, अपितु वह मानवतापूर्ण संकल्पना है; जिसमें परस्पर प्रेम, आदर एवं सुख-शांति समाहित हैं । संत गोस्वामी तुलसीदास ‘रामचरितमानस’ में कहते हैं, ‘अल्पमृत्यु नहिं कवनिउ पीरा । सब सुंदर सब बिरुज सरीरा ।। नहिं दरिद्र कोउ दुखी न दीना । नहिं कोउ अबुध न लच्छन हीना ।।’ अर्थात रामराज्य में किसी की भी बचपन में मृत्यु नहीं होती, सभी के शरीर सुंदर एवं स्वस्थ हैं, इसमें कोई भी दीन-दुखी नहीं है । कोई भी मूर्ख एवं अशुभ लक्षणों से युक्त नहीं है । आज समाज पर मंडरा रहे संकटों के विषय में इसमें बताया गया है, बालमृत्यु, स्वास्थ्य की समस्याएं, मानसिक स्वास्थ्य; इन सभी समस्याओं से विहीन राज्य है रामराज्य !

एक और श्लोक में संत तुलसीदास कहते हैं, ‘दैहिक, दैविक, भौतिक तापा, रामराज काहु नहीं व्यापा । सब नर करहिं परस्पर प्रीती । चलहिं स्वधर्म निरत श्रुति नीती ।’ अर्थात रामराज्य में दैहिक, दैविक एवं भौतिक ताप नहीं हैं । सभी मानव एक-दूसरे से प्रेम करते हैं तथा धर्म का पालन करते हैं । रामराज्य का अर्थ है वहां के लोगों का परस्पर प्रेम तथा धर्म एवं कर्तव्य के प्रति उनमें समाहित प्रेम ! प्रत्येक व्यक्ति ने यदि अपने-अपने कर्तव्य का पालन किया, तो प्रत्येक व्यक्ति सुखी हो पाएगा । ऐसे इस महान रामराज्य की आकांक्षा प्रत्येक व्यक्ति को होती है । रामराज्य एक उत्तम राज्य की संकल्पना है ।

४. रामराज्य लाने के सामने की चुनौतियां

ऐसे इस रामराज्य का विचार करते समय हमें उसके सामने की चुनौतियों का भी विचार करना पडेगा ।

अ. श्रद्धा की चुनौती : सबसे बडी चुनौती यह है कि आज हम श्रद्धा से दूर जा चुके हैं । यह श्रद्धा है अपने धर्म, ईश्वर एवं कार्य के प्रति ! हममें अपने हिन्दू धर्म के प्रति श्रद्धा नहीं है । हिन्दू कहलाने में हम लज्जा प्रतीत होती है । भगवान पर हमारा विश्वास नहीं रहा । हमारे मन के विरुद्ध कुछ होता है, तब भगवान के प्रति हमारा विश्वास टूट जाता है । हमारा हमारे कार्य पर भी प्रेम नहीं है । वह कार्य हम मनसे नहीं, अपितु केवल पैसे मिलते हैं; इसलिए करते हैं ।

आ. कर्तव्य के प्रति उदासीनता : रामराज्य के सामने की एक और चुनौती है कर्तव्य के प्रति की !

हमें अपने परिवार, समाज एवं देश के अपने कर्तव्य का भान रखना चाहिए । उसमें समन्वय रखना चाहिए । परिवार के सुख के लिए कुछ कार्य करते समय हमें देखना चाहिए कि उससे हमारे समाज की हानि तो नहीं होगी न । परिवार का अच्छे से ध्यान रखकर थोडा समय देकर हम समाज एवं देश के लिए कुछ अच्छा कार्य कर सकते हैं ।

इ. नैतिकता का पालन : रामराज्य के लिए एक और महत्त्वपूर्ण बात है नैतिकता का पालन ! हम अपने जीवन में नैतिकता का निश्चितरूप से पालन कर सकते हैं । स्वयं के सुख का विचार करते समय हम देख सकते हैं कि उससे अन्य कोई दुखी तो नहीं हो रहा है न ? अपनी इच्छा पूर्ण करते समय हमने इतना भी विचार किया, तब भी रामराज्य दूर नहीं । सहस्रों हिन्दू जिस हिन्दू राष्ट्र की इच्छा रखे हुए हैं, वह राज्य रामराज्य से भिन्न नहीं है । वैसा ही है, जिसमें धर्म के प्रति श्रद्धा, देश के प्रति कर्तव्य तथा परस्पर नैतिकता का पालन महत्त्वपूर्ण होगा ।

– कु. अन्नदा विनायक मराठे, चिपळूण, जिला रत्नागिरी, महाराष्ट्र.