एक संत को प्रतीत हुईं ‘सनातन प्रभात’ के ‘ई-पेपर’ की सूक्ष्म स्तरीय विशेषताएं
१. ‘सूक्ष्म ज्ञान संबंधी चित्र की सत्यता (वास्तविकता से मेल खाने की मात्रा) : ७० प्रतिशत
२. सूक्ष्म ज्ञान संबंधी चित्र में सात्त्विक स्पंदन : ८० प्रतिशत’
– (सद्गुरु) डॉ. मुकुल गाडगीळ (३.८.२०२३)
३. एक संत एवं सद्गुरु डॉ. मुकुल गाडगीळजी को प्रतीत ‘सूक्ष्म ज्ञान से संबंधित चित्र में स्पंदनों का स्तर’
३ अ. मारक शक्ति
३ अ १. मारक शक्ति के कणों का वलय ‘सनातन प्रभात’ के ‘ई-पेपर’में सक्रिय होना : इसमें राष्ट्ररक्षा एवं धर्मजागृति करनेवाले लेख प्रकाशित होते हैं; इसलिए ऐसा होता है ।
३ अ २. मारक शक्ति के कणों का ‘ई-पेपर’ से वातावरण में, साथ ही उसे पढनेवाले व्यक्ति की ओर प्रक्षेपित होना : इस कारण व्यक्ति को धर्म का महत्त्व समझ में आता है तथा वह व्यक्ति साधना, साथ ही धर्मकार्य करने हेतु प्रेरित होता है ।
३ आ. तारक शक्ति
३ आ १. तारक शक्ति के कणों का वलय ‘ई-पेपर’ में सक्रिय होना : कुछ साधकों को ईश्वर से विभिन्न विषयों का ज्ञान मिलता है, जिसे ‘सनातन प्रभात’ के ‘ई-पेपर’ में प्रकाशित किया जाता है, साथ ही अध्यात्म के विषय में संतों द्वारा किया गया मार्गदर्शन भी उसमें प्रकाशित किया जाता है । इस कारण ऐसा होता है ।
३ आ २. तारक शक्ति के कणों का ‘ई-पेपर’ से वातावरण में, साथ ही उसे पढनेवाले व्यक्ति की ओर प्रक्षेपित होना
३ इ. सगुण चैतन्य
३ इ १. सगुण चैतन्य का वलय ‘ई-पेपर’ में सक्रिय होना : इसका कारण ‘ई-पेपर’ में सदैव सत्य ही प्रकाशित किया जाता है तथा उसमें साधना के विषय में मार्गदर्शन होता है ।
३ इ २. सगुण चैतन्य का वलय ‘ई-पेपर’ से वातावरण में, साथ ही उसे पढनेवाले साधक अथवा सामान्य व्यक्तियों की ओर प्रक्षेपित होना : भले ही ऐसा हो; परंतु तब भी सामान्य व्यक्ति का आध्यात्मिक स्तर जैसा होगा, उसके अनुसार वह व्यक्ति ‘ई-पेपर’ में विद्यमान चैतन्य का अनुभव कर सकता है ।
३ ई. निर्गुण चैतन्य
३ ई १. निर्गुण चैतन्य का वलय ‘ई-पेपर’ में सक्रिय होकर वातावरण में, साथ ही उसे पढनेवाले साधक की ओर प्रक्षेपित होना : उसके कारण ‘ई-पेपर’ पढते समय साधकों को सूक्ष्म से सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. आठवलेजी का अस्तित्व प्रतीत हो सकता है, साथ ही साधकों का ईश्वर के साथ आंतरिक सान्निध्य साधा जा सकता है ।
३ उ. भाव
३ उ १. भाव के कण ‘ई-पेपर’ में सक्रिय होना : साधकों को साधना करते समय हुई भावानुभूतियां ‘ई-पेपर’ में प्रकाशित की जाती हैं । ये अनुभूतियां पढकर साधकों एवं पाठकों में भावजागृति होती है । इसलिए ऐसा होता है ।’
– एक संत (२९.७.२०२३)
सूक्ष्म : व्यक्ति के स्थूल अर्थात प्रत्यक्ष दिखनेवाले अवयव नाक, कान, नेत्र, जीभ एवं त्वचा, ये पंचज्ञानेंद्रिय हैैं । जो स्थूल पंचज्ञानेंद्रिय, मन एवं बुद्धि के परे है, वह ‘सूक्ष्म’ है । इसके अस्तित्व का ज्ञान साधना करनेवाले को होता है । इस ‘सूक्ष्म’ ज्ञान के विषय में विविध धर्मग्रंथों में उल्लेख है । सूक्ष्म ज्ञान संबंधी चित्र : कुछ साधकों को किसी विषय में अनुभव होकर जो अंर्तदृष्टि से दिखता है, उस संदर्भ में उनके द्वारा कागज पर रेखांकित किए चित्र को ‘सूक्ष्म ज्ञान संबंधी चित्र’ कहते हैैं । |