११.१०.२०२१ को रामनाथी, गोवा स्थित सनातन के आश्रम में सुश्री (कु.) तेजल पात्रीकर (आध्यात्मिक स्तर ६१ प्रतिशत) ने कतरास (झारखंड) के सनातन संस्था के संत पू. प्रदीप खेमकाजी (सनातन के ७३ वें समष्टि संत) के पोते कु. श्रीहरि (आयु ६ वर्ष) एवं खेमका परिवार से वार्तालाप किया । उस समय पू. प्रदीप खेमकाजी, पू. (श्रीमती) सुनीता खेमकाजी (सनातन की ८४ वीं समष्टि संत) एवं पू. गीतादेवी खेमकाजी (सनातन की ८३ वीं व्यष्टि संत) द्वारा बताए चि. श्रीहरि के गुण एवं विशेषताएं आगे दी हैं ।
१. नाडीवाचन में श्रीहरि का उल्लेख होना तथा वह हिन्दू राष्ट्र का कार्य करेगा, यह पता चलना
सुश्री (कु.) तेजल पात्रीकर : श्रीहरि क्या साधना करता है ।
पू. प्रदीप खेमकाजी (श्रीहरि के दादाजी) : श्रीहरि के जन्म से पूर्व हम कुछ नाडीवाचन करनेवालों के पास गए थे । तब उसमें उल्लेख था कि ‘आपके घर में पुत्र होगा एवं उसका नाम श्रीहरि होगा । वह हिन्दू राष्ट्र का कार्य करेगा । यह हमारा (महर्षि का) नियोजन है कि वह हिन्दू राष्ट्र में नेतृत्व कर सहायता करे ।’ उस समय हमें अत्यंत कृतज्ञता प्रतीत हो रही थी ।
शिशु का जन्म होने के पश्चात हम उसे घुट्टी पिला रहे थे, तब मैंने उसे ‘श्रीहरि’ कहकर पुकारा तथा मुंह खोलने के लिए कहा । उसने जन्मते ही अपना मुंह खोलकर जीभ भी बाहर निकाली । तब हमने ‘ॐ’ का लॉकेट शहद में डुबोकर उसकी जीभ पर रखा । उस समय उसने स्मितहास्य किया । मैंने उसके कान में कहा, ‘तुम्हारा जन्म ईश्वरीय योजना के अनुसार ईश्वरीय राज्य के लिए हुआ है, तुम अपनी साधना एवं अपना सर्वस्व गुरुदेवजी को समर्पित करो ।’ तब वह हंसने लगा । मुझे प्रतीत हुआ कि मानो वह कह रहा है, ‘दादाजी, मैं यही करने आया हूं ।’
पू. (श्रीमती) सुनीता खेमकाजी (श्रीहरि की दादी) : जब वह २ – ३ मास का था, तब पू. खेमकाजी उसे ‘श्रीहरि नमस्कार, श्रीहरि नमस्कार’, कहकर नमस्कार करते थे । उसने तब अपने हाथ हिलाना प्रारंभ किया । पू. खेमकाजी के नमस्कार कहने पर वह अपने हाथों से नमस्कार की मुद्रा करता था । ३ मास में ही उसपर यह संस्कार होकर वह नमस्कार करने लगा । सबसे पहले उसका यही लक्षण दिखाई दिया ।
२. कठिन प्रसंग में किसी के सिखाए बिना ‘श्री विष्णवे नमः’ नामजप करना
कु. तेजल : इन दैवी बालकों की बातें अथवा किसी भी प्रसंग की ओर देखने एवं विचार करने का दृष्टिकोण अलग होता है, क्या ऐसे कुछ उदाहरण हैं ?
पू. (श्रीमती) खेमकाजी : वह ‘श्री विष्णवे नमः’ नामजप करता है । ऐसा करना हममें से किसी ने उसे नहीं सिखाया है । कल हम नागेशी गए थे । नागेशी से लौटते समय मुझे वाहन में सिर पर चोट लगी तथा रक्त बहने लगा । उस समय वह तत्काल ‘श्री विष्णवे नमः । श्री विष्णवे नमः ।’ कहने लगा । हमारे रामनाथी के सनातन के आश्रम में पहुंचने तक एवं मेरे सिर से रक्त बहना बंद होने तक वह ‘श्री विष्णवे नमः’ नामजप कर रहा था ।
कु. तेजल : इस प्रसंग से ध्यान में आता है कि ‘कोई व्यक्ति हमारी सहायता नहीं कर सकता । केवल ईश्वर ही आकर हमारी सहायता कर सकते हैं’, ऐसी दैवी बालकों की श्रद्धा होती है । इसलिए उसने तत्काल ईश्वर का नामजप प्रारंभ कर दिया ।
३. आज्ञापालन करना
पू. (श्रीमती) खेमकाजी : उसमें आज्ञापालन करने का गुण है । प.पू. दास महाराजजी ने एक बार उसे हनुमानजी का एक चित्र दिया था और उस चित्र को लेकर हनुमान चालीसा पढने के लिए कहा था । उसने वह चित्र दिनभर अपनी जेब में रखा और रात को मेरे पास आकर उसने चित्र के सामने हनुमान चालीसा का पठन किया । चॉकलेट आदि वह जेब में ही भूल जाता है । दूसरे दिन उसके कपडे धोने के लिए लेने पर कहता है, ‘‘दादी चॉकलेट जेब में ही रह गई । कोई बात नहीं ।’’
श्रीहरि : चॉकलेट रह जाए, तो हम दूसरी ले सकते हैं । वह चित्र हनुमानजी का है ना !
कु. तेजल : बच्चों को चॉकलेट अधिक अच्छी लगती है । साधारणतः बच्चों को देवता का चित्र कहीं भी रह जाए, तो चल जाता है; परंतु उसका ईश्वर के प्रति अत्यधिक भाव है ।
४. चूकों के प्रति संवेदनशील
पू. (श्रीमती) खेमकाजी : चूक होने पर वह सारणी में लिखता है । वह ३ वर्ष की आयु से विद्यालय जाने लगा था । हम सारणी लिखते थे, तब वह भी हमारे साथ आता था और सारणी लिखने के लिए कहता था । अपनी चूकें पूछकर उनमें से एक-दो चूकें वह मुझे लिखने के लिए कहता था ।
कु. तेजल : क्या उसे कोई चूक याद आती थी ?
पू. (श्रीमती) खेमकाजी : हां, उसे चूक समझ में आती है । वह मुझसे पूछता था कि उससे कौन-कौन सी चूकें हुई हैं ? चूकों की ओर भी उसका ध्यान रहता है ।
पू. (श्रीमती) खेमकाजी : ‘प.पू. भक्तराज महाराज दैनंदिनी (डायरी) लिखने झूले पर बैठे हैं’, ऐसा उनका छायाचित्र है । उसके मन में ऐसा संस्कार हुआ है कि बाबा चूकें लिखेंगे । जिस दिन मुझसे चूक होती है, मैं उसे बताती हूं, ‘श्रीहरी मुझसे आज चूक हुई है । बाबा मेरी चूक लिख रहे हैं ।’तब वह कहता है ‘‘हां दादी, बाबा आपकी चूक लिख रहे हैं ।’’
५. चूकों के प्रति सतर्क रहकर कृति करना एवं प्रायश्चित लेना
कु. तेजल : श्रीहरि ! आप क्या साधना करते हैं ?
श्रीहरि : जब श्रीहरि भोजन करने बैठता है, तब वह प्रार्थना कर ही भोजन प्रारंभ करता है एवं चूक के लिए प्रायश्चित करता है ।
कु. तेजल : उसे जो प्रायश्चित बताते हैं, वह करता है क्या ?
पू. (श्रीमती) खेमकाजी (दादी) : हां । वह करता है । एक दिन मैंने उससे कहा, प्रायश्चित में श्रीहरि चॉकलेट नहीं खाएगा । तब उसने कहा, ‘‘चॉकलेट का यह प्रायश्चित बबुआ नहीं ले सकता ।’’ एक दिन उससे बडी चूक हुई । उस समय उसने चॉकलेट न खाने का प्रायश्चित लिया । प.पू. कहते हैं, ‘बडी चूक होने पर बडा प्रायश्चित करो ।’ वैसा उसने किया । उस दिन उसने वास्तव में चॉकलेट नहीं मांगी ।
कल मैंने उससे कहा, ‘‘प.पू. गुरुदेवजी ने बताया है, चूक होने पर चिकोटी काटना है ।’’ कल वह चॉकलेट पर लिखा नाम पढ रहा था, तब उसने एक शब्द नहीं पढा । मैंने उसे ध्यान दिलवाया, तब उसने अपनेआप को चिकोटी काटी ।
कु. तेजल : वह तत्काल कृति करता है, अर्थात चूकों के प्रति उसकी अधिक सतर्कता ध्यान में आती है ।
कु. तेजल : अब हमें थोडा आपातकाल के संबंध में बताइए !
श्रीहरि : कोरोना, आपातकाल है । ऐसी स्थिति में साधकों को मास्क पहनना चाहिए और नामजप करना चाहिए ।
६. उत्तम स्मरणशक्ति
कु. तेजल : अच्छा ! इसके ध्यान में बहुत बातें रहती हैं न !
श्रीहरि : मुझे कोई कथा बताता है, वह मुझे याद रहती है । जब मैं भूल जाता हूं, तब ही वह कथा मुझे फिर से कोई बता देता है ।
७. बचपन में ही ग्रंथों का भावार्थ समझकर बताना
कु. तेजल : पू. भाभी, उसके ग्रंथ पठन के संबंध में बताइए ।
पू. (श्रीमती) खेमकाजी : जब वह बहुत छोटा था, अर्थात जब खडा भी नहीं हो पाता था । तब उसे ग्रंथ दिखाने पर पढते समय जिस प्रकार दृष्टि घूमती है, उस प्रकार वह करता था । मानो वह सर्व ग्रंथ पढ रहा है । मैंने पूछा, ‘‘आप ग्रंथ पढ रहे हैं क्या ?’’ तब उसने स्वीकार करते हुए सिर हिलाया । तब वह बोल नहीं पाता था । एक बार मैंने ८-१० ग्रंथों के नाम पढकर उसे सुनाए । स्वभावदोष के ग्रंथ में मैंने उसे बताया कि हम जो चूक करते हैं, उसकी गठरी बन जाती है । उसे लेकर मनुष्य को चढना कठिन होता है । अन्य ग्रंथों के संबंध में भी बताया । उन सर्व ग्रंथों का सारांश उसने अपने माता-पिता को बताया । आनंदी कैसे रहना है ? यह उसने सबको बताया ।
पू. प्रदीप खेमकाजी : यह नामजप करता है और गुरु-आज्ञा में रहता है, इसलिए आनंदी है । जब वह साधना नहीं करता, तब दुःखी रहता है ।
८. सात्त्विकता के कारण सबको आकर्षित करना
पू. प्रदीप खेमकाजी : वह एक वर्ष का था, तब दैवी बालक अन्यों से अलग कैसे होते हैं, यह मेरे ध्यान में आया । हमारे घर सत्संग में साधक आते थे, तब यह साधकों की गोद में बैठकर संपूर्ण सत्संग सुनता था । यह साधकों के पास जाता था; परंतु यदि कोई मेरे मित्र अथवा व्यवसायी आते, जो साधना नहीं करते, तो यह उनके पास नहीं जाता था ।
९. श्रीचित्शक्ति (श्रीमती) अंजली मुकुल गाडगीळजी को आध्यात्मिक स्तर पर उत्तर देना
पू. (श्रीमती) गीतादेवी खेमकाजी : वर्ष २०२० में श्रीचित्शक्ति (श्रीमती) अंजली मुकुल गाडगीळजी का जन्मदिन था । उस दिन उन्होंने कहा, ‘‘श्रीहरि आज मेरा जन्मदिन है, मुझे भेंट दो ना !’’ तब उसने कहा ‘‘बबुआ (श्रीहरि) ही आपकी भेंट है ।’’ (‘सद्गुरु गाडगीळजी के चरणों में मैंने स्वयं को अर्पण किया है’, ऐसा श्रीहरि को कहना है ।’ – श्रीमती अर्चना खेमका, श्रीहरि की छोटी दादी, पू. प्रदीप खेमकाजी की भाभी)
कु. तेजल : कितना सुंदर एवं उत्स्फूर्त उत्तर दिया न !
१०. भक्तराज महाराजजी एवं प.पू. डॉक्टरजी के प्रति भाव
पू. खेमकाजी : जब वह बोलना सीख रहा था, तब एक बार बोला, ‘श्रीलाठी बाबा नमः । हमने उसका अर्थ पूछा तब उसने प.पू. भक्तराज महाराजजी का छायचित्र दिखाया और कहा, ‘‘मैं इन्हें ‘लाठी बाबा’ कहता हूं; क्योंकि उन्होंने हाथ में लाठी पकडी है ।’’
हममें से किसी ने उसे यह नहीं सिखाया था । वह प.पू. भक्तराज महाराजजी को ‘श्री लाठी बाबा’ और प.पू. डॉक्टरजी को ‘बाबा’ कहता है । वह शिशुवर्ग में जाते समय बाबा को (प.पू. डॉक्टरजी को) साथ लेकर जाता था । उसे आदत हो गई है । बाबा को साथ लेकर जाना और बाबा के साथ ही रहना । उसके पिता कार्यालय जाते थे, तब वह उन्हें बाबा को साथ ले जाने का स्मरण करवाता था । हम यहां आ रहे थे, तब उसने कहा, ‘दादाजी बाबा को साथ लेकर ही बाबा से मिलने जाना है ।’ ऐसा प्रतीत होता है, मानो वह प्रति क्षण प.पू. डॉक्टरजी के साथ है ।
कु. तेजल : पू. भैया, जैसा आप करते हैं, वही संस्कार उस पर हुए हैं । प.पू. डॉक्टरजी को सदैव अपने साथ रखना है ।