इलिनॉय (अमेरिका) – कहते हैं कि व्यक्ति को अपने क्रोध पर नियंत्रण रखना चाहिए । कार्यालय में काम करते समय हम जितने शांत रहेंगे, उतना ही कार्यालय का वातावरण भी प्रसन्न रहता है । इसी को आज की भाषा में ‘असरटिवनेस’ कहते हैं । असरटिवनेस अर्थात ‘अपनी बात शांत और संयमित पद्धति से सामने रखना और इसके साथ ही तत्त्वनिष्ठ रहते हुए भी गलत बातों को भी न स्वीकारना !’ ऐसा होते हुए भी ‘अमेरिकन साइकोलॉजिकल असोसिएशन’ नामक वैद्यकीय संस्था द्वारा किए गए अध्ययन में ऐसा पाया गया है कि क्रोध के कारण व्यक्ति की फलनिष्पत्ति बढ जाती है और वह अपने ध्येय को साध्य करने के लिए एक शक्तिशाली प्रोत्साहक के रूप में सामने आता है ।
१. ‘जर्नल ऑफ पर्सनैलिटी एंड सोशल सायकोलॉजी’में प्रकाशित इस शोध अध्ययन के अनुसार सुख, दु:ख अथवा तटस्थता, इन भावनाओं की तुलना में क्रोध भावना से सर्वाधिक अच्छे परिणाम मिले ।
२. इस अध्ययन के लिए १ सहस्र लोगों का परीक्षण किया गया । उसमें ध्यान में आया कि सभी प्रयोगों में क्रोध के कारण लोगों को अपना लक्ष्य प्राप्त करने की क्षमता में वृद्धि हुई है ।
३. शोधनिबंध के मुख्य लेखक हीथर लेंच द्वारा प्रकाशित प्रसिद्धीपत्रक में कहा है कि आवाहनों के सामने जानेपर लक्ष्य प्राप्त करने हेतु बल मिलता है । सामान्यत: सुख एक आदर्श स्थिति होने से आनंदप्राप्ति को लोग प्रमुखरूप से अपने जीवन का ध्येय मानते हैं । सकारात्मक भावना, मानसिक स्वास्थ्य और कल्याण के लिए आदर्श मानी जाती हैं; परंतु हमने शोध में पाया कि भावनाओं का मिश्रण फिर उसमें क्रोध जैसी नकारात्मक भावना भी होने पर उसके सबसे अच्छे परिणाम हैं ।
४. इस शोधन में क्रोध को एक साधना के रूप में उपयोग करने पर उसका सकारात्मक परिणाम दिखाई देता है ।
५. ‘गुड शाऊट’ नामक संस्था के प्रमुख सूत्रधार निकोला केम्प के अनुसार व्यावसायिक दृष्टिकोण से देखा जाए, तो यह ध्यान में लेना आवश्यक है कि क्रोध एवं निराशा सर्जनशीलता एवं रचनात्मकता प्राप्त करने के लिए एक बडा उपकरण है । हमें इसे पहचानना चाहिए कि कार्यक्षेत्र में किसी बात पर क्रोधित होना आवश्यक है और किस बात को गंभीरता से आवाहन देना आवश्यक है ! इससे आपको अपनी भूमिका की शक्ति का अनुभव होगा ।