नई देहली – सर्वोच्च न्यायालय ने एक याचिका पर सुनवाई के समय स्पष्ट किया कि संसद में राजनीतिक विरोधियों के संबंध में अपमानजनक वक्तव्य देना कोई अपराध नहीं है । मत के बदले उत्कोच (घूस) लेने के आरोप में झारखंड मुक्ति मोर्चा विधायक सीता सोरेन के विरुद्ध एक प्रकरण की सुनवाई करते हुए सर्वोच्च न्यायालय ने यह टिप्पणी की । प्रकरण की सुनवाई ७ न्यायमूर्तियों की पीठ के समक्ष हो रही थी । दो दिन की सुनवाई के उपरांत न्यायालय ने इस प्रकरण में निर्णय सुरक्षित रखा है ।
सुप्रीम कोर्ट ने संसद में अपमानजनक बयानबाजी को अपराध मानने के प्रस्ताव को खारिज कर दिया है। सुप्रीम कोर्ट ने 5 अक्टूबर को कहा कि सदन के भीतर राजनीतिक विरोधियों के लिए अपमानजनक बयान देना कोई अपराध नहीं है।https://t.co/oGmoNMlVSh#SupremeCourt
— Dainik Bhaskar (@DainikBhaskar) October 6, 2023
१. सीता सोरेन की ओर से उपस्थित वरिष्ठ वकील राजू रामचंद्रन ने लोकसभा में बी.एस.पी. सांसद दानिश अली के विरुद्ध बी.जे.पी. सांसद रमेश बिधूडी के कुछ समय पूर्व अपमानजनक वक्तव्य का उल्लेख करते हुए कहा कि संसद और विधान सभा में मत विभाजन या भाषण से संबद्ध कोई भी कृति चाहे वह उत्कोच लेना हो या षड्यंत्र, वह किसी भी कार्रवाई से मुक्त है।
२. महाधिवक्ता आर. वेंकटरमानी ने कहा कि राज्यसभा चुनाव के लिए मतदान का सदन की कार्यवाही से कोई लेना-देना नहीं है । इसलिए सीता सोरेन द्वारा राज्यसभा चुनाव में मत देने के लिए उत्कोच लेने का प्रकरण वैधानिक क्षेत्र में आता है ।
३. महाधिवक्ता तुषार मेहता ने तर्क दिया कि उत्कोच लेने को कभी भी छूट नहीं दी जा सकती । भले ही अपराध संसद या विधान सभा में भाषण या मतदान से संबंधित हो, या सदन के बाहर किया गया हो ।
सांसद और विधायक को सदन में बोलने की पूर्ण स्वतंत्रता !सर्वोच्च न्यायालय में प्रविष्ट याचिका में कहा गया था कि ‘संसद और विधानसभा में मानहानिकारक वक्तव्यों सहित किसी भी कृति को कानून द्वारा छूट नहीं दी जानी चाहिए, जिससे आपराधिक षड्यंत्र के अंतर्गत ऐसा करनेवालों पर दंडात्मक कानून लागू किया जा सके ।’ न्यायालय ने कहा कि सदन में सांसद और विधायक चाहे कुछ भी कहें , उन पर कानूनी कार्रवाई नहीं की जा सकती । संसद एवं विधान सभा सदस्यों को सदन में बोलने की पूर्ण स्वतंत्रता है । |