‘देवालय में श्रद्धालु भगवान का भक्तिभाव से दर्शन करते हैं । देवालय के पुजारी कभी-कभी प्रसाद के रूप में कुछ वस्तुएं देते हैं, उदा. भगवान को अर्पण की गई मालाएं, वस्त्र इत्यादि । भगवान को अर्पित वस्तुओं में चैतन्य होता है । उसके कारण ऐसी वस्तुओं को पास रखने से भक्तों को चैतन्य मिलता है । आज वातावरण अत्यंत रज-तमप्रधान बन गया है । अतएव चैतन्यमय वस्तुओं पर रज-तम का आवरण आने की बहुत बडी संभावना होती है; इसलिए ऐसी किसी भी वस्तु का उपयोग करने से पूर्व उस पर कष्टदायक आवरण तो नहीं है ?, यह सुनिश्चित करें ।
१. वस्तु पर आवरण है, यह कैसे पहचानें ?
वस्तु हाथ में पकडने पर ‘मन को क्या प्रतीत होता है ?’, इसका अध्ययन करें । वस्तु को हाथ में पकडने पर मन को कष्टदायक अनुभव हो, तो मान लें कि ‘वस्तु पर आवरण है ।’ वस्तु को हाथ में पकडने पर मन को अच्छे स्पंदन प्रतीत होने पर यह समझ जाएं कि ‘वस्तु पर आवरण नहीं है ।’ कभी-कभी मन को कष्टदायक अथवा अच्छे दोनों प्रकार के स्पंदन प्रतीत होते हैं । ऐसी स्थिति में भी समझ जाएं कि ‘वस्तु पर आवरण है ।’
२. वस्तु की शुद्धि करने पर उसमें विद्यमान कष्टदायक स्पंदन नष्ट होना
जुलाई २०२३ में एक श्रद्धालु को प्रसाद के रूप में शिवलिंग पर अर्पित रुद्राक्ष की मालाएं मिली थीं । उन्होंने ये मालाएं एक आध्यात्मिक संस्था को प्रेमपूर्वक भेंट की । इन मालाओं को हाथ में लेने पर उनपर कष्टदायक आवरण प्रतीत हुआ । इन मालाओं का ‘यूनिवर्सल औरा स्कैनर’ (यू.ए.एस.) उपकरण द्वारा तथा लोलक से परीक्षण किया गया । तब मालाओं में बडी मात्रा में नकारात्मक ऊर्जा एवं अल्प मात्रा में सकारात्मक ऊर्जा पाई गई । इन मालाओं पर लोलक टांगने पर उसने मालाओं में नकारात्मक स्पंदन दर्शाए । उसके उपरांत इन मालाओं की शुद्धि (टिप्पणी) कर पुनः उनका परीक्षण करने पर पाया गया कि मालाओं में विद्यमान नकारात्मक ऊर्जा नष्ट होकर उसके स्थान पर सकारात्मक ऊर्जा अत्यधिक बढ गई है । इन मालाओं पर लोलक टांगने पर उसने मालाओं में सकारात्मक स्पंदन हैं, ऐसा दर्शाया ।
(टिप्पणी – वस्तु की शुद्धि करने का अर्थ है, उस पर बना कष्टदायक आवरण निकालना ! आवरण निकालने की विभिन्न पद्धतियां हैं, उदा. कुछ समय तक वस्तु को धूप में रखना, वस्तु को सात्त्विक उदबत्ती (अगरबत्ती) का धुआं दिखाना, वस्तु की कुदृष्टि निकालना (नजर उतारना) इत्यादि)
‘वस्तु के छायाचित्र पर आया आवरण निकाला, तो क्या उससे प्रक्षेपित होनेवाले स्पंदनों में कोई परिवर्तन होता है ?’, इसका अध्ययन करने के लिए हमें एक प्रयोग सूझा । इसमें साधक ने नामजप करते हुए लगभग ३ से ५ मिनट तक मालाओं के छायाचित्रों पर आया आवरण हाथ से निकाला । ऐसा करने पर हमारे ध्यान में आया कि उससे प्रक्षेपित नकारात्मक स्पंदन नष्ट हुए तथा उसमें विद्यमान सकारात्मक स्पंदनों में बहुत वृद्धि हुई ।
संक्षेप में कहा जाए, तो जब वस्तु पर आवरण है, उस समय उसका उपयोग किया; तो श्रद्धालु को उसमें विद्यमान कष्टदायक स्पंदनों से कष्ट हो सकता है । ऐसा न हो; इसके लिए उसकी शुद्धि करने के उपरांत ही उसका उपयोग करना उचित है !’
– श्रीमती मधुरा धनंजय कर्वे, महर्षि अध्यात्म विश्वविद्यालय, गोवा. (१२.७.२०२३)
ई-मेल : [email protected]