(द्रमुक का अर्थ है द्रविड मुन्नेत्र कळघम् – द्रविड प्रगति संघ)
तमिलनाडु में २ सितंबर को ‘सनातन उन्मूलन सम्मेलन’ का आयोजन किया गया था । इस परिषद में तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एम.के. स्टालिन के कुलदीपक ने सनातन धर्म को विभिन्न प्रकार की संक्रामक बीमारियों की उपमाएं देकर अनादर किया । इस कुलदीपक का नाम उदयनिधि (तमिलनाडु राज्य के युवा कल्याण एवं खेलमंत्री उदयनिधि स्टालिन) है । उनके द्वारा सनातन धर्म के विषय में किया गया वक्तव्य उनकी बुद्धि अस्त होने का दर्शक है । मैं ऐसा क्यों कह रहा हूं ?, यह मैं इस लेख में कारणों सहित स्पष्ट कर रहा हूं ।
१. सनातन धर्म को नष्ट करना, काल के लिए भी असंभव है !
विश्व के अनेक विद्वानों ने हिन्दू धर्म एवं उसकी संस्कृति अर्थात सनातन धर्म के विषय में गौरवपूर्ण उद्गार व्यक्त किए हैं । सनातन धर्म की विशेषता यह है कि यह धर्म सृष्टि के आरंभ से पूर्व भी था, साथ ही सृष्टि के नष्ट होने के उपरांत भी उसका अस्तित्व रहेगा । इसलिए सनातन धर्म को कोई सामान्य मनुष्य तो क्या, काल भी नष्ट नहीं कर पाएगा । जो काल के पाश से मुक्त है अथवा जिस पर काल की सत्ता नहीं चलती, ऐसे सनातन को मिटाने के स्वप्न यदि कोई देखता है, तो उस मनुष्य की बुद्धि अस्त हो गई है, ऐसा कहा जा सकता है ।
२. सनातन धर्म को मिटाने का निश्चय करनेवालों की बुद्धि अस्त हुई है !
इस सनातन धर्म के आधारभूत ग्रंथ हैं, वेद, उपनिषद एवं गीता ! देश-विदेश के अनेक विद्वानों ने मुक्तकंठ से विश्व के साहित्य में इन ग्रंथों के सर्वाेच्च होने की बात कही है । विश्व के कुछ चुनिंदा विद्वानों ने सनातन धर्म के ग्रंथों के विषय में जो उद्गार व्यक्त किए हैं, उसे जब हम खंगालते हैं, उस समय हमें यह सुनिश्चित हो जाएगा कि जिन लोगों ने सनातन धर्म को मिटाने का निश्चय अथवा संकल्प लिया है, उनकी बुद्धि अस्त हुई है ।
३. पाश्चात्य दार्शनिक विक्सर कर्जन द्वारा वैदिक साहित्य के विषय में व्यक्त गौरवोद्गार !
पाश्चात्य दर्शन के इतिहास में विख्यात विक्सर कर्जन ने एक बडी जनसभा में वैदिक साहित्य के विषय में गौरवोद्गार व्यक्त करते हुए कहा, ‘‘जब हम यूरोप में हाल ही में तीव्र गति से फैल रहे पूर्वी दर्शन का, विशेष रूप से भारत के महान एवं अतिरसमय दर्शनशास्त्र के अत्यंत रहस्यपूर्ण तथा बहुमहत्त्वपूर्ण वैदिक ग्रंथ भंडार का बारीकी से अवलोकन करते हैं, तब वेद एवं वेदांतों से सुशोभित तात्त्विक रत्नसागर में पाश्चात्य पंडितों की पृथक्करणात्मक दृष्टि को भी चकाचौंध करनेवाले तथा प्राकृतिक रमणीय अमौलिक अपार सिद्धांतरत्न पाते हैं । उस पर विचार करने पर हम यूरोपियनों की बुद्धि अतिमुग्ध एवं स्तब्ध हो जाती है । कुछ दर्शनशास्त्र के प्रमेयों पर विचार करते समय इससे पूर्व भी कभी-कभी यूरोपियनों की बुद्धि स्तब्ध रह जाने के कुछ प्रसंग हुए थे । भारतीय प्रमेय उससे भी अधिक गहन एवं महत्त्वपूर्ण हैं । विश्व का मार्गदर्शन करनेवाले विश्वभाग्योदय के इस अपौरुषेय वैदिक साहित्य के आगे तथा उसके उस भव्य-दिव्य को चाहे कितना भी अस्वीकार किया जाए; परंतु अंततः हम सभी को भावावेश में घुटने टेककर मस्तक झुकाने पर विवश होना पडता है, इस प्रकार का उसका विलक्षण दैवी प्रभाव
है । ‘हम कौन हैं ?’, इसे समझकर सभी को मूलस्वरूप का अचूक परिचय करानेवाले तथा आत्मसाक्षात्कार कराकर सभी का उद्धार करनेवाले इस मूलग्राही सर्वोत्तम दर्शन का जन्मस्थान ही भारतवर्ष होने के कारणल अखिल मानवजाति के शुद्ध धर्म की यह सच्ची मातृभूमि है ।’’
४. पाश्चात्य पंडित जपोलिएट द्वारा वेदों के विषय में व्यक्त सत्य
जपोलिएट नामक एक पाश्चात्य पंडित है । उन्होंने ‘द बाइबल इन इंडिया’ नामक एक ग्रंथ में सृष्टि की उत्पत्ति के विषय में चल रहे अनेक मतमतांतरों का उल्लेख किया । उसके उपरांत वैदिक मत का उल्लेख करते हुए उन्होंने लिखा… ‘‘सभी धर्म के लोग अपने-अपने धर्मग्रंथ को ईश्वरप्रदत्त मानते हैं । उन सभी ईश्वरप्रदत्त धर्मग्रंथों में ‘अपौरुषेय वेद’ एक ऐसा ईश्वरप्रदत्त धर्मग्रंथ है, जिसके विचार उनमें विस्तार से क्रमसृष्टि का उपदेश होने के कारण आधुनिक विज्ञान से मेल खाते हैं । ये विचार हमें विवेकपूर्ण प्रतीत होते हैं तथा स्वीकार होते हैं । इस एक वेदग्रंथ में जांच-पडताल कर स्वीकार किया हुआ सत्य दिखाई देता है ।’’
५. आधुनिक विज्ञान वेदों में निहित अबाधित सिद्धांत का केवल अनुकरण ! – व्हीलर विल्कॉक्स, अमेरिका
अमेरिका के व्हीलर विल्कॉक्स नामक एक विद्वान ने इसी प्रकार का मत प्रकट करते हुए कहा, ‘‘भारत के अतिप्राचीन वैदिक धर्म के विषय में हमने पूर्णतया सुना एवं पढा है । भारत उन अत्यंत महत्त्वपूर्ण एवं श्रेष्ठ वेदों का जन्मस्थान है । इन वेदों में संपूर्ण दिव्य जीवन के धार्मिक तत्त्वों का केवल विवेचन नहीं है, अपितु अब तक के अखिल विज्ञान के विभिन्न शास्त्रों द्वारा प्रमाणित कर प्रचार में लाए गए तथा सत्य के रूप में विश्वसनीय अखिल वैज्ञानिक सिद्धांत का भी विवेचन है । तपोबल से वेदों का अविष्कार करनेवाले वेदद्रष्टा ऋषियों को इलेक्ट्रिसिटी (बिजली), रेडिएम्स, इलेक्ट्रॉनिक्स एवं विमान इत्यादि का ज्ञान था । आज का आधुनिक विज्ञान अर्थात वेदों में निहित अबाधित सिद्धांत का अनुकरण मात्र है ।’’
६. ‘उपनिषद’ ही मेरे जीवन की संतुष्टि ! – शोपेनहावर, जर्मन चिंतक
वैदिक साहित्य के विषय में स्वयं का मत एवं अनुभव प्रकट करते हुए शोपेनहावर नामक जर्मन चिंतक कहते हैं, ‘‘मनुष्य की मनोभूमिका को उन्नति की पराकाष्ठा तक पहुंचाकर मनुष्यजाति पर बडे उपकार करनेवाले उपनिषदों के अध्ययन के बिना संपूर्ण विश्व में इतना लाभकारी एवं उन्नतिकारक अन्य कोई भी श्रेष्ठ अध्ययन नहीं है । ‘उपनिषद’ ही मेरे जीवन की संतुष्टि हैं ! उनके आश्रय से ही मैं अत्यंत सुखी एवं संतुष्टिमय दिव्य जीवन अनुभव कर पा रहा हूं । अंत में इसकी छत्रछाया में ही निरतिशयक सुख-शांति से मैं शरीर त्याग दूंगा ।’’
७. संपूर्ण विश्व में वैदिक तत्त्वज्ञान के अतिरिक्त कोई अन्य श्रेष्ठ तत्त्वज्ञान नहीं है ! – मैक्स मूलर, संस्कृत अध्येता
संस्कृत अध्येता मैक्स मूलर ने शोपेनहावर के इस मत पर अपनी सम्मति का हस्ताक्षर करते हुए कहा, ‘‘शोपेनहावर द्वारा किए गए इस वक्तव्य की दृढता के लिए किसी को मेरे इस हस्ताक्षर की अपेक्षा हो, तो मैं अपने सकल धर्म के तथा तत्त्वज्ञान के दीर्घ परिश्रम के अंतिम निर्णय के रूप में बडे संतोष के साथ करने के लिए तैयार हूं । आत्मतृप्ति से सवेरे मृत्यु का स्वागत करने के लिए आवश्यक तैयारी के लिए तत्त्वज्ञान का अध्ययन ही कारण सिद्ध होता है । ऐसा हुआ, तो मुझे संपूर्ण विश्व में एक वैदिक तत्त्वज्ञान के अतिरिक्त अन्य कोई भी श्रेष्ठ तत्त्वज्ञान कहीं दिखाई नहीं देता तथा वह होगा, ऐसा भी मुझे नहीं लगता ।”
८. ‘श्रीमद्भगवद्गीता’ के विषय में हंबोल्स एवं वॉरन हेस्टिंग्ज द्वारा व्यक्त उद्गार
अ. ‘श्रीमद्भगवद्गीता’ ग्रंथ के विषय में हंबोल्स कहते हैं, ‘‘सभी दृष्टि से ही अत्यंत सुंदर अपितु विश्व की सभी भाषाओं में से संपूर्ण ग्रंथों में तत्त्वज्ञान का सर्वाेपरि उचित एक ही अचूक ग्रंथ है ‘भगवद्गीता’ !’’
आ. वॉरन हेस्टिंग्ज ने कहा था, ‘‘गंभीरतापूर्ण विचारधारा, मन के लिए उचित संयुक्तिक विवेचन एवं लयबद्ध छंद इत्यादि सूत्रों से युक्त ‘गीता’ ग्रंथ संपूर्ण विश्व में ही अतुलनीय है ।
९. उदयनिधि की बुद्धि अस्त हुई है, यही सत्य है !
सनातन धर्म, वेदों, उपनिषदों एवं भगवद्गीता जैसे सनातन धर्म के विभिन्न ग्रंथों के विषय में विद्वानों के मत जान लिए जाए, तो तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एम.के. स्टालिन के कुलदीपक उदयनिधि की बुद्धि अस्त हुई है, इसकी किसी को भी प्रतीति होगी । उदयनिधि कहते हैं, ‘‘सनातन धर्म सामाजिक न्याय एवं समानता के विरुद्ध है ।’’ विश्व के विख्यात चिंतक ‘सनातन धर्म के सभी ग्रंथ अलौकिक हैं तथा विश्व में सर्वश्रेष्ठ ग्रंथ हैं’, ऐसा गर्व के साथ उल्लेख करते हैं; इसलिए उदयनिधि सनातन धर्म के विषय में जो अनादरपूर्ण वक्तव्य देते हैं, उससे उनकी बुद्धि अस्त हो गई है, यही प्रमाणित होता है ।
(संदर्भ : ‘आर्य संस्कृति’, लेखक : प.प. (परमहंस परिव्राजकाचार्य) श्रीधर स्वामी एवं ‘वेदांविषयी पाश्चात्य मत’, – केशव भिकाजी ढवळे प्रकाशन, तृतीय संस्करण वर्ष १९९७)
– श्री. दुर्गेश जयवंत परुळकर, हिन्दुत्वनिष्ठ व्याख्याता एवं लेखक, डोंबिवली, महाराष्ट्र. (६.९.२०२३)