पाक की राजनीतिक उलझन !

पाकिस्‍तान के भूतपूर्व प्रधानमंत्री इमरान खान को ३ वर्ष के कारावास का दण्ड

पाकिस्‍तान का इतिहास देखें, तो ध्यान में आता है कि वह सैन्य हस्‍तक्षेप से सत्ता-परिवर्तन, हत्‍या, अस्थिरता तथा अत्यधिक राजनीतिक प्रतिद्वंद्विता से भरा है । भारत से सदा द्वेष करनेवाले पाकिस्‍तान के भूतपूर्व प्रधानमंत्री इमरान खान को अभी अभी ‘तिजोरी(तोशाखाना)’ प्रकरण में ३ वर्ष के कारावास का दण्ड हुआ है । अब कारागृह में रहते हुए इमरान खान को असहज लग रहा है । इमरान खान के विरुद्ध दर्जनों अपराध प्रविष्ट किए गए हैं, उनसे विरोधियोें ने लाभ उठाया । खान पर आरोप लगाया गया था कि प्रधानमंत्री रहते मिले महंगे उपहारों को सरकारी तिजोरी में न देकर उन्हें बेचकर उन्होंने भ्रष्‍टाचार किया था । अबतक पाकिस्‍तान में सेना के विरुद्ध भूमिका अथवा निर्णय लेनवाला नेता अथवा प्रधानमंत्री चाहे तो सत्ता से हट जाता है अथवा वह भ्रष्‍टाचार के प्रकरण में दण्डित होता है, यह निश्चित है, साथ ही खान को दण्डित करने में वहां की सर्वशक्तिशाली सेना का हाथ है । सत्ता से हटने के उपरांत इमरान खान ने ‘लौंग मार्च’ कर शाहबाज शरीफ तथा सेना, दोनों के विरुद्ध लोगों में रोष निर्मित किया था ।

अबतक पाकिस्‍तान में जुल्‍फीकार अली भुट्टो से लेकर उनकी कन्‍या बेनजीर भुट्टो तक तथा नवाज शरीफ से लेकर शाहीद खान अब्‍बासी तक अनेक वर्तमान तथा भूतपूर्व प्रधानमंत्रियों को कठोर दण्ड सुनाकर राजनीति की परिधि से बाहर करने के प्रकरण वहां नियमित होते रहे हैं । जुल्फीकार अली भुट्टो को तो फांसी दी गई । सेना से त्रस्त हो कर बेनजीर भुट्टो अथवा नवाज शरीफ देश छोडकर भाग गए थे । परवेज मुशर्रफ जैसे भूतपूर्व सेना प्रमुख को भी पलायन करना पडा था । इसलिए इमरान खान के साथ जो हो रहा है, उसमें कोई आश्चर्य नहीं है । स्वयं खान को भी सेना ने ही बल दिया था । उस समय भारी पड रहे नवाज शरीफ के विरुद्ध सेना नया नेता चाहती थी, जो इमरान खान के रूप में मिला था; किंतु खान ने सैन्य व्‍यय अल्प करने का निर्णय लिया । परिणामस्वरूप सेना की शक्ति विरोधियोें के साथ हो गई तथा अविश्वास प्रस्ताव सम्मत कर इमरान खान को पदच्युत किया गया । सेना द्वारा अवांछित भूमिका लेने से खान को हटाया गया । राजनीतिक नेताओं को अपनी आज्ञा के अनुसार नचाने की सेना की नीति कार्यरत है । पाकिस्‍तान के लिए दुर्घटनाएं नई नहीं हैं, सेना का विद्रोह कोई नया नहीं, राजनीतिक नेताओं को बंदी बनाना, उनकी हत्‍या होना तथा उनसे प्रतिशोध की राजनीति भी नई नहीं है । इमरान खान की बंदी के पश्चात पाकिस्‍तान में हिंसा तथा आगजनी आरंभ हो गई तथा उनके समर्थकाें ने सेना मुख्‍यालय पर मार्च निकाला । एक ओर पाकिस्‍तान महंगाई के उच्चतम शिखर पर है, जिससे जीवनावश्यक वस्‍तुओं का अभाव है,पाकिस्‍तान की अर्थव्यवस्था का स्तर गिरा है; किंतु इमरान खान काे मिले दंड ने यह सिद्ध कर दिया है कि वहां की राजनीति का स्वरूप परिवर्तित होने तथा उसे देश की भलाई की दिशा में जाने की कोई संभावना नहीं है ।

सातत्‍य से हो रही भारत विरोधी राजनीति !

न केवल पूर्व प्रधानमंत्री इमरान खान भ्रष्ट हैं, अपितु उनकी वर्तमान पत्नी बुशरा बीबी एवं अन्य पीटीआई नेताओं पर वित्तीय गबन प्रकरण में फंसे प्रतिष्ठानको संरक्षण देने के लिए अरबों रुपए की रिश्वत लेने का आरोप है । पाकिस्तान की इन घटनाओं ने देश की राजनीतिक, सामाजिक एवं आर्थिक विकास पर लक्षणीय प्रभाव डाला है । इस देश में प्रथम सैन्य विद्रोह वर्ष १९५८ में हुआ । पाकिस्तान में सत्ता परिवर्तन के अनेक उदाहरण हैं जब सेना ने सीधे हस्‍तक्षेप किया अथवा षड्यंत्र रचा । धर्म के नाम पर भारत से अलग हुए पाकिस्‍तान में लोकतंत्र कभी जम ही नहीं पाया ऐसा नहीं, अपितु अपनी जडें ही नहीं जमा पाया । इससे देश को अनेक दशकों तक सैन्य शासन झेलना पडा । राजनीतिक नेताओं की हत्‍या तो वहां की परंपरा ही बन गई थी । इसीलिए इमरान खान को केवल बंदी बनाकर ३ वर्ष कारावास का दण्ड, इसे तो हल्की कार्यवाई ही कहनी पडेगी । इस घटना से पाकिस्‍तान की राजनीति में शत्रुता बढेगी तथा उससे उस देश के महत्त्वपूर्ण प्रश्नों की अनदेखी होगी । पाकिस्‍तान ने आतंकवादी कार्यवाहियों एवं सुरक्षा पर जितना व्यय किया है, उतना व्‍यय देश के विकास कार्याें पर किया होता, तो आज पाकिस्‍तान की स्थिति भिन्न होती । ‘भारत में इस्‍लामोफोबिया है, मुसलमानाें पर अत्याचार किया जाता है’, उन्होंने ऐसी बकवास भी की थी । पूरे विश्व में भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदीजी ने जो प्रशंसा पाई है अथवा भारत की कीर्ति फैलाई है, उसकी तुलना में अबतक पाकिस्‍तान के किसी प्रधानमंत्री ने कोई प्रशंसा नहीं पाई, इसके विपरीत ‘आतंकवादी देश’ के प्रधानमंत्री की ही उपाधि पाई है !

पाकिस्‍तान में अराजकता की स्थिति होने से तथा देश की अर्थव्‍यवस्‍था शिथिल होने से पाकिस्‍तान सदैव सऊदी अरेबिया, चीन, रूस तथा अमेरिका से भीख मांगता है । पाकिस्‍तान की सत्ता में कोई भी आए, उनका भारतद्वेष रहता ही है । अपने देश में वे एक-दूसरे के विरोधी होंगे; किंतु भारत के विरोध पर वहां उनकी राजनीति होती रहती है । कोई भी देश कानून के शासन, शांति तथा स्थिरता के बिना प्रगति नहीं कर सकता । पाकिस्‍तान में शांति नहीं देखी गई है तथा देश को स्थिरता की आवश्यकता है । इसलिए एक ओर उस देश के साथ ही स्‍वतंत्र हुआ भारत अंतरिक्ष में चंद्रयान ३ छोडकर वैश्विक महासत्ता बनने की दिशा में अग्रसर हो रहा है, तो पाकिस्‍तान में अभी भी वंश एवं कुल पर आधारित राजनीति का स्‍वरूप निश्चित होता है । ऐसे देश की जनता अन्‍न के बिना त्रस्त हो, तो भी वहां के राजनीतिक जनप्रतिनिधियों को उससे लेना-देना नहीं रहता । इमरान खान के दण्ड के उपरांत पाकिस्‍तान में एक नया अध्‍याय आरंभ होगा; किंतु वह प्रतिशोध, द्वेष तथा दुर्भावना का होगा ।

अन्न के बिना जनता त्रस्त हुई, तो भी पाकिस्‍तान के राजनीतिक जन प्रतिनिधि को उससे कोई लेना-देना नहीं !