न्यायालय का समय एक काल्पनिक विषय पर नष्ट किया जा रहा है,  जबकि अनेक प्रकरण प्रलंबित हैं !

समलैंगिक विवाह के विरुद्ध जैन आचार्य शिव मुनि का राष्ट्रपति को पत्र !

जैन आचार्य शिव मुनि

नई देहली – सर्वोच्च न्यायालय गत कुछ दिनों से समलैंगिक विवाह को मान्यता देने की मांग करने वाली याचिकाओं पर प्रतिदिन सुनवाई कर रहा है। समलैंगिक विवाह का हिन्दू संगठन, संत आदि पूर्व में भी विरोध करते रहे हैं। अब तो जैन मुनि भी विरोध करने लगे हैं। जैन आचार्य शिव मुनि ने इसका विरोध करते हुए राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को पत्र लिखा है। उन्होंने कहा, “यह अनुचित है कि एक काल्पनिक विषय पर न्यायालय का समय नष्ट किया जा रहा है, जबकि अनेक प्रकरण लंबित हैं।”

जैन आचार्य शिव मुनि द्वारा पत्र में प्रस्तुत सूत्र !

१. समलैंगिक विवाह को कानून द्वारा मान्यता नहीं दी जानी चाहिए। समलैंगिक विवाह जैसे विषयों पर चर्चा करने की कोई आवश्यकता नहीं है, जबकि आज भारत में इतने सारे विवाद न्यायालय में लड़े जा रहे हैं। गरीबी उन्मूलन, सबके लिए शिक्षा, प्रदूषण मुक्त पर्यावरण और जनसंख्या नियंत्रण पर कार्य  करने की आवश्यकता है। इन विषयों में सर्वोच्च न्यायालय कोई तत्परता नहीं दिखाता ।

२. भारत सभी धर्मों, जातियों और जनजातियों का देश है। समलैंगिक विवाह को यहां अनेक शताब्दियों से मान्यता नहीं दी गई है। विवाह का संबंध मानव की उन्नति से है।

३. समलैंगिकों के अधिकारों को सर्वोच्च न्यायालय द्वारा पहले ही संरक्षित किया जा चुका है। समलैंगिक विवाह एक मौलिक अधिकार नहीं, बल्कि एक संवैधानिक अधिकार हो सकता है। इसे विशेष विवाह अधिनियम के अंतर्गत मान्यता नहीं दी जानी चाहिए। यह अधिनियम महिलाओं और पुरुषों के लिए है।

४. विवाह एक सामाजिक संस्था है। अब उसे नष्ट नहीं किया जा सकता एवं उसे रूपांतरित भी नहीं किया जा सकता । भारत में विवाह महत्वपूर्ण है और यह एक महान संस्था है। यह समय के साथ प्रत्येक कसौटी पर खरी उतरी है। स्वतंत्र भारत में इन पाश्चात्य प्रथाओं को थोपने का प्रयास किया जा रहा है।