१. मनुष्य के जीवन में ८० प्रतिशत समस्याओं के पीछे आध्यात्मिक कारण होते हैं
‘मनुष्य के जीवन में आनेवाली ८० प्रतिशत समस्याओं के पीछे प्रारब्ध, अतृप्त पूर्वजों के लिंगदेह से कष्ट, अनिष्ट शक्तियों के कष्ट इत्यादि आध्यात्मिक कारण होते हैं ।’
२. कालमहिमा के अनुसार वर्तमान में अनिष्ट शक्तियों का प्रकोप होना
वर्तमान कलियुग में अधिकांश समाज धर्माचरण से विमुख हो गया है । जिसके कारण समाज एवं वातावरण में रज-तम कष्टदायक गुणों का प्रभाव बढ गया है । यह अनिष्ट शक्तियों के लिए पोषक होने के कारण उनका बल बहुत बढ गया है तथा उनका मनुष्य को कष्ट देने की मात्रा भी बहुत बढ गई है । आज सभी को कम-अधिक मात्रा में अनिष्ट शक्तियों का कष्ट है अथवा किसी को यदि आज कष्ट नहीं है, तो भविष्य में होने की संभावना हो सकती है ।
३. अनिष्ट शक्तियों के कारण होनेवाले कष्टों के उदाहरण तथा वह कष्ट दूर करने के लिए आध्यात्मिक स्तर पर उपचार करना आवश्यक
अनिष्ट शक्तियों के कारण होनेवाले कष्टों के कुछ उदाहरण आगे दिए हैं ।
अ. बहुत औषधियां लेने पर भी रोग ठीक न होना
आ. अकारण बार-बार नकारात्मकता या निराशा आना तथा अतिनिराशा के कारण कुछ लोगों के मन में आत्महत्या के विचार आना
इ. अकारण बार-बार असमंजस की स्थिति उत्पन्न होना
ई. सांसारिक अडचनों से अति त्रस्त होना
उ.साधना के बहुत प्रयास करने पर भी साधक की साधना अच्छी न होना
अनिष्ट शक्तियों के कारण होनेवाले उपरोक्त प्रकार के कष्ट दूर करने हेतु आध्यात्मिक स्तर पर उपचार करना आवश्यक है । इस हेतु ‘प्राणशक्ति प्रणाली उपचार-पद्धति’ अनुसार जप आदि उपचार ढूंढकर वह करने होते हैं । इन उपचार-पद्धतियों के संदर्भ में सनातन ने २ ग्रंथ प्रकाशित किए हैं । उन ग्रंथों का अध्ययन करें तथा आवश्यकतानुसार ज्ञाताओं से यह पद्धति सीख लें !
४. अनिष्ट शक्तियों द्वारा हिन्दू राष्ट्र की स्थापना के कार्य की दिशा एवं उसे गति देनेवाले कार्यक्रमों में निर्माण की जानेवाली अडचनें दूर करने के लिए आध्यात्मिक स्तर पर उपचार करना आवश्यक
वर्तमान कलियुग में अनिष्ट शक्तियां भूतल पर ‘आसुरी (अधर्म का) राज्य’ स्थापित करने के लिए प्रयासरत हैं । इसलिए वे हिन्दू राष्ट्र की (धर्मराज्य की, ईश्वरीय राज्य की) स्थापना के कार्य की दिशा एवं उसे गति देनेवाले कार्यक्रमों में अडचनें निर्माण करती हैं । इन अडचनों के कुछ उदाहरण आगे दिए हैं ।
अ. प्रशासन द्वारा कार्यक्रम को अनुमति नहीं मिलती अथवा अनुमति के लिए बार-बार जाना पडता है ।
आ. जातीय संगठनों का कार्यक्रम को अनुमति देने के लिए विरोध करना
इ. जिज्ञासुओं को कार्यक्रम में उपस्थित रहने में अडचनें आना
ई. कार्यक्रम के समय वर्षा अथवा तूफान आने की संभावना होना
उ. कार्यक्रम में मार्गदर्शन अथवा भाषण करने के थोडा समय पहले कुछ न होते हुए भी वक्ता की आवाज बैठ जाना, उसे ‘क्या बोलें’ यह न सूझना, उनकी प्राणशक्ति अल्प होना, उनके घर में अचानक पारिवारिक समस्या उत्पन्न होना
ऊ. कार्यक्रम के समय कुछ भी कारण न होते हुए संगणक-यंत्रणा (कंप्यूटर सिस्टम) अथवा ध्वनिक्षेपण-यंत्रणा (माइक सिस्टम) बीच में बंद पडना, समष्टि कार्य में आनेवाली उपरोक्त प्रकार की अडचनें दूर करने के लिए सूक्ष्म स्तर पर आध्यात्मिक उपचार ढूंढकर वे करने पडते हैं । इतना ही नहीं, जबकि ‘अनिष्ट शक्तियों द्वारा कार्य में अडचनें निर्माण करने पर नहीं; अपितु कार्य में अडचनें निर्माण न करें’, इसके लिए पहले से ही आध्यात्मिक स्तर पर उपचार करने आवश्यक हैं । क्योंकि, अनिष्ट शक्तियों का समष्टि कार्य में अडचनें निर्माण करने की मात्रा बहुत बढने के कारण ‘यह कार्य निर्विघ्न संपन्न होगा’ ऐसा हम नहीं कह सकते ।
५. समष्टि स्तर के कष्टों पर आध्यात्मिक उपचार ढूंढना एवं वह उपचार करना, इसके लिए आवश्यक पात्रता और उसका अध्यात्मशास्त्रीय आधार व्यष्टि स्तर पर कष्टों की तुलना में समष्टि स्तर पर आध्यात्मिक उपचार ढूंढना एवं वह करना कठिन होता है ।
अ. समष्टि स्तर पर कष्टों पर उपचार ढूंढने के लिए और वह प्रभावकारी करने के लिए सूक्ष्म जानने की क्षमता अधिक होनी चाहिए, तथा साधना का बल भी होना चाहिए, अर्थात साधना अच्छी होनी चाहिए । ऐसी साधना जिनकी है (उदा. संतों की) उनके सूक्ष्म ज्ञानेंद्रिय सक्षम होने से उन्हें कार्य में आई सूक्ष्म स्तरीय अडचनें, साथ ही आगे आ सकनेवाली सूक्ष्म की अडचनें समझ में आने से वे उनपर आध्यात्मिक उपचार ढूंढ पाते हैं । उपचार ढूंढते समय ‘ब्रह्मांड से पिंड तक’, यह अध्यात्म का सिद्धांत लागू होने से ब्रह्मांड की अर्थात समष्टि कार्य की अडचनें ‘प्राणशक्ति प्रणाली उपचार-पद्धति’ के अनुसार अपनी देह पर ढूंढ पाते हैं । तथा ढूंढे गए उपचार ‘पिंड से ब्रह्मांड तक’ इस सिद्धांत के अनुसार पिंड पर अर्थात हमारी देह पर करने से ब्रह्मांड पर अर्थात समष्टि पर उपचार अपने आप होते हैं ।
आ. समष्टि स्तर पर कष्टों पर उपचार ढूंढने के लिए एवं वह करने के लिए स्वयं को आध्यात्मिक कष्ट न हो; अन्यथा स्वयं को अनिष्ट शक्तियों का कष्ट होने की संभावना बढती है ।
‘समष्टि उपचार ढूंढने की एवं करने की स्वयं की क्षमता है कि नहीं’, यह समष्टि उपचार करनेवाले संत अथवा ज्ञाताओं से पूछें ।
६. भावी भीषण आपातकाल का विचार कर आध्यात्मिक उपचार अच्छे से ढूंढकर वह करने की क्षमता बढाएं, साथ ही साधना भी बढाएं !
आनेवाले तीसरे विश्वयुद्ध, तथा भूकंप आदि प्राकृतिक आपदाओं के काल में नामजप आदि स्वरूप के सूक्ष्म स्तर पर उपचार ढूंढने के लिए और वह करने के लिए किसी सक्षम साधक अथवा संत स्थानीय स्तर पर उपलब्ध होंगे ही ऐसा नहीं है । इसके लिए आपातकाल में भी दैनंदिन जीवन में अनिष्ट शक्ति के कष्ट से रक्षा हो, तथा हाथ में लिया हिन्दू राष्ट्र की स्थापना का कार्य निर्विघ्न संपन्न हो, इसके लिए सभी को अभी से आध्यात्मिक उपचार अच्छे से ढूंढकर वह करने की क्षमता बढानी चाहिए । इसके साथ ही अच्छे से साधना कर स्वयं का आध्यात्मिक बल भी बढाना चाहिए ।’
– (सच्चिदानंद परब्रह्म) डॉ. आठवले (८.१.२०२३)