एक बात भयावह रूप से स्पष्ट हुई है कि विज्ञान ने मानवता को पार लगाया है !’ सापेक्षता का सिद्धांत का शोध करनेवाले प्रतिभाशाली वैज्ञानिक अल्बर्ट आइंस्टीन के इस वक्तव्य का आज अधिक स्पष्ट रूप से अनुभव हो रहा है । दो दशक पूर्व तक यह विश्व मानसिक दृष्टि से भौगोलिक दूरी के संदर्भ में स्वाभाविक ही दूर था, जो इंटरनेट अर्थात सूचनाजाल के कारण निकट आता गया । ‘गूगल’ ने विश्व को मनोवांच्छित जानकारी की आपूर्ति कर मनुष्य के जीवन में आमूलाग्र परिवर्तन लाया । ‘फोर जी’ प्रणाली के कारण तो इसमें प्रचुर परिवर्तन आकर मनुष्य को यह जानकारी तीव्रगति से मिलने लगी । ऐसे में ही ‘आर्टिफिशियल इंटेलिजंस’ (एआई) अर्थात ‘कृत्रिम बुद्धि’ प्रणाली के कारण ‘आप क्या ढूंढते हैं ?’, ‘किसका अध्ययन करते हैं ?’, ‘आपकी रुचि किसमें है ?’ आदि सूत्रों का उपयोग कर आपको जो प्रिय है, उसके अनुरूप समाचार, लेख, वीडियो आदि की जानकारी देना आरंभ हुआ । प्रतिष्ठान उनके कार्यक्षेत्र के प्रति रुचि रखनेवाले लोगों को अपने ग्राहक बनाने के लिए अत्यंत चतुराई से इसका उपयोग करने लगे । परिणामस्वरूप अनेक देशों की राजनीति में भी उथलपुथल होने लगी ।
‘चैट जीपीटी’ क्या है ?
आधुनिक विज्ञान की शक्ति कहां तक कार्य कर सकती है ? इसका सर्वाेत्तम उदाहरण है ‘एआई’ ! अब तो इसमें भी एक क्रांतिकारी तूफान आया है । इस ‘एआई’ का ही सबसे अद्यतन स्वरूप है ‘चैट जीपीटी’ । नवंबर २०२२ में सैन फ्रांसिस्को के अमेरिकी प्रतिष्ठान ‘ओपन एआई’ ने यह प्रणाली कार्यान्वित की तथा देखते-देखते करोडों लोगों ने उसका उपयोग करना आरंभ भी किया ! हमारे द्वारा इस प्रणाली से कोई भी प्रश्न करने पर यह प्रणाली चुटकियों में उसका उत्तर देती है । जिस प्रकार हम किसी मनुष्य से संवाद (‘चैट’) करते हैं, ठीक उसी प्रकार यह प्रणाली हमसे बात करती है, साथ ही हमारे प्रश्नों का अत्यंत बुद्धिमानी से, आश्चर्यजनक पद्धति से तथा आवश्यकता पडने पर चतुराई से उत्तर देती है ।
‘जीपीटी’ अर्थात ‘जनरेटिव प्री-ट्रेंड ट्रांस्फॉर्मर’ ! यह ‘बॉट’ (प्रणाली) एक बडा ‘लैंग्वेज मॉडेल’ है तथा उसे पूछे गए प्रश्नों का वह सूक्ष्मता से विचार कर उत्तर देता है । ‘लैंग्वेज मॉडेल’ प्रणाली उससे पूछे गए प्रश्नों में समाहित शब्दों एवं वाक्यों के क्रम को सभी संभावनाओं तथा असंभावनाओं को सामने रख उसका अर्थ समझ लेने का प्रयास करती है एवं उसका प्रत्युत्तर करती है । ‘मशीन लर्निंग’ के (यंत्र शिक्षा के) अंतर्गत कुछ प्रगत प्रणालियों से जोडकर ‘चैट जीपीटी’ को सूक्ष्मता प्रदान की गई है ।
यह वरदान है अथवा अभिशाप ?
सामान्य जनता को ‘चैट जीपीटी’ के जटिल वैज्ञानिकी विषय की अपेक्षा उसके व्यावहारिक स्तर के उपयोग एवं हानियों को देखना आवश्यक है । गूगल जहां हमारे द्वारा ढूंढे जा रहे विषय की अचूकता से जानकारी देनेवाले विभिन्न जालस्थलों की मार्गिकाएं (लींक) उपलब्ध करा देता है, वहां ‘चैट जीपीटी’ हमें हमारे किसी भी प्रश्न का आवश्यक शब्दों में सीधे एवं संतोषजनक उत्तर देता है । इस प्रणाली को वर्ष २०२१ के उपरांत की पर्याप्त जानकारी संभवत: न होने पर भी किसी विषय पर निबंध, पत्र, ई-मेल लिखना अत्यंत सहजता से संभव होनेवाला है, अपितु वैसा हो रहा है । वैश्विक राजनीति, धर्म, दैनिक जीवन से लेकर ‘कोई कानूनी अभियोग कैसे लडना चाहिए ?’ यहां तक यह प्रणाली सहायकारी सिद्ध हो रही है । किसी भी प्रश्न का उत्तर ‘जादू की छडी’ समान यह प्रणाली देती है । पिछले माह में स्टैनफर्ड विश्वविद्यालय के १७ प्रतिशत छात्रों ने इस प्रणाली का उपयोग कर परीक्षा देकर सफलता भी प्राप्त की । मानवता के भविष्य में यह प्रणाली क्या उथलपुथल कर देगी, इसका थोडा सा अनुमान हम इससे लगा सकते हैं । पिछले सप्ताह में माइक्रोसॉफ्ट के जनक बिल गेट्स ने ‘चैट जीपीटी’ की तुलना ‘इंटरनेट’ से कर कहा कि ‘यह प्रणाली हमारा विश्व ही बदल देगी ।’ माइक्रोसॉफ्ट की सहायता से ‘ओपन एआई’ प्रतिष्ठान ने ‘चैट जीपीटी’ बनाई, अत: माइक्रोसॉफ्ट गूगल पर हावी होने का सफल प्रयास करेगा, ऐसा कहना अब साहसिक होगा; परंतु बाल्यावस्था में स्थित इस प्रणाली में निश्चित ही आधुनिक मानवीय जीवन में क्रांतिकारी परिवर्तन लाने की क्षमता है, ऐसा कहने में कोई आपत्ति नहीं है । विशालकाय प्रतिष्ठान ‘गूगल’ को भी यह भय सताने लगा है । इसके परिणामस्वरूप वर्ष २०१९ में गूगल छोडनेवाले उसके दोनों सहसंस्थापकों से उसने पुनः संपर्क किया है ।
इस सत्य को भूला नहीं जा सकता कि किसी भी प्रणाली को अंततः मनुष्य ही नियंत्रित करता है । अत: इस प्रणाली को नियंत्रित करनेवाले उस मनुष्य की मानसिकता कैसी है ?, इसी पर उस प्रणाली का कार्य निर्भर होता है । ‘चैट जीपीटी’ विश्व में विद्यमान सभी विषय देखती है; अत: वह उसका दिशादर्शन करनेवाले के अनुसार ही कार्य करेगी तथा उपयोगकर्ता के मन पर अपना प्रभाव अंकित करेगी । आज के विश्व में उछली विचारधारावाला युवावर्ग विज्ञान से संबंधित किसी भी नए शोध की ओर आकर्षित होकर उसके अधीन हो जाता है । इसलिए ‘चैट जीपीटी’ का उपयोग विवेक से करना आवश्यक है । इसके नैतिक एवं कानूनी परिणामों को समझने का दायित्व वैश्विक मानव समूह पर है । इसका कारण यह है कि ऑनलाइन विश्वकोश ‘विकिपीडिया’ अथवा ‘ट्विटर’ जिस प्रकार से वामपंथियों के चंगुल में आए, उसकी भांति इसकी भी स्थिति नहीं होनी चाहिए । यदि ऐसा हुआ, तो उसके महाविनाशकारी परिणाम देखने को मिलेंगे, यह निश्चित है !! ‘एपल’ के सहसंस्थापक स्टीव जॉब्ज ने कहा ही है, ‘वैज्ञानिक प्रणालियों के प्रति विश्वास की अपेक्षा लोगों पर किए जानेवाला विश्वास अधिक महत्त्वपूर्ण है !’ क्या यह क्रांतिकारी तूफान ‘चैट जीपीटी’ इस कसौटी पर खरा उतरेगा ?, यह देखना इसीलिए आवश्यक है !