समय का सदुपयोग हो, इसके लिए करने योग्य आवश्यक प्रयास !

दृढ निश्चय जैसे गुणों का अंगिकार कर दोष-निर्मूलन प्रक्रिया प्रभावकारी बनाएं !

१. खाली समय का उपयोग करना

नित्य जीवन में हमें कुछ मात्रा में खाली समय उपलब्ध होता है । ‘इस खाली समय का विनियोग कैसे किया जाए ?’, यह उस व्यक्ति पर, साथ ही उस समय की प्राप्त परिस्थिति पर निर्भर होता है । काल की प्राप्त परिस्थिति निरंतर परिवर्तित हो सकती है; परंतु व्यक्ति पर निर्भर खाली समय का हम उपयोग कर सकते हैं । जो व्यक्ति उत्साहित, ध्येयनिष्ठ एवं सकारात्मक होता है, वह खाली समय का सर्वाेत्तम उपयोग कर लेता है । इसके विपरीत चिंताग्रस्त, आलसी एवं नकारात्मक विचारवाला व्यक्ति खाली समय का दुरुपयोग ही करता है । खाली समय संपत्ति होती है । उसका एक भी क्षण व्यर्थ नहीं गंवाना चाहिए; क्योंकि उस समय को गंवाने का अर्थ है अपना सामर्थ्य गंवाना !

२. नियोजित कार्याें को समय रहते ही संपन्न कराना

नित्य के काम समय रहते ही करने चाहिए । विलंब से करने से वे कठिन हो सकते हैं । यदि आज का महत्त्वपूर्ण काम कल पर धकेला, तो वह अधिक ही कठिन लगने लगता है । इस प्रकार काम आगे धकेलने की प्रवृत्ति के कारण अनेक बार वह काम समय पर कभी भी पूर्ण नहीं होता तथा ऐसे व्यक्ति से सफलता भी दूर भागती है ।

३. घडी पर ध्यान देना

घडी पर दृष्टि रखकर अपने कार्य से संबंधित समय की प्रगति के विषय में समीक्षा करनी चाहिए । हमने घडी को अपना सहायक मानकर कार्य किया, तो समय का नियोजन करना बडी सहजता से संभव होता है ।

४. समय-सारणी बनाकर उसके अनुसार कार्य करना

पूर्वनियोजित स्थान पर, पूर्वनियोजित समय पर, पूर्वनियोजित पद्धति से तथा पूर्वनियोजित लोगों के सहयोग से पूर्वनियोजित काम पूर्ण करने के विवरण को ‘समय-सारणी’ कहा जाता है । पूर्वनियोजित काम जितना महत्त्वपूर्ण है, उतना ही महत्त्व ‘वह किस स्थान पर तथा किस प्रकार करना है ?’, इसका भी महत्त्व है । उदाहरणार्थ सरकारी कार्यालय में हमारा कोई काम हो, तो ‘वह काम करने में कितना समय लगेगा ?’, इसका विवरण जितना महत्त्वपूर्ण है, उतना ही इसका भी विवरण महत्त्वपूर्ण है ‘वह सरकारी कार्यालय घर से कितने समय की दूरी पर है ?’ प्रत्येक व्यक्ति को अपनी सुविधा के अनुसार अपनी स्वतंत्र समय-सारणी बनानी चाहिए । उसमें प्रत्येक दिन समय के अनुसार क्या कार्य करना है ?, उसका उल्लेख करें ।

५. पारिवारिक एवं कार्यालयीन समय का उचित उपयोग करना, संदेश लिखकर देना, कार्याें की व्याप्ति निकालना, कार्य करते समय सूची बनाना,

प्रधानता सुनिश्चित करना, अन्यों से सहायता लेना, एक ही समय पर विभिन्न कार्य करना तथा विकल्पों पर विचार करने से कार्य प्रभावकारी बन जाते हैं । व्यक्तिगत कार्य समेटते समय प्रार्थना, नामजप अथवा स्वसूचना सत्र करना, चल-दूरभाष पर बोलते-बोलते कचरा निकालना अथवा अन्य काम करने जैसे कृत्यों के कारण समय का सदुपयोग होता है ।

समय का सदुपयोग करनेवाले वीर सावरकर !

वीर सावरकर जून १९०६ में ‘बैरिस्टर’ बनने के लिए इंग्लैंड गए । इस अवधि में अध्ययन कर वे ‘बैरिस्टर’ बन गए । उनके इस अध्ययन के समय ही उन्होंने ‘मैजनी का जीवन चरित्र’ एवं ‘१८५७ का स्वतंत्रता संग्राम’ ग्रंथ लिखकर पूर्ण किए । इसी समय वे पुणे से प्रकाशित दैनिक ‘काळ’ के संवाददाता के रूप में लंडन से समाचार भेजते थे । उन्होंने इसी समय में ‘इंडिया हाउस’ की परछत्ती पर सेनापति बापट के साथ बम बनाने की विद्या के सफल प्रयोग किए तथा क्रांतिकारी संगठन ‘अभिनव भारत’ के लिए युवकों का संगठन किया । इन युवकों में से एक मदनलाल धिंगरा ने आगे जाकर कर्जन वायली का वध किया । अपनी आयु के २३ से २६ वर्ष के कालखंड में वीर सावरकर ने एक ही समय पर उक्त अनेक कार्य संपन्न किए । आप भी यदि निश्चय करें तथा ध्येयनिष्ठ हों, तो आपके द्वारा भी समय का सदुपयोग होगा तथा भव्यदिव्य कार्य संपन्न होंगे, इस विषय में संदेह न रखें !

समय व्यर्थ जाने के लिए कारणभूत दोष एवं उसके उपाय

१. समय की गंभीरता न होना

समय के प्रति गंभीरता न होने के कारण स्वयं का समय व्यर्थ हो जाने के प्रति अथवा अन्यों का समय व्यर्थ गंवाने के प्रति कुछ नहीं लगता । जो समय का सम्मान कर उसका उचित उपयोग करता है, उसका समय एवं लोग भी सदैव सम्मान करते हैं ।

२. अर्थहीन कृत्य सुखदायी प्रतीत होना

कुछ लोग मनोरंजन अथवा सुखप्राप्ति के लिए खाली समय में ‘इंटरनेट’ में खो जाते हैं अथवा ‘वीडियो गेम’ खेलने में व्यस्त हो जाते हैं । इसमें उनका अधिकांश समय व्यर्थ जाता है । अनेक लोग अनावश्यक गप्पे मारने में समय व्यर्थ गंवाते हैं ।
समय का महत्त्व मन पर अंकित करने के लिए हम मन को आगे दिए अनुसार स्वसूचना दे सकते हैं – ‘समय का महत्त्व प्रतीत न होना, इस दोष के कारण जब मैं …… (अपना समय व्यर्थ गंवानेवाला कृत्य लिखें ।) इस कृत्य में अर्थहीन समय व्यर्थ गंवाता रहूंगा, उस समय मुझे उसका तीव्रता से भान होगा तथा मैं तुरंत ही ………. (नियोजित कृत्य लिखें) करूंगा ।’

३. आलस

समय का पालन तथा उसका सदुपयोग न होने के पीछे आलस, यह दोष भी कारण होता है । आलस के कारण समय का पालन अथवा उसका सदुपयोग करने का उत्साह घट जाता है तथा व्यक्ति के अकार्यक्षम रहने में अथवा पलंग पर निरंतर लेटे रहने में सुख मानता है । अनेक बार नित्य काम करने में आलस करने के कारण उसके उपरांत वे काम अन्य महत्त्वपूर्ण कामों में तथा समय में बाधा उत्पन्न करते हैं अथवा अधिक समय लेते हैं । उदाहरणार्थ गाडी में पेट्रोल डालने में आलस करने के कारण उसके उपरांत परिजनों को अकस्मात चिकित्सालय में ले जाते समय गाडी में पेट्रोल डालने के लिए महत्त्वपूर्ण समय देना पडता है, साथ ही गाडी में पेट्रोल न भरने के कारण गाडी बीच में ही बंद पड जाती है । ऐसे समय में उस गाडी को सडक के एक ओर रखकर पेट्रोल पंप पर ऑटो से जाना, पेट्रोल खरीदना तथा उसके उपरांत पुनः गाडी के पास आने में समय एवं ऑटो के किराए का अपव्यय होता है ।

आलस इस दोष का निर्मूलन करने के लिए हम मन को निम्नानुसार स्वसूचना दे सकते हैं –

‘आलस के कारण मैं गाडी में पेट्रोल डालने के लिए पेट्रोल पंप पर जाना टालूंगा, उस समय उसका तीव्रता से भान होगा तथा मैं तुरंत ही गाडी में पेट्रोल डालने के लिए जाऊंगा ।’

उक्तत स्वसूचनाएं दिन में १५ बार देना अपेक्षित है । 

आध्यात्मिक कष्ट : इसका अर्थ है व्यक्ति में नकारात्मक स्पंदन होना । यदि व्यक्ति में नकारात्मक स्पंदन ५० प्रतिशत अथवा उससे अधिक मात्रा में है, तो उसे तीव्र कष्ट कहा जाता है; नकारात्मक स्पंदन ३० से ४९ प्रतिशत होना अर्थात मध्यम कष्ट; तथा नकारात्मक स्पंदन ३० प्रतिशत से अल्प होना, अर्थात मंद आध्यात्मिक कष्ट । आध्यात्मिक कष्ट प्रारब्ध, पितृदोष इत्यादि आध्यात्मिक स्तर के कारणों से होता है । किसी व्यक्ति के आध्यात्मिक कष्ट को संत अथवा सूक्ष्म स्पंदन समझनेवाले साधक पहचान सकते हैं ।