‘बादशाह अकबर के साथ की लडाई में महाराणा प्रताप की पराजय होने से उन्हें अपने सैनिकों के साथ वन में जाना पडा । उनके पास अनाज-खाद्यान्न नहीं था तथा उनके वहां होने की भनक लगी, तो मुगल आकर उन्हें पकड सकते थे । उन पर इस प्रकार की बहुत दयनीय स्थिति आई । इसमें उनका स्वाभिमान एवं देशप्रेम दर्शानेवाला एक प्रसंग दिया गया है ।
महाराणा प्रताप का संबंधी राजा मानसिंह अकबर के अधीन हो चुका था । बादशाह के दरबार में वह बडे ऐशोराम से रह रहा था । जब उसे महाराणा प्रताप की दयनीय स्थिति के विषय में ज्ञात हुआ, उस समय वह उनसे मिलने वन में गया । औपचारिक नमस्कार आदि होने पर उसने विषय में हाथ डालते हुए कहा, ‘‘अरे राणा, तुम इस वन में किसी निर्धन मनुष्य जैसी दयनीय स्थिति में हो; इसलिए मैंने दयालु अकबर बादशाह के साथ तुम्हारे संदर्भ में बात की । तुम यदि बादशाह के अधीन होकर उसे सलाम करोगे, तो वह तुम्हें क्षमा कर देगा । तुम्हें तुम्हारा संपूर्ण राज्य वापस मिलेगा तथा तुम पुनः आराम से वैभव के साथ रह सकोगे ।’’ उस पर राणा प्रताप ने उसकी ओर घृणास्पद कटाक्ष कर कहा, ‘‘मैं ऐसा कदापि नहीं करूंगा ।’’ उस पर राजा मानसिंह ने उसे समझाने का बहुत प्रयास किया; परंतु राणा प्रताप अपने निर्णय पर अटल थे । अंत में हताश होकर राजा मानसिंह ने उनसे पूछा, ‘‘अब मैं वापस जाता हूं; परंतु तुम मुझे यह बताओ कि तुमने इस कष्टदायक जीवन का स्वीकार किया; परंतु तुम अधीनता अस्वीकार कर रहे हो, ऐसा क्यों ?’’ इस पर राणा प्रताप ने दिया हुआ उत्तर इतिहास में अजरामर बन गया है । उन्होंने कहा, ‘‘मानसिंह, मेरी मृत्यु के उपरांत आनेवाली राजपूतों की पीढियां मेरा स्मरण अमर रखेंगे । वे उनके बच्चों का नाम ‘प्रताप’ रखेंगे; परंतु तुम्हारे नाम पर थूकेंगे । वे तुम्हें देशद्रोही कहकर पीढी दर पीढी शाप देंगे; इसलिए मैं मुगल बादशाह की गुलामी स्वीकार नहीं करूंगा ।’’
(संदर्भ : जालस्थल)
शौर्य से श्रेष्ठ कुछ नहीं !
महाभारत में कहा गया है, ‘शौर्य से श्रेष्ठ कुछ भी नहीं है ।’ हमारे प्रत्येक अवतार ने शौर्यपूर्वक युद्ध कर तत्कालीन रावण-कंस जैसे समाज पर आए संकटों को दूर किया । समर्थ रामदासस्वामी कहते हैं, ‘धटासी आणावा धट, उद्धटासी पाहिजे उद्धट ।’ (जो जैसा है उसके साथ वैसा व्यवहार करना चाहिए ।) उन्होंने जो बलोपासना बताई, वह हिन्दू अपने शौर्य का परिचय दे सके; इसीलिए ही ! जब इस बलोपासना से हिन्दू सैनिक जागृत हुए, उस समय उन्होंने छत्रपति शिवाजी महाराज के नेतृत्व में पांच बादशाहियों अर्थात आज के ‘इस्लामिक स्टेट’ को पैरोंतले रौंदते हुए हिन्दवी स्वराज्य का ध्वज गौरव के साथ फहराया । जब हिन्दू जागृत हुए, उस समय स्वयं को विश्वविजेता कहलानेवाले सिकंदर को भी सिंधु नदी पार करना संभव नहीं हुआ ! हिन्दुओं को ऐसी कितनी शौर्यकथाएं बताई जाएं ? परंतु हिन्दुओं को शौर्य की यह परंपरा सिखाई नहीं जाती; क्योंकि राष्ट्रद्रोही शक्तियां नहीं चाहतीं कि हिन्दू शौर्य दिखाएं तथा शक्तिशाली बन जाएं ।