वास्तु के अलग-अलग स्थानों में विचरण करते समय वहां कार्यरत स्पंदनों का व्यक्ति पर (उसकी सूक्ष्म ऊर्जा पर) परिणाम

‘महर्षि अध्यात्म विश्वविद्यालय’ द्वारा ‘यू.ए.एस. (यूनिवर्सल ऑरा स्कैनर)’ उपकरण के द्वारा किया वैज्ञानिक परीक्षण

‘भारत में प्राचीन काल से वास्तुशास्त्र प्रचलित है । वास्तु में विद्यमान स्पंदनों का प्रभाव व्यक्ति का मन, बुद्धि एवं शरीर पर पडता है । उसके कारण वास्तुशास्त्र के नियमों को ध्यान में लेकर घर का निर्माण करने से मनुष्य को अच्छा स्वास्थ्य, सुख एवं समृद्धि प्राप्त होती है । पहले संयुक्त परिवार (जॉइंट फैमिली) पद्धति प्रचलित थी । संयुक्त परिवार के वरिष्ठ एवं जानकार लोग सदैव यह बताते थे, ‘धरन (बीम) के नीचे नहीं बैठना चाहिए’, सायंकाल के समय भगवान के सामने दीप जलाकर स्तोत्रपाठ करने चाहिए, रात को जल्दी सोना चाहिए, पूर्व-पश्चिम सोना चाहिए इत्यादि’ इसके पीछे वास्तुशास्त्र है । ‘महर्षि अध्यात्म विश्वविद्यालय’ द्वारा वास्तुशास्त्र के संदर्भ में प्रचुर शोध किया जा रहा है । उनमें से एक शोध आगे दिया गया है –

 

१. वास्तु के अलग-अलग स्थानों पर विचरण करते समय मन को अलग-अलग संवेदनाएं प्रतीत होना

सामान्यतः हम जिस स्थान पर विचरण करते हैं, अज्ञानवश हम पर उसका सूक्ष्म परिणाम होता रहता है । घर में विभिन्न कक्ष होते हैं, उदा. बैठक कक्ष, रसोईघर, शयन कक्ष इत्यादि । इन प्रत्येक कक्ष में जाने पर वहां अलग स्पंदन कार्यरत होते हैं । बैठक कक्ष में जाने पर वहां किसी विषय पर चर्चा करने का मन होता है, रसोईघर में जाने पर मन में खाने के विचार आने लगते हैं, शयन कक्ष में जाने पर विश्राम करने का मन होता है, खिडकी के पास जाने पर मन को उत्साह प्रतीत होता है, तथा खिडकी से बाहर खुले आकाश की ओर देखने पर मन को आनंद प्रतीत होता है । इस प्रकार वास्तु के अलग-अलग स्थानों पर विचरण करते समय मन को अलग-अलग संवेदनाएं प्रतीत होती हैं ।

‘वास्तु के विभिन्न स्थानों पर बैठने से व्यक्ति की सूक्ष्म ऊर्जा पर क्या परिणाम होता है ?, इसका अध्ययन करने के लिए ‘महर्षि अध्यात्म विश्वविद्यालय’ द्वारा एक प्रयोग किया गया । इस प्रयोग में एक सामान्य व्यक्ति को विभिन्न स्थानों पर बैठाकर उसके छायाचित्र खींचे गए । इन छायाचित्रों का ‘यू.ए.एस. (यूनिवर्ससल ऑरा स्कैनर) उपकरण के माध्यम से परीक्षण किए गए, जो आगे दिए हैं ।

टिप्पणी : इस प्रयोग में ‘पंखे के नीचे बैठने पर व्यक्ति पर क्या परिणाम होता है ?’, इसका भी अध्ययन किया गया ।

उक्त प्रयोग से निम्नांकित सूत्र स्पष्ट हुए –

१. ‘व्यक्ति का भीत (दीवार) के पास बैठना’, इस छायाचित्र में किसी प्रकार की सकारात्मक ऊर्जा नहीं है; अपितु सर्वाधिक स्तर पर नकारात्मक ऊर्जा ही दिखाई दी ।

१ अ. विश्लेषण – ‘व्यक्ति का भीत के पास बैठना’ इस छायाचित्र से सर्वाधिक नकारात्मक स्पंदनों का प्रक्षेपण होने का कारण : भीत में भारीपन होने से वहां बैठने पर मन को भारीपन प्रतीत होता है । उससे उस पर कष्टदायक स्पंदनों का आवरण आता है अथवा उसमें वृद्धि होती है ।

२. ‘पंखा चलते समय’ के छायाचित्र की तुलना में ‘पंखा बंद रहते समय’ के छायाचित्र में नकारात्मक ऊर्जा का स्तर अल्प है । ‘पंखा चलते समय’ के छायाचित्र में किसी प्रकार की सकारात्मक ऊर्जा नहीं थी; परंतु ‘पंखा बंद रहते समय’ के छायाचित्र में कुछ स्तर पर सकारात्मक ऊर्जा दिखाई दी ।

२ अ. विश्लेषण – ‘पंखा बंद रहते समय’ की तुलना में ‘पंखा चलते समय’ के छायाचित्र से अधिक नकारात्मक स्पंदन प्रक्षेपित होने का कारण : बिजली से चलनेवाले उपकरणों से उत्पन्न नाद के कारण वहां का वायुमंडल दूषित हो जाता है, जिसका नकारात्मक परिणाम वहां के वातावरण पर होता है ।

३. उक्त तीनों छायाचित्रों की तुलना में ‘व्यक्ति का छत के नीचे बैठना’ इस छायाचित्र में नकारात्मक ऊर्जा का स्तर अल्प है ।

३ अ. विश्लेषण – वास्तु की छत की ओर से (ऊर्ध्व दिशा से) वास्तु में सकारात्मक स्पंदन आते हैं । कक्ष की छत के नीचे बैठने से व्यक्ति को इन सकारात्मक स्पंदनों का लाभ हुआ । उससे उसके आस-पास के नकारात्मक स्पंदनों का आवरण क्षीण हुआ ।

४. उक्त चारों छायाचित्रों की तुलना में ‘व्यक्ति का खिडकी के पास बैठना’, इस छायाचित्र में नकारात्मक ऊर्जा का स्तर सबसे अल्प है तथा सकारात्मक ऊर्जा का स्तर सर्वाधिक है ।

४ अ. विश्लेषण – चैतन्य प्रदान करना तेजतत्त्व का कार्य है । सूर्य की ओर से प्रक्षेपित तेज के कारण वातावरण शुद्ध एवं चैतन्यमय हो जाता है । खिडकी के पास बैठने से व्यक्ति को चैतन्य मिलने से उसके आस-पास कष्टकायक स्पंदनों का आवरण बहुत अल्प हुआ तथा उसमें विद्यमान सकारात्मक स्पंदनों में बहुत वृद्धि हुई ।

संक्षेप में कहा जाए, तो वास्तु में कार्यरत स्पंदनों का परिणाम व्यक्ति में विद्यमान सूक्ष्म ऊर्जा पर होता है । उसके कारण वास्तु के विभिन्न स्थानों पर विचरण करते समय उसके मन को अलग-अलग संवेदनाएं प्रतीत होती हैं ।’

– श्रीमती मधुरा धनंजय कर्वे, महर्षि अध्यात्म विश्वविद्यालय, गोवा. (१९.२.२०२२)

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कक्ष के चारों स्थानों पर बैठने पर नकारात्मक स्पंदन अधिक हैं, तो क्या कक्ष में कहीं भी नहीं बैठना चाहिए ?

उत्तर : इस परीक्षण से यह समझ आया है कि ‘कक्ष में संबंधित स्थानों पर बैठने से व्यक्ति पर क्या परिणाम होता है ?’ कक्ष में किसी भी स्थान पर बैठते समय उससे स्वयं पर होनेवाले परिणाम को ध्यान में रखते हुए उस समय आवश्यक ध्यान रखना चाहिए । जब व्यक्ति निराश अथवा दुःखी हो, उस समय उसे दीवार के पास बैठना प्रयासपूर्वक टालना चाहिए, उसकी अपेक्षा उसे खिडकी के पास बैठना चाहिए । खिडकी के पास बैठकर आकाश की ओर देखना चाहिए तथा ईश्वर द्वारा निर्मित सुंदर सृष्टि देखनी चाहिए । उसके कारण उसे चैतन्य मिलकर उसके आस-पास का कष्टदायक आवरण न्यून (कम) होकर उसका मन हल्का होगा ।

घर में आवश्यक संख्या में ही बिजली के उपकरण होने चाहिए, साथ ही उनका उपयोग आवश्यक समय तथा उचित मात्रा में ही करना चाहिए । बिजली के उपकरणों का उपयोग करने से होनेवाला नकारात्मक परिणाम अल्प हो; इसके लिए कक्ष में देवता का नामजप अथवा संतों के भजन लगाकर रखने चाहिए  । उससे कक्ष में समाहित कष्टदायक स्पंदन न्यून होंगे । कक्ष की तथा स्वयं की नियमित रूप से शुद्धि करनी चाहिए ।

संक्षेप में बताना हो, तो आज के विज्ञानयुग में भौतिक सुविधाएं तो बहुत हैं; परंतु उसके कारण मनुष्य प्रकृति से अर्थात ईश्वर से दूर होता जा रहा है, इसे ध्यान में रखना चाहिए । ऐसा न हो; इसके लिए प्रत्येक वस्तु का जितना आवश्यक है उतना ही तथा विचारपूर्वक उपयोग करना चाहिए । इसके साथ ही प्रतिदिन साधना करनी चाहिए । जैसे-जैसे व्यक्ति की साधना बढेगी, वैसे-वैसे उसमें विद्यमान सात्त्विकता का सकारात्मक परिणाम, (वह जिस वास्तु में रह रहा है) उस पर होने से वह वास्तु भी सात्त्विक बन जाएगा ।’

– श्रीमती मधुरा धनंजय कर्वे, महर्षि अध्यात्म विश्वविद्यालय, गोवा. (१९.२.२०२२)