चित्रपट निर्माता द्वारा रामायण पर आधारित ‘आदिपुरुष’ चित्रपट का १ मिनट ४६ सेकेंड का ‘टीजर’ (चित्रपट का संक्षिप्त भाग) प्रसारित किए जाने के उपरांत संपूर्ण देश में कोलाहल मच गया । इससे ध्यान में आता है कि रामायण और उसके चरित्रों के प्रति भारतीयों की भावनाएं कितनी जागृत हैं ! रामायण और महाभारत भारतीय संस्कृति के दर्शक हैं । इनके आधार पर ही भारतीय अर्थात हिन्दू ‘अपना जीवन आदर्श कैसे हो’, इसका विचार कर ही जीवन में अग्रसर होते हैं । वर्ष १९८६ में रामानंद सागर ने दूरदर्शन पर ‘रामायण’ मालिका आरंभ की और वह पूरे विश्व में प्रसिद्ध हुई । इस मालिका का प्रसारण रविवार को सवेरे होता था । तब संपूर्ण देश दूरचित्रवाणी संच के सामने बैठकर उसे देखता था । उसमें हिन्दुओं के साथ मुसलमान और अन्य धर्मियों का समावेश होता था, इसे अस्वीकार नहीं कर सकते । इस मालिका को इतनी लोकप्रियता मिली थी कि उस समय देश के सभी मार्ग और भीड के सभी स्थान निर्जन हो जाते थे । उससे पूर्व भी देश की विविध भाषाओं में रामायण और महाभारत के प्रसंगों से संबंधित अनेक चित्रपट प्रदर्शित हुए थे । उनमें और इस मालिका में दिखाए चरित्राें की वेशभूषा, आचरण तथा बोलना लगभग समान था, अर्थात भारतीयों पर यही संस्कार हुए थे और वे उतने ही सच्चे हैं; क्योंकि रामायण में ही उसके चरित्राें का वर्णन किया गया है और उसके अनुसार ही इन चित्रपटों में दिखाया गया है । उसी प्रकार अब तक इन चरित्रों के जो कुछ चित्र हमने देखे हैं, वे भी उसके अनुसार ही रेखांकित किए गए हैं । तब ऐसे में कोई उसके विपरीत दिखाता हो, तो वह कैसे स्वीकार होगा ? यह मूल प्रश्न है; क्योंकि ‘आदिपुरुष’ चित्रपट के ‘टीजर’ में श्री हनुमान और रावण को बिना मूंछों के, तो प्रभु श्रीराम को मूंछों सहित दिखाया गया है’, ऐसा लोगों ने देखा । इसी लिए आदिपुरुष चित्रपट पर देश में कोलाहल मचा है और ‘वह चूक है’, ऐसा कह भी नहीं सकते; क्योंकि चित्रपट के दिग्दर्शक ओम राऊत के भी ध्यान में यह आया है, ‘आज तक’ वृत्तवाहिनी पर प्रसारित उनकी भेंटवार्ता से ऐसा सामने आया है ।
समाज में जो कुछ प्रतिक्रियाएं व्यक्त की जा रही हैं, उनको हम ध्यान में ले रहे हैं । अभी चित्रपट प्रदर्शित होने में विलंब है । जब चित्रपट प्रदर्शित होगा, तब योग्य क्या है, यह आपके ध्यान में आएगा’, उस समय उन्होंने ऐसा कहा है; किंतु ‘अब जो कुछ परिवर्तन बताए जा रहे हैं, क्या आप वे करेंगे ?’, इस प्रश्न पर उन्होंने कुछ भी कहना स्वीकार नहीं किया । इसका यही अर्थ हो सकता है कि ओम राऊत को यह समझ में आ गया है कि भारतीय जनता की भावनाएं कितनी तीव्र हैं और वे स्वयं कौन सी चूक कर रहे हैं तथा अब चित्रपट में परिवर्तन करना आवश्यक है । इसलिए अब यह चित्रपट तभी प्रदर्शित होगा अथवा करने दिया जाएगा, जब राऊत के अनुसार योग्य क्या है, यह समझ में आ जाएगा । वर्तमान में तो इस चित्रपट का विरोध होता रहेगा, यह स्पष्ट है । यदि ओम राऊत खुलकर इस विषय में स्पष्ट भूमिका नहीं अपनाते, तो कदाचित उनका चित्रपट प्रदर्शित होगा अथवा नहीं, निश्चितरूप से अभी यह नहीं बता सकते । भाजपा के सांसद राम कदम ने ‘महाराष्ट्र में यह चित्रपट प्रदर्शित नहीं होने देने’ की घोषणा की है, तथा विश्व हिन्दू परिषद और हिन्दू महासभा ने भी इसका विरोध किया है । श्रीराम मंदिर के मुख्य पुजारी सत्येंद्र दास ने भी इसका विरोध किया है । मध्यप्रदेश के गृहमंत्री नरोत्तम मिश्रा ने भी चित्रपट में परिवर्तन न करने पर कार्यवाही करने की चेतावनी दी है ।
भाव का अभाव !
‘आदिपुरुष’ चित्रपट ५०० करोड रुपए व्यय कर बनाया जा रहा है । इन ५०० करोड में से आधी राशि केवल ‘स्पेशल इफेक्ट’ के लिए ही व्यय की जाएगी । पूर्व काल की मालिकाएं भावपूर्ण और सात्त्विक पद्धति से चित्रित किए जाने से दर्शकों पर उनका परिणाम अभी भी है, तो केवल १ मिनट ४६ सेकेंड का टीजर देखकर यह चित्रपट तमोगुणी और भारतीय संस्कृति के बिल्कुल विपरीत बनाया गया है, यह स्पष्ट दिख रहा है । इसमें मानवीय भाव-भावना न होकर केवल तंत्रज्ञान का अत्यधिक प्रयोग दिखाई देता है । रावण को चमगादड पर बैठकर आता दिखाया है । प्रत्यक्ष में ऐसा अबतक तो हिदुओं ने न सुना है न कहीं देखा है । रावण के पास उसका पुष्पक विमान था और वह उसका प्रयोग करता था । रावण राक्षस था, यह जितना सच है, उतना ही सच है कि वह ब्राह्मण और वेदों का ज्ञाता था प्रभु श्रीराम ने उसका वध करने के उपरांत भी उसका उचित मान रखा था । रावण की मृत्यु के समय श्रीराम ने लक्ष्मण को रावण से मार्गदर्शन लेने को भेजा था, यह सभी जानते हैं । नई पीढी तथा नए समय का रामायण बनाने के विचार से कोई चाहे जैसा परिवर्तन करे, पर धर्माभिमानी हिन्दू उसे कैसे स्वीकार करेंगे ? और वे उसे क्यों स्वीकार करें ? कोरोना के समय में दूरदर्शन पर पुन: एक बार रामानंद सागर की ‘रामायण’ मालिका, तथा बी.आर. चोपडा की ‘महाभारत’ मालिका प्रक्षेपित किए जाने पर उन्हें उतना ही प्रतिसाद मिला था, अर्थात आज की पीढी ने भी उसे प्रतिसाद दिया, यह स्पष्ट दिखाई देता है । ऐसे में ‘आज की पीढी की रुचि भिन्न है’, ऐसा मानकर उसके सामने अलग ढंग से रामायण रखने का प्रयास यदि कोई करता हो, तो ‘वह अज्ञानी ही है’, ऐसा ही कहना पडेगा । ऐसे अज्ञानियों को उचित ज्ञान दिलाने के लिए धर्माभिमानी हिन्दुओं द्वारा की गई अगुवाई उचित ही है !