महामाया आदिशक्ति की शरण में जाना ही एकमात्र उपाय है !

१. ‘मनुष्य रूप के देवता अथवा असुर को पहचान न पाना भी आदिशक्ति की योगमाया होना

आज हम कलियुग में हैं । अन्य युगों की तुलना में यह युग थोडा भारी और अधिक स्थूल है । इस युग में भगवान ने मनुष्यरूप में अवतार लिया अथवा असुर भी यदि मनुष्यरूप में आ गए, तब भी उन्हें पहचान पाना असंभव है । आदिशक्ति की योगमाया ही इतनी प्रबल है कि ‘मनुष्यरूप के देवता एवं असुर को पहचानना असंभव है । ऐसा होते हुए भी ‘परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी (प.पू. गुरुदेवजी) भले ही श्रीविष्णु के अंशावतार हैं’; परंतु यह मनुष्य की समझ में कैसे आएगा ? ‘श्रीसत्शक्ति (श्रीमती ) बिंदा नीलेश सिंगबाळजी एवं श्रीचित्शक्ति (श्रीमती) अंजली मुकुल गाडगीळजी के रूप में साक्षात् आदिशक्ति प.पू. गुरुदेवजी की शिष्याओं के रूप में जन्मी हैं ।’, यह भी कैसे समझ में आएगा ? यही तो योगमाया है ।

विशेषता यह है कि ‘गुरुदेवजी साक्षात् श्रीमन्नारायण हैं’, यह बात सनातन के कुछ साधकों को अंतर् से ज्ञात है; परंतु उसे व्यक्त नहीं किया जा सकता अथवा उसका प्रमाण भी नहीं दिया जा सकता ।’ यही तो योगमाया है ।

‘आदिशक्ति ने श्रीमन्नारायण के शिष्य के रूप में जन्म क्यों लिया ?’, यह एक पहेली ही है । अब मेरे पास इस प्रश्न का उत्तर नहीं है; क्योंकि यह आदिशक्ति की पहेली है । देवी की इच्छा हो, तो उचित समय आने पर वह जगन्माता इस पहेली को सुलझाएंगी और उससे श्रीमन्नारायणस्वरूप गुरुदेवजी एवं उनकी आदिशक्तिस्वरूपा शिष्यों के जन्म का कार्यकरणभाव हम सभी की समझ में आ सकेगा ।

श्री. विनायक शानभाग

२. आदिशक्ति भगवान का शक्तिस्वरूप है,उसके कारण संपूर्ण सृष्टि का कार्य अविरत जारी रहना

आदिशक्ति के संदर्भ के उक्त लेखन से ‘आदिशक्ति के बिना हमारा कोई अस्तित्व नहीं है’, यह ध्यान में आएगा । संक्षेप में बताना हो, तो आदिशक्ति तो भगवान की शक्ति है । उनके कारण भगवान द्वारा निर्मित सृष्टि का कार्य चलता रहता है । जैसे अग्नि तथा अग्नि की दाहकशक्ति एक ही होती है, वैसे ही भगवान तथा उनकी शक्ति एक ही है । निर्गुण भगवान की सगुणता शक्ति के कारण है । त्रिगुणों के आधार पर आदिशक्ति ही संपूर्ण कार्य करती है और सभी से करवा लेती हैं । भले वे देवता हों, दानव हों अथवा मनुष्य हों । इन सभी के द्वारा होनेवाला कार्य आदिशक्ति की कृपा के कारण ही होता रहता है ।

३. सबकुछ आदिशक्ति की इच्छा से होने के कारण उनकी शरण में जाना ही एकमात्र उपाय होना

कुछ लोगों के मन में यह प्रश्न उठता है, ‘यदि सबकुछ आदिशक्ति की इच्छा से ही होता है, तो उसके लिए हमें परिश्रम क्यों उठाने चाहिए ? हम क्यों कार्य करें ?’, इसका उत्तर भी आदिशक्ति’ ही हैं । भले ही ‘अब हम शांत बैठेंगे’, ऐसा कहें तब भी हम शांत बैठ ही नहीं सकते । येनकेन प्रकारेण आदिशक्ति हम सभी से कार्य करवा ही लेती हैं । ‘कर्म करते रहना और आदिशक्ति की शरण में जाना’, इतना ही हम कर सकते हैं । ‘मैं कर्म ही नहीं करूंगा’, ऐसा कहना अनुचित है । ‘हमें जो कर्म मिला है, उस कर्म को उचित पद्धति से करने की हमें शक्ति मिले’, यह उस जगन्माता आदिशक्ति के चरणों में प्रार्थना है ।

ऐसी उस आदिशक्ति की अनन्यभाव से भक्ति करने के ९ दिन हैं नवरात्रि ! आदिशक्ति की सभी पर समान कृपा होती है; परंतु जिसकी जैसी भक्ति, वैसी ही उसे देवी की कृपा प्राप्त होती है ।

कृतज्ञता

नवरात्रि के उपलक्ष्य में मुझे यह लेखन करने की प्रेरणा देनेवाली तथा उसे करवा लेनेवाली आदिशक्ति जगदंबा के चरणों में मैं कोटि-कोटि कृतज्ञता व्यक्त करता हूं । महर्षि व्यासजी द्वारा लिखित श्रीमद्देवीभागवत पुराण के कारण तथा अन्य शक्ति उपासकों द्वारा लिखे गए अध्ययनपूर्ण लेखन के कारण यह सब लेखन करना संभव हुआ; इसलिए मैं उनके चरणों में कृतज्ञ हूं ।

– श्री. विनायक शानभाग (आध्यात्मिक स्तर ६६ प्रतिशत), बेंगळूरु, कर्नाटक. (२६.९.२०२१)