काल की आवश्यकता समझकर राष्ट्र तथा धर्मरक्षा की शिक्षा देना, यह गुरु का वर्तमान कर्तव्य !

१. राष्ट्र तथा धर्मरक्षा की शिक्षा देनेवाले गुरुओं के कार्य का स्मरण कीजिए !

अ. आर्य चाणक्य ने तक्षशिला विश्वविद्यालय में ‘आचार्य’ के पद पर नियुक्त होने पर मात्र विद्यादान कर स्वयं को धन्य नहीं समझा, अपितु चंद्रगुप्त जैसे अनेक शिष्यों को क्षात्र-उपासना का महामंत्र देकर उनके द्वारा विदेशी ग्रीकों के हिन्दुस्थान पर हुए आक्रमण को विफल किया एवं हिन्दुस्थान को एकजुट किया ।

आ. प्रत्यक्ष प्रभु राम के दर्शन करनेवाले समर्थ रामदासस्वामी मात्र रामनाम का ही जप करने में रम नहीं गए, अपितु समाज बलोपासना करे इस हेतु उन्होंने अनेक स्थानों पर हनुमानजी की स्थापना की एवं शिवाजी महाराज को अनुग्रहित कर उनके द्वारा ‘हिंदवी स्वराज्य’ की स्थापना करवाई ।

२. कुछ समय पूर्व देहत्याग करनेवाले स्वामी वरदानंद भारती एवं महायोगी गुरुदेव काटेस्वामीजी भी ऐसे ही महान गुरु थे । धर्म तथा अध्यात्म की शिक्षा देने के साथ इन महान पुरुषों ने अपनी लेखनी राष्ट्र तथा धर्म के कर्तव्यों के प्रति निद्रित हिन्दू समाज को जागृत करने हेतु चलाई !

(संदर्भ : सनातन का ग्रंथ ‘गुरुका महत्त्व, प्रकार एवं गुरुमंत्र’)