ज्ञानवापी मामले में आदेश देनेवाले न्यायाधीश को परिवार की सुरक्षा की चिंता

वाराणसी (उत्तर प्रदेश) – वाराणसी की ज्ञानवापी मस्जिद मामले की सुनवाई करनेवाले न्यायाधीश रवि कुमार दिवाकर अपने परिवार की सुरक्षा को लेकर चिंतित हैं । उन्होंने इसका उल्लेख इस संबंध में हुए निर्णय में किया है ।

न्यायाधीश रवि कुमार दिवाकर ने कहा है कि 

१. इसके पहले शायद ही किसी अधिवक्ता ने आयुक्त की कार्यवाही पर प्रश्न उठाया होगा । यह एक सामान्य प्रक्रिया है । इस मुकदमे से भय का वातावरण बना दिया गया है, जिस कारण मेरे परिवार की सुरक्षा की चिंता निर्माण हुई है ।

२. मेरी मां को लगा कि मैं न्यायालय आयुक्त के साथ मस्जिद में सर्वेक्षण के लिए जा रहा हूं । उन्होंने मेरी सुरक्षा के कारणों से वहां जाने का विरोध किया ।

३. न्यायालय आयुक्त अजय कुमार मिश्रा को हटाकर अन्य किसी से सर्वेक्षण करवाने की मांग करने के पीछे विरोधी पक्ष कोई भी ठोस कारण नहीं दे सका ।

जिला प्रशासकीय अधिकारियों के कारण इसके पहले सर्वेक्षण नहीं हो सका !

न्यायाधीश रवि कुमार दिवाकर ने कहा कि हाल ही में कराया गया सर्वेक्षण पूर्ण न होने के पीछे एक कारण है – ‘जिला प्रशासन द्वारा उत्साह न दिखाना ।’ प्रशासन के कुछ अधिकारी अहंकारी और घमंडी हैं । उन्हें लगता है कि न्यायालय के आदेश का पालन करना सही नहीं है । ऐसे अधिकारी उच्च न्यायालय के आदेश की भी अनदेखी करते हैं ।

ज्ञानवापी मामले में न्यायाधीश को भय लगता है, तो ताजमहल मामले के न्यायाधीश को भय नहीं, इससे भेद ध्यान में आता है ! – पत्रकार अमन चोप्रा

इस मामले में ‘न्यूज १८’ के पत्रकार अमन चोप्रा ने ट्वीट कर कहा, ‘ज्ञानवापी मस्जिद के सर्वेक्षण का निर्णय देनेवाले न्यायाधीश ने कहा, ‘भय का वातावरण निर्माण किया गया है । मेरे परिवार की सुरक्षा की चिंता है ।’ निर्णय को विरोध आरंभ हुआ है; परंतु ताजमहल के २२ कक्ष खुलवाने की याचिका पर याचिकाकर्ता को फटकारनेवाले न्यायाधीश को ऐसी कोई भी चिंता नहीं सता रही । इस निर्णय का स्वागत भी हुआ है । इससे भेद ध्यान में आता है ।’

संपादकीय भूमिका

  • इससे देश में कानून और सुव्यवस्था की स्थिति ध्यान में आती है !
  • मुसलमानों के धार्मिक मामलों के संबंध में निर्णय विरोध में जाने से न्यायाधीश को डर क्यों लगता है ? इसके पीछे का कारण देश के प्रत्येक नागरिक को पता है । दूसरी ओर हिन्दुओं के धार्मिक मामलों में निर्णय विरोध में जाने पर भी कुछ नहीं होगा इस कारण न्यायाधीश को कभी भी भय नहीं लगता, क्या धर्मनिरपेक्षतावादी और आधुनिकतावादी इस विषय पर मुंह खोलेंगे ?