हिजाबप्रतिरोध पर कर्नाटक उच्च न्यायालय सहमत !

  • विद्यार्थीयों के लिए विद्यालय-महाविद्यालयों में गणवेश अनिवार्य !

  • हिजाब, यह इस्लाम का अनिवार्य भाग न होने का मत प्रदर्शन !

  • हिजाब बंदी का विरोध करनेवाली सभी याचिकाएं निष्काषित !


बेंगलुरु (कर्नाटक) – अनेक सप्ताह से लम्बित, हिजाब बंदी का निर्णय अंत में आ गया है । कर्नाटक उच्च न्यायालय ने विद्यालय- महाविद्यालयों में हिजाब पहनने पर प्रतिबंध ही रहेगा, ऐसा निर्णय लिया है । न्यायालय ने हिजाब बंदी का विरोध करने वाली सभी याचिकाएं निष्काषित करके, ‘हिजाब, यह इस्लाम का अनिवार्य हिस्सा न होने’ का महत्वपूर्ण निर्णय दिया है । विद्यार्थियों को विद्यालय – महाविद्यालयों में पोशाक अनिवार्य ही रहेगा, यह सुस्पष्ट किया है । इसके अन्तर्गत, विद्यालय- महाविद्यालयों को पोशाक निश्चित करने का अधिकार भी दिया है ।

संविधान के अनुच्छेद २५ तथा विद्यालय यूनिफॉर्म को अनिवार्य बनाने के आधार पर निर्णय !

हिजाब बंदी का विरोध करनेवाली जो आठ याचिकाएं न्यायालय में प्रविष्ट की गई थी, वह सभी रद्द की गई है । उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधिश रितुराज अवस्थी जी ने निर्णय देते हुए कहा कि, “यह निर्णय दो बातों पर लिया है । प्रथम, हिजाब पहनना, यह संविधान की धारा २५ अन्तर्गत धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकार की क्ष्रेत्र में आता है क्या ? और दूसरी यह कि, विद्यालयों का पोशाक अनिवार्य करना, यह उस अधिकार के विरोध में है क्या ?” इन दोनों सूत्रों का अध्ययन करके, न्यायालय ने शैक्षणिक संस्थाओं के हिजाब बंदी की भूमिका को वैध घोषित किया ।

 

अशांति निर्माण करने का प्रयास ! – कर्नाटक उच्च न्यायालय

न्यायालय ने निर्णय में सुनाया कि, “जिस प्रकार से यह प्रकरण उछाला गया है, उससे स्पष्ट होता है कि, कुछ लोग समाज में अशांति और कलह उत्पन्न करने का प्रयास कर रहे थे ।”

न्यायालय के आदेश का पालन करें और शांत रहें ! – मुख्यमंत्री बोम्मई

न्यायालय के निर्णय पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए, कर्नाटक के मुख्यमंत्री बसवराज बोम्मई ने कहा, “हम उच्च न्यायालय के आदेश का सम्मान करते हैं । छात्रों को विद्यालय में शिक्षा प्राप्त करने की आवश्यकता है ।

सभी लोग न्यायालय के आदेश का पालन करें और शांति बनाए रखें ।”

कर्नाटक उच्च न्यायालय ने निम्नलिखित प्रश्नों पर विचार किया :

१. क्या धारा २५ के अंतर्गत, इस्लाम में हिजाब पहनना अनिवार्य है ?

२. क्या विद्यालय यूनिफॉर्म अनिवार्य करना मौलिक अधिकारों का उल्लंघन है ?

३. ५ फरवरी २०२२ का आदेश, धारा १४ और १५ का उल्लंघन करता है या नहीं ?

४. क्या महाविद्यालय के अधिकारियों के विरुद्ध अनुशासनात्मक जांच करने का कोई प्रकरण बनता है ?

न्यायाधीश ऋतुराज अवस्थी द्वारा दिए गए उपरोक्त प्रश्नों के उत्तर :

१. मुसलमान महिलाओं द्वारा हिजाब पहनना, इस्लाम में एक आवश्यक धार्मिक प्रथा नहीं है ।

२. विद्यालय यूनिफॉर्म अनिवार्य करना केवल एक उचित दायित्व का निर्वहन है और संवैधानिक रूप से स्वीकार्य है, जिस पर छात्र आपत्ति नहीं कर सकते ।

३. इसलिए, सरकार के पास ५ फरवरी, २०२२ का अध्यादेश जारी करने का अधिकार है और यह अवैध नहीं है ।

४.न्यायालय ने कहा कि, विद्यालय के विरुद्ध अनुशासनात्मक कार्रवाई करने का कोई प्रकरण नहीं बनता ।

उच्चतम न्यायालय में चुनौती देंगे !

प्रकरण में, छात्रों के वकील अनस तनवीर ने कहा कि, वह कर्नाटक उच्च न्यायालय के निर्णय को उच्चतम न्यायालय में चुनौती देंगे ।

“युवतियां हिजाब पहनने के अधिकार का प्रयोग कर अपनी पढाई जारी रखेंगी । युवतियों ने न्यायालय एवं संविधान से अपेक्षा नहीं छोडी है ।”

मैं कर्नाटक उच्च न्यायालय के निर्णय से असहमत हूं ! – असदुद्दीन ओवैसी

कर्नाटक उच्च न्यायालय के निर्णय पर प्रतिक्रिया देते हुए एम.आई.एम. अध्यक्ष और सांसद असदुद्दीन ओवैसी ने कहा, “मैं इस निर्णय से असहमत हूं । इस निर्णय से असहमत होना मेरा अधिकार है ।

यह परिणाम संविधान द्वारा प्रदत्त धार्मिक स्वतंत्रता के विरुद्ध है । मुझे अपेक्षा है, कि याचिकाकर्ता इसे उच्चतम न्यायालय में चुनौती देंगे ।”

(कहती हैं) ‘न्यायालय का निर्णय निराशाजनक !’ – महबूबा मुफ्ती

कश्मीर की पीपल्ज डेमोक्रेटिक पार्टी (पी.डी.पी.) की प्रमुख और पूर्व मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती ने ट्वीट किया कि, “हिजाब बंदी को योग्य मानने का कर्नाटक उच्च न्यायालय का निर्णय ‘निराशा जनक’ है ।

एक ओर, हम महिला सशक्तिकरण की बात करते हैं और दूसरी ओर, हम उन्हें सहज विकल्प के अधिकार से वंचित करते हैं । यह केवल धार्मिक प्रकरण नहीं है, यह पसंद की स्वतंत्रता के संबंध में भी है ।”

(कहते हैं) ‘न्यायालय  मौलिक अधिकारों को सुरक्षित नहीं रखता !’ – उमर अब्दुल्ला

जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने कहा कि, “वह कर्नाटक उच्च न्यायालय के निर्णय से निराश हैं । आप हिजाब के विषय में क्या सोचते हैं ? बात केवल वस्त्रों की नहीं है । कैसे वस्त्र पहने, यह एक महिला का अधिकार है । न्यायालय ने इस मौलिक अधिकार को संरक्षित नहीं रखा ।

यह एक बडा उपहास है ।”

चेन्नई में छात्रों का विरोध !

कर्नाटक उच्च न्यायालय के निर्णय के विरोध में, तमिलनाडु की राजधानी चेन्नई के द न्यू कॉलेज में विरोध प्रदर्शन आरंभ हो गया ।

कुछ छात्राओं ने विद्यालय से बाहर आकर विरोध किया।

न्यायालय के निर्णय के उपरांत, सुरपुरा (कर्नाटक) में मुसलमान छात्रों द्वारा विद्यालय का बहिष्कार !

कर्नाटक के सुरपुरा तालुका में पीयू कॉलेज के मुसलमान छात्रों ने कक्षा का बहिष्कार किया । यहां परीक्षा सुबह १० बजे से दोपहर १ बजे तक होनी थी । उसका छात्राओं ने बहिष्कार किया । “हम माता-पिता के साथ चर्चा करेंगे और फिर महाविद्यालय आने का निर्णय करेंगे”, उसने कहा । “हम हिजाब पहनकर परीक्षा देंगे । यदि हमें हिजाब हटाने के लिए बाध्य किया गया, तो हम परीक्षा नहीं देंगे ।”

(सौजन्य : TIMES NOW)

महाविद्यालय की प्राचार्य डॉ. शकुंतला ने कहा कि, “छात्राओं को उच्च न्यायालय के आदेश का पालन करने के लिए कहा गया था ; किंतु, उन्होंने इसे नकार दिया । वह कक्षा से बाहर हो गईं । कुल ३५  छात्राओं ने बहिष्कार किया है ।”

आखिर प्रकरण क्या है ?

कर्नाटक सरकार ने शैक्षणिक संस्थानों में यूनिफॉर्म पर कानून में संशोधन कर यूनिफॉर्म को अनिवार्य बनाने का आदेश दिया था । इसके फलस्वरूप, धार्मिक वेशभूषा पर प्रतिबंध लग गया । उसके कार्यान्वयन के उपरांत, कर्नाटक के उडुपी जिले के कुंडापुर के सरकारी कनिष्ट महाविद्यालय में हिजाब को लेकर विवाद प्रारंभ हो गया । हिजाब परिधान कर महाविद्यालय में प्रवेश करने वाली मुसलमान छात्राओं को महाविद्यालय में प्रवेश से वंचित कर दिया गया । इसके विरुद्ध छः मुसलमान छात्राओं ने उच्चतम न्यायालय में याचिका प्रविष्ट  की थी । इसी अवधि में, कुछ मुसलमान छात्राओं को महाविद्यालय परिसर के बाहर रोक दिया गया । जब वे अपने माता-पिता के साथ महाविद्यालय आईं, तब वहां के अधिकारियों ने बताया कि, शासकीय आदेशों के फलस्वरूप उन्हें कर्नाटक राज्य द्वारा जारी वर्दी नियमों के अनुसार, हिजाब पहनने की अनुमति नहीं दी जाएगी । इसके कारण, छात्राओं और उनके माता-पिता ने प्रवेश द्वार के बाहर विरोध प्रदर्शन किया । वहीं कुछ हिन्दू छात्रों ने भगवा उपवस्त्र परिधान कर, इन छात्राओं का विरोध करना आरंभ कर दिया ।