होली १७ मार्च (फाल्गुन पूर्णिमा)

होली धर्मशास्त्रानुसार मनाएं !

     होलिकोत्सव दुष्प्रवृत्ति व अमंगल विचारों को समाप्त कर, सन्मार्ग दर्शानेवाला उत्सव है । इस उत्सव का महान उद्देश्य है, अग्नि में वृक्षरूपी समिधा अर्पित कर वातावरण को शुद्ध करना ।

‘आदर्श होलिकोत्सव’ इस प्रकार मनाएं !

     श्री होलिका-पूजनस्थल को गोबर से लीपकर, रंगोली से सुशोभित करें । वहां गोबर के उपले व कुछ सूखी लकडियों से होली की रचना करें । चंदन, पुष्प आदि से विधिवत पूजन करें । पश्चात शास्त्रानुसार मंत्रोच्चारण करते हुए होली को प्रज्वलित कर दूध और घी की आहुति दें । श्री होलिकादेवी को परंपरागत नैवेद्य तथा नारियल अर्पित करें । उसे श्रद्धालुओं में प्रसाद स्वरूप बांटें । साथ ही प्रार्थना करें कि ‘राष्ट्र-धर्म कार्य हेतु हमें शक्ति मिले ।’ (संदर्भ : सनातन का ग्रंथ ‘त्योहार मनाने की उचित पद्धतियां एवं अध्यात्मशास्त्र’)

होली एवं रंगपंचमी के उत्सवों में हिन्दू धर्म एवं संस्कृति की असीम हानि करनेवाले निम्नांकित अनाचार न होने दें !

     होली में जलाने के लिए हरे-भरे वृक्ष तोडना तथा अन्य सामग्री चोरी करना, पथिकों एवं वाहनचालकों से बलपूर्वक पैसे लेना अथवा उन्हें रंग लगाना स्त्रियों के साथ असभ्य व्यवहार करना, उन पर गंदे पानी के गुब्बारे फेंकना, स्वास्थ्य के लिए हानिकारक रंग लगाना, कर्कश स्वर में गीत बजाना, जुआ खेलना एवं मद्यपान करना ।

     उपर्युक्त अनाचार भारतीय दंड संहिता के अंतर्गत संज्ञेय (दर्ज करने-योग्य) अपराध हैैं, इसलिए ऐसे अनाचारों के संभावित स्थानों के नाम पुलिस को सूचित करें । अनाचार होता दिखाई दे, तो थाने में परिवाद (शिकायत) प्रविष्ट करें ! आदर्श रीति से उत्सव मनाने के लिए अपने परिसर के धर्मप्रेमी, समाजप्रेमी, राष्ट्रभक्त, विद्यालयीन एवं महाविद्यालयीन विद्यार्थियों का प्रबोधन करो !