बुद्धि, उसकी निर्भरता एवं उत्पत्ति की सीमा

पू. डॉ. शिवकुमार ओझाजी

सर्वाेत्तम शिक्षा क्या है ?

पू. डॉ. शिवकुमार ओझाजी (आयु ८७ वर्ष) ‘आइआइटी, मुंबई’ में एयरोस्पेस इंजीनियरिंग में पीएचडी प्राप्त प्राध्यापक के रूप में कार्यरत थे। उन्होंने भारतीय संस्कृति, अध्यात्म, संस्कृत भाषा इत्यादि विषयों पर ११ ग्रंथ प्रकाशित किए हैं । उसमें से ‘सर्वाेत्तम शिक्षा क्या है ?’ नामक हिंदी ग्रंथ का विषय यहां प्रकाशित कर रहे हैं । विगत लेख में ‘मानवीय बुद्धि एवं उसके निर्णयों की योग्य-अयोग्यता !’, इस विषय में जानकारी पढी । अब उसके आगे का भाग देखेंगे । (भाग १०)

३३. आधारभूत बुद्धि !

३३ अ. बुद्धि को कर्मेंद्रियों की अथवा अन्य मनुष्यों के आधार की आवश्यकता होना : बुद्धि को कोई भी कार्य करने के लिए स्वयं की कर्मेंद्रियों के आधार पर अथवा अन्य मनुष्यों पर निर्भर रहना पडता है ।
३३ आ. परिस्थिति के आधार पर बुद्धि निर्भर होना : बुद्धि को परिस्थिति के आधार पर भी निर्भर रहना पडता है; क्योंकि हम देखते हैं कि कभी-कभी अधिक प्रयास न करते हुए भी कोई वस्तु सहज प्राप्त होती है और कभी-कभी बुद्धि से सभी अथवा अत्यधिक प्रयास करने पर भी वह ध्येय प्राप्त नहीं होता ।
३३ इ. बाह्य अडचनों पर भी बुद्धि निर्भर होना : कभी बाह्य अडचनें ऐसी होती हैं कि जिनका अनुमान हम पहले ही नहीं लगा
सकते । इसलिए बुद्धि द्वारा लिया गया निर्णय कभी-कभी पूर्ण नहीं होता ।

३४. बुद्धि की मर्यादा !

३४ अ. पंचमहाभूत, वृक्ष, वनस्पति और सूर्य-चंद्र की उत्पत्ति मनुष्य के पहले से होने से उन सभी को तैयार करना मनुष्य को असंभव होना : पंचमहाभूत अर्थात पृथ्वी, जल, वायु, अग्नि और आकाश को तैयार करना मनुष्य के लिए असंभव होना; क्योंकि यह सभी घटक मनुष्य की बुद्धि के उत्पत्ति पूर्व निर्माण हुए
हैं । इन्हीं पंचमहाभूतों के आधार पर सभी का जीवन आरंभ है । वृक्ष, क्षुप, वनस्पतियों की उत्पत्ति भी मनुष्य के पृथ्वी पर आने के पूर्व हुई है । सूर्य, चंद्र, नक्षत्र इत्यादि और उनका आकाश में घूमने का नियम बनाना मनुष्य के लिए असंभव ही है । यह सभी पदार्थ मनुष्य की उत्पत्ति के पहले के हैं ।
३४ आ. बुद्धि को मूलभूत पदार्थाें का शोध करना असंभव होना : बुद्धि स्वयं प्रत्यक्ष और अनुमान की सीमा में होती है । वह उनके आधार से आगे जाती है; इसलिए बुद्धि को स्वयं से किसी भी मूलभूत पदार्थाें का शोध लगाना संभव नहीं ।

३५. बुद्धि द्वारा आत्मसात न की जानेवाली बातें

. विज्ञान का नियम है कि किसी भी वस्तु का वेग प्रकाश के वेग की तुलना में अधिक नहीं हो सकता; परंतु उसके पीछे की कारणमीमांसा जानने के लिए वह नियम अनुभव करना कठिन होता है ।
आ. हमें द्वितीय व्युत्पन्न (Second Derivative) होने के स्थान पर अधिक बातों को समझना संभव नहीं होता, उदा. प्रवेग (त्वरण – Acceleration) और वक्रता (Curvature) का परिवर्तन अनुभव करना मनुष्य के लिए कठिन होता है ।
इ. किसी बात की उत्पत्ति का कारण जानने के पूर्व कभी-कभी उसकी उत्पत्ति पहले होती है और तदुपरांत उसकी उत्पत्ति का कारण समझ में आता है, उदा. साइकिल (दुपहिया) और विमान का पंखा ।

३६. भौतिक निष्कर्ष समझने की सीमाएं

शालेय विद्यार्थियों ने भी स्वयं अध्ययन के अंत में अनुभव किया होगा कि भौतिक विज्ञान के कुछ निष्कर्ष समझना कठिन होता है ।

३७. मानना

विज्ञान में कुछ बातें मानी जाती (परिकल्पनाएं) (Hypothesis) हैं । इससे यही ध्यान में आता है कि बुद्धि को प्रत्यक्ष घटना का कारण ढूंढना संभव नहीं होता । (क्रमशः)
– (पू.) डॉ. शिवकुमार ओझा, वरिष्ठ शोधकर्ता एवं भारतीय संस्कृति के अध्ययनकर्ता (साभार : ‘सर्वाेत्तम शिक्षा क्या है?’)