इस पाक्षिक से नई लेखमाला : ‘सनातन के दैवी बालकों की अलौकिक गुणविशेषताएं’
परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी के संकल्पानुसार आगामी कुछ वर्षाें में ईश्वरीय राज्य की स्थापना होनेवाली है । अनेकों के मन में प्रश्न होता है कि ‘इस राष्ट्र का संचालन कौन करेगा ?’ वर्तमान में मानव की सात्त्विकता अत्यल्प होने से उनमें इस राज्य को संभालने की क्षमता नहीं है; इसलिए ईश्वर ने उच्च लोक से कुछ हजारों दैवी बालकों को पृथ्वी पर जन्म दिया है । ये दैवी बालक जन्मत: सात्त्विक होने के कारण उनमें सीधे ईश्वर से चैतन्य और मार्गदर्शन ग्रहण करने की क्षमता है । इन दैवी बालकों की सीखने की वृत्ति, वैचारिक प्रगल्भता, उत्तम शिष्य के अनेक गुण, श्री गुरु का तत्काल आज्ञापालन करना, उन्हें होनेवाली अनुभूति और उनकी सूक्ष्म ज्ञान की क्षमता से भी ‘ये दैवी बालक ही ईश्वरीय राज्य का संचालन करेंगे’, यह ध्यान में आएगा । उनके साथ रहते हुए, उन्हें देखने पर अथवा उनका बोलना सुनने पर साधकों का भाव जागृत होता है । उनसे आनंद और चैतन्य प्रक्षेपित होता है । सभी पाठक सीख पाएं, इसलिए दैवी बालकों की यह लेखमाला आरंभ की जा रही है ।
‘दीपावली में घर न जाकर परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी के साथ सनातन आश्रम में रहने में ही दीपावली का खरा परमानंद है’, ऐसा भाव रखनेवाली रामनाथी आश्रम की दैवी बालसाधिकाएं !
परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी को अनुभव करने में ही दीपावली समान परमानंद है ! – कु. सायली देशपांडे
‘रामनाथी आश्रम में परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी (प.पू. गुरुदेवजी) का निवास होने से वे हम बालसाधकों से प्रतिदिन सूक्ष्म से मिलते हैं । आश्रम में उनका अस्तित्व निरंतर अनुभव होता है । हमारे लिए यह अनुभव ही खरी दीपावली है । दीपावली वर्ष में एक ही बार आती है; परंतु प्रतिदिन भगवान को अनुभव करने में ही दीपावली जितना परमानंद है !’ – कु. सायली देशपांडे (आयु १२ वर्ष, आध्यात्मिक स्तर ६१ प्रतिशत)
साक्षात महाविष्णु के घर (रामनाथी आश्रम) में दीपावली का त्योहार मनाना ही आनंद है ! – कु. शिवानी लुक्क
‘दीपावली त्योहार पर घर जाने की अपेक्षा साक्षात महाविष्णु (परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी) के घर दीपावली का त्योहार मनाने में कितना आनंद है’, इसकी हम कल्पना भी नहीं कर सकते !’ – कु. शिवानी लुक्क (आयु १३ वर्ष, आध्यात्मिक स्तर ५३ प्रतिशत)
सनातन संस्था के दैवी बालक केवल ‘पंडित’ नहीं, अपितु ‘प्रगल्भ’ साधक हैं !
सनातन संस्था में कुछ दैवी बालक हैं । उनका बोलना आध्यात्मिक स्तर का होता है । आध्यात्मिक विषय पर बोलते हुए उनके बोलने में ‘सगुण-निर्गुण’, ‘आनंद, चैतन्य, शांति’ जैसे शब्द होते हैं । ऐसे शब्द बोलने के पूर्व उन्हें रुककर विचार नहीं करना पडता । वे धाराप्रवाह बोलते हैं । ‘उन्हें सुनते रहें’, ऐसा लगता है । सामान्य व्यक्ति के दृष्टिकोण से किसी को ऐसे शब्दों का नियमित उपयोग करने हेतु इन विषयों से संबंधित निरंतर अध्ययन आवश्यक होता है । उस विषय का गहन अध्ययन किया, तो वे विषय बुद्धि से समझ में आते हैं और उनका आकलन होता है । तदुपरांत ‘पांडित्य’ आने पर वे बोलते हैं; परंतु इन बालसाधकों की आयु केवल ८ से १५ वर्ष ही है । ग्रंथों का गहन अध्ययन तो क्या; उन्होंने कभी वाचन भी नहीं किया है । इसलिए उनकी यह परिभाषा उनके विगत जन्म की साधना के कारण उनमें निर्माण हुई प्रगल्भता दर्शाती है ।’ – (परात्पर गुरु) डॉ. आठवले (२८.१०.२०२१)
अभिभावको, दैवी बालकों को साधना में विरोध न करें, अपितु उनकी साधना की ओर ध्यान दें !
‘कुछ दैवी बालकों का आध्यात्मिक स्तर इतना अच्छा होता है कि वे आयु के २० – २५ वें वर्ष में ही संत बन सकते हैं । कुछ माता-पिता ऐसे बालकों की पूर्णकालीन साधना को विरोध करते हैं और उन्हें माया की शिक्षा सिखाकर उनका जीवन व्यर्थ करते हैं । साधक को साधना में विरोध करने जितना बडा दूसरा महापाप नहीं है । यह ध्यान में रखकर ऐसे माता-पिता ने बच्चों की साधना भलीभांति होने की ओर ध्यान दिया, तो माता-पिता की भी साधना होगी तथा वे जीवन-मृत्यु के चक्र से मुक्त होंगे !’ – (परात्पर गुरु) डॉ. आठवले (१८.५.२०१८)