नई दिल्ली – ‘आर्थिक रूप से दुर्बल वर्ग के लिए, आरक्षण के ८ लाख रुपए की वार्षिक आय सीमा किस आधार पर निर्धारित की गई है ?’ सर्वोच्च न्यायालय के इस प्रश्न का केंद्र सरकार द्वारा स्पष्टीकरण न देने के कारण, न्यायालय ने केंद्र सरकार को चेतावनी दी कि, ‘यदि हमें संतोषजनक उत्तर नहीं मिला, तो हम आरक्षण की घोषणा करने वाले अध्यादेश को निलंबित कर देंगे । आप किसी भी संख्या को हवा से निकाल कर उस मानक को निर्धारित नहीं कर सकते । ऐसे मानदंड निर्धारित करते समय, सरकार को जनसांख्यिकीय, समाजशास्त्रीय, साथ ही सामाजिक एवं आर्थिक विवरण की आवश्यकता होती है’, इन शब्दों में न्यायालय ने केंद्र सरकार को सुनाया । केंद्र सरकार का पक्ष रखने वाले अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल के एम नटराज ने आश्वासन दिलाया कि, ‘सरकार आगामी २-३ दिनों में अपना उत्तर प्रस्तुत करेगी ।’ इस पर आगामी सुनवाई २८ अक्टूबर को होगी ।
[PG medical seats] Explain ₹8 lakh annual income limit for EWS quota: Supreme Court to Centre
report by @DebayonRoy #Reservations #SupremeCourt
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— Bar & Bench (@barandbench) October 21, 2021
१. चिकित्सीय ‘नीट’ (नैशनल इलिजिबिलिटी कम एन्टरन्स टेस्ट) अर्थात राष्ट्रीय पात्रता प्रवेश परीक्षा में, आर्थिक रूप से दुर्बल वर्ग के लिए १० प्रतिशत आरक्षण देने के निर्णय को सर्वोच्च न्यायालय में चुनौती दी गई है । ७ अक्टूबर को हुई सुनवाई में, न्यायालय ने केंद्र सरकार को वित्तीय मानदंड के संबंध में स्पष्टीकरण देने वाला शपथ पत्र प्रस्तुत करने का निर्देश दिया था ; परंतु, केंद्र इसमें विफल रही । (न्यायालय के आदेश के पश्चात भी यदि ऐसे मंद गति से काम हो रहा है, तो कोई कल्पना कर सकता है कि सामान्य व्यक्तियों के काम का क्या होता होगा ! – संपादक) इसलिए, न्यायालय ने सरकार को उक्त चेतावनी दी । केंद्र सरकार ने आर्थिक रूप से दुर्बल वर्ग के आरक्षण के लिए आय सीमा निश्चित करते समय ओबीसी आरक्षण के मानदंड को ही ध्यान में रखा था । ग्रामीण एवं शहरी क्षेत्रों में नागरिकों की आय एवं संपत्ति में अंतर होता है, यह सूत्र इस सुनवाई के समय उपस्थित किया गया ।
२. न्यायालय ने आगे कहा कि, ‘ये नीतिगत निर्णय हैं ; परंतु, समाज में संतुलन बनाए रखने के लिए न्यायपालिका को इसमें हस्तक्षेप करना ही पडेगा ।’ ‘क्या आर्थिक रूप से दुर्बलों के लिए आरक्षण के मानदंड निर्धारित करते समय यह संतुलन साध्य किया गया है ? शहरी एवं ग्रामीण नागरिकों की क्रय शक्ति में यदि कोई अंतर हो, तो क्या उसे ध्यान में रखा गया है ? क्या कार्यवाही की पद्धति निर्धारित की गई है ?,’ ये प्रश्न भी न्यायालय ने उठाए ।
३. ‘न्यायालय नीतिगत निर्णयों में हस्तक्षेप नहीं करेगा ; परंतु, केंद्र सरकार को स्पष्ट करना चाहिए, कि इस आरक्षण की संरचना धारा १५ (२) के अधीन है’, ऐसा भी न्यायालय ने उस समय बताया ।