।। श्रीकृष्णाय नमः ।।
अध्यात्मविषयक बोधप्रद ज्ञानामृत…
भक्तिमार्गमें नवधाभक्तिका उल्लेख है । श्रवण, कीर्तन, स्मरण, पादसेवन, अर्चन, वंदन, दास्य, सख्य और आत्मनिवेदन (टिप्पणी), ये हैं वे भक्तिके नौ प्रकार । उनमेंसे
१. पहिले तीन प्रकार : श्रवण, कीर्तन, स्मरण । इनमें ईश्वरका गुणगान और जप मुख्य हैं । इन भक्तियोंमें बाह्य वस्तुओंकी अधिक आवश्यकता न होकर ये भक्तियां अधिक आंतरिक हैं ।
२. दूसरे तीन प्रकार : पादसेवन, अर्चन, वंदन । ये भक्तियां मूर्ति, प्रतिमापर आधारित हैं । ये भक्तियां अधिक बाह्य हैं ।
३. अंतिम तीन प्रकार : दास्य, सख्य और आत्मनिवेदन । इनमें बाह्य वस्तुओंकी आवश्यकता नहीं होती । इनमें केवल आंतरिक भाव महत्त्वका है । भक्तिमार्गमें भावका ही महत्त्व रहता है ।
पहिले दो प्रकारकी भक्तियां भी भावपूर्ण की जा सकती हैं, किन्तु उनमें अन्य क्रियाओंकी ओर भी ध्यान देना पडता है । साथ ही, दिनभर श्रवण और कीर्तन नहीं कर सकते, पादसेवन, पूजा नहीं कर सकते; किन्तु दास होनेकी, शरणागतिकी भावना मनमें दिनभर रह सकती है ।
टिप्पणी – आत्मनिवेदन शब्दसे कुछ लोगोंको लगता है कि इसमें ईश्वरको कुछ बताना होता है । यहां ‘आत्मनिवेदन’का अर्थ ‘बताना’ न होकर ‘पूर्ण शरणागति’ है । आत्मसमर्पण, स्वयंसहित अपना सर्वस्व ईश्वरको अर्पित करना, ऐसा भी उसका अर्थ है ।
– अनंत आठवले ( ४.११.२०२० )
।। श्रीकृष्णार्पणमस्तु ।।
[संदर्भ : सनातन संस्था द्वारा प्रकाशित ‘पू. अनंत आठवलेजी लिखित मराठी ग्रंथ ‘अध्यात्मशास्त्राच्या विविध अंगांचा बोध’ (अर्थात ‘अध्यात्मशास्त्रके विविध अंगोंका बोध’) से]