(कहते हैं), ‘कन्यादान नहीं – कन्यामान कहो !’

मान्यवर’ के वस्त्रों के विज्ञापन में, ‘कन्यादान’ को प्रतिगामी बताने का प्रयास !

 

  • हिन्दू धर्मशास्त्र के साथ-साथ, रीति-रिवाजों और परंपराओं पर आक्रमण करके, हिन्दुओं का बुद्धिभ्रम उत्पन्न करने वाले प्रतिष्ठानों का बहिष्कार करना हिन्दुओं के लिए आवश्यक है !
  •  हिन्दू विरोधी जानते हैं, कि हिन्दू रीति-रिवाजों की आलोचना करने से सहज और व्यापक प्रचार होता है, इसलिए, हिन्दुओं की धार्मिक भावनाओं को प्राय: पैरों तले रौंदा जाता है । पीडित हिन्दुओं को लगता है, कि सरकार को राष्ट्रीय स्तर पर उन लोगों के विरुद्ध कडे कानून बनाने चाहिए, जो हिन्दुओं की आस्था और हिन्दुओं के मन पर अन्यान्य माध्यमों से  आक्रमण करते हैं !
  • हिन्दुओं, जब आपकी धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचे तो रोने के बजाय अंतर्मुखी बनें और अपना व्यक्तित्व ऐसा बनाएं, कि कोई आपको आघात पहुंचाने का साहस न करे !
  •  ‘कन्यादान’ का विरोध करने वाली संस्था, अपना नाम क्यों नहीं बदल लेती? संस्था को यह नहीं भूलना चाहिए, कि हिन्दुओं के सहयोग के फलस्वरूप ही उनका व्यवसाय फल-फूल रहा है ! अत:, संस्था को हिन्दुओं की भावनाओं को ठेस पहुंचाने के कारण सार्वजनिक रूप से क्षमा याचना करनी चाहिए !

मुंबई : हिन्दू संस्कृति में कन्यादान को सबसे बडा पुण्य माना जाता है । वस्त्रों के प्रसिद्ध ब्रांड ‘मान्यवर’ का एक विज्ञापन प्रकाशित किया गया है । इस विज्ञापन के माध्यम से ‘कन्यादान’ के हिन्दू अनुष्ठान को प्रतिगामी माना गया है और इसके बजाय ‘कन्यामान’ शब्द का परामर्श  दिया गया है । इससे हिन्दुओं की भावनाओं को ठेस पहुंची है और सामाजिक माध्यमों पर इसके विरुद्ध अति संताप भी जताया जा रहा है । आलिया भट्ट और ‘मान्यवर’ प्रतिष्ठान का बहिष्कार करने की मांग की जा रही है ।

इस विज्ञापन में, अभिनेत्री आलिया भट्ट दुल्हन के रूप में तंबू में बैठी अपने अतीत की घटनाओं को बताती दृष्टगत हो रही है । उन प्रसंगों के संबंध में उसका कहना , कि उनका परिवार उसे यह अहसास करा रहा है कि, ‘आप किसी अन्य का धन हैं, आपको अपने ससुराल जाना है । उसने कहा, “मुझको दान क्यों दिया जा रहा है ?”, क्या मैं दान करने की वस्तु हूं ?’ आइए अब नवीन अवधारणा प्रस्तुत करते हैं । कन्यादान नहीं, कन्यामान !’

इस विज्ञापन में ‘कन्यादान’ की प्रथा को प्रतिगामी बताया गया है और इसके लिए ‘कन्यामान’ शब्द का परामर्श  दिया गया है । अत:, हिन्दू यह भावना व्यक्त कर रहे हैं, कि हिन्दू रीति-रिवाजों और परंपराओं को बार-बार लक्ष्य किया जा रहा है । कुछ ने विज्ञापन को ‘फेक फेमिनिझम्’ (छद्म नारीवाद) कहा है । उन्होंने कहा, कि कुछ प्रतिष्ठान जानबूझकर हिन्दू धर्म की महान परंपराओं को लक्ष्य कर रहे हैं, किन्तु, अन्य धर्मों की दमनकारी प्रथाओं की अनदेखी करते हैं । इसपर ‘मान्यवर ‘ का दावा है, कि ‘कन्यामान’ विवाह प्रथा को एक नया मोड देता है और दुल्हनों को त्यागने के बजाय उनका सम्मान करने के विचार पर प्रकाश डालता है । (हिन्दू-विरोधी ‘कन्यादान’ संस्था का विरोध, जिसने हिन्दू धार्मिक प्रथा का कोई अध्ययन ही नहीं किया है ! – संपादक, दैनिक सनातन प्रभात)

कन्यादान क्या है ?

कन्यादान का अर्थ है कन्या का दान करना । विवाह के समय, हर पिता अपनी पुत्री को वर को सौंपता है । उसके उपरांत, वर को कन्या की सभी जिम्मेदारियों को निभाना होता है । वेदों और पुराणों के अनुसार, वर को भगवान विष्णु का स्वरूप माना गया है । सनातन संस्कृति के अनुसार, कन्यादान करने वाले माता-पिता भाग्यशाली माने जाते हैं ।