कोरोना प्रतिबंधक टीके फेंकने के प्रकरण में इलाहाबाद उच्च न्यायालय का गंभीर दृष्टिकोण !

पू. (अधिवक्ता) सुरेश कुलकर्णी

१. उत्तर प्रदेश के अलीगढ में कोरोना प्रतिबंधक टीके फेंकने के प्रकरण में परिचारिका (नर्स) नेहा खान पर अपराध प्रविष्ट किया जाना

     ‘उत्तर प्रदेश के अलीगढ जमालपुर भाग में एक प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र में काम करनेवाली परिचारिका (नर्स) नेहा खान ने २९ कोरोना प्रतिबंधक टीके कचरे में फेंक दिए । इस प्रकरण में उसके विरोध में भारतीय दंड विधान की धारा १७६, ४६५, ४२७ और १२० (ब) के अंतर्गत, साथ ही ‘प्रिवेंंशन ऑफ डैमेज टू पब्लिक प्रॉपर्टी एक्ट’ और कोरोना नियंत्रण हेतु बनाए गए ‘पैनडेमिक एक्ट’ इस आपातकालीन कानून की धारा ३ और ४ का उल्लंघन करने का अपराध प्रविष्ट किया गया ।

२. प्रतिभू (जमानत) हेतु आरोपी का इलाहाबाद उच्च न्यायालय में याचिका प्रविष्ट करना और आरोपी के अल्पसंख्यक होने का ढोंग कर कुकृत्य से छूटने की संभावना होना

     इन आरोपों के विरोध में नेहा खान ने सीधे इलाहाबाद उच्च न्यायालय में याचिका प्रविष्ट की । उसने कहा, ‘मेरी कोई भी चूक न होते हुए भी केवल मेरी मानहानि करने के उद्देश्य से मुझ पर जानबूझकर अपराध प्रविष्ट किए गए हैं । मुझ पर प्रविष्ट अपराध के सभी आरोप निराधार हैं तथा मुझे राजकीय हेतु से फंसाया गया है । इन आरोपों के अंतर्गत मुझे बंदी बनाने पर मेरे अधिकारों का हनन होगा । मैं जांच एजेंसियों को सहकार्य करने के लिए तैयार हूं । इसलिए मुझे प्रतिभू (जमानत) पर छोडा जाए ।’ इस प्रतिभू (जमानत) आवेदन में ‘राज्य सरकार मुझे व्यर्थ ही फंसाने का प्रयास कर रही है’, ऐसा भी उसने कहा । उसे लगता होगा कि ‘अल्पसंख्यक होने का ढोंग करने पर इस कुकृत्य से वह छूट सकती है ।’

     इस प्रतिभू (जमानत) आवेदन का विरोध करते हुए उत्तर प्रदेश सरकार ने बताया कि २ विशेषज्ञ डॉक्टरों ने इस प्रकरण की जांच की है । इस जांच में पाया गया कि परिचारिका ने जानबूझकर कोरोना की बहुमूल्य २९ डोस फेंकी है । यह अपराध प्रविष्ट करने के पहले वह घटित हुआ है या नहीं, इसकी गहन जांच की गई है तथा तदुपरांत ही फौजदारी अपराध प्रविष्ट करने का निर्णय लिया गया है ।

३. देश में टीकों की कमी होते हुए परिचारिका द्वारा टीके फेंकना, अत्यधिक गंभीर

     भारत में आई कोरोना महामारी की पहली और दूसरी लहर के कारण देश के लाखों नागरिकों को प्राण गंवाने पडे । केवल उत्तर प्रदेश में कोरोना के कारण २२ हजार से अधिक लोगों की मृत्यु हुई । निरंतर संचारबंदी के कारण देश आर्थिक दृष्टि से अनेक वर्ष पिछड गया । लोगों की उपजीविका आरंभ रखने के लिए सरकार के अरबों रुपए व्यय हो रहे हैं । प्रति १२ वर्ष में एक बार होनेवाले कुंभमेले को भी सीमित किया गया । परशुराम के काल से प्रारंभ कावड यात्रा बंद करनी पडी । ऐसी स्थिति में भारतीय वैज्ञानिकों ने अत्यधिक परिश्रम से देश में टीकों का निर्माण किया । उनके उपयोग की अनुमति प्राप्त होने पर केंद्र सरकार ने सभी राज्य और केंद्रशासित प्रदेशों को नि:शुल्क टीके उपलब्ध कराए । कोरोना की दूसरी लहर में जीवित रहने के लिए टीके के बिना अन्य कोई विकल्प नहीं, यह समझने पर टीकाकरण हेतु लोगों का झुंड उमड पडा ।

     धर्मांधों ने आरंभ से ही इस टीके को विरोध करने की भूमिका अपनाई । उन्होंने पोलियो टीके के संदर्भ में भी ऐसी ही भूमिका अपनाई थी । सरकार चिल्ला-चिल्लाकर कह रही थी, ‘दो बूंद जिंदगी की’; परंतु धर्मांधों ने टीका लेना अस्वीकार किया । अब पूरे विश्व के वैज्ञानिक बता रहे हैं कि ‘तीसरी लहर न आए, इसलिए तत्काल टीकाकरण ही एकमात्र विकल्प है ।’ इसीलिए पूर्ण भारत में तीव्र गति से टीकाकरण किया जा रहा है । ऐसी स्थिति में इस परिचारिका ने दुष्ट उद्देश्य से २९ टीके कचरे में फेंक दिए, अर्थात २९ लोगों को टीकाकरण से वंचित रखा । देश में टीकों की कमी और टीकाकरण की अत्यधिक आवश्यकता होते हुए भी आरोपी ने यह कृत्य किया । यह ध्यान में आने पर तथा अपराध निश्चित होने पर ही दुर्गेश कुमार ने संबंधित परिचारिका के विरोध में अपराध प्रविष्ट किया ।

४. परिचारिका की प्रतिभू अस्वीकार करते हुए न्यायालय द्वारा कठोर शब्दों मे प्रकरण की गंभीरता का बोध करवाना

     पकडे जाने (गिरफ्तारी) से बचने के लिए धर्मांध महिला ने उच्च न्यायालय से सहायता मांगी । उस निवेदन पर उच्च न्यायालय ने अत्यधिक उत्तम निर्णय दिया । न्यायालय ने कहा कि ‘रोग की भयानकता, उपलब्ध सीमित संसाधन, वैज्ञानिकों द्वारा किया गया कठोर परिश्रम, केंद्र सरकार द्वारा सामाजिक लाभ हेतु लिया गया निर्णय, कोरोना योद्धाओं द्वारा अपने परिवार से दूर रहकर दिन-रात किया परिश्रम इत्यादि ध्यान में न लेकर इस परिचारिका ने २९ टीके कचरे में फेंक दिए, अर्थात २९ लोगों को टीके से वंचित रखा । ये २९ व्यक्ति कोरोनावाहक के रूप में समाज में घूमेंगे और अनेक लोगों में यह रोग फैलाएंगे । परिचारिका की यह कृति कोरोना की शृंखला तोडने के प्रयासों को विफल करती है । इसलिए ऐसे व्यक्ति की सहायता हम नहीं कर सकते ।’ इन शब्दों में इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने परिचारिका नेहा खान का प्रतिभू आवेदन रद्द किया ।

५. टीके फेंकने के पीछे परिचारिका का उद्देश्य ढूंढकर आरोपी को कठोर दंड देना आवश्यक !

     न्यायालय द्वारा प्रतिभू अस्वीकार की गई, इतने पर ही समाधान न मानते हुए उत्तर प्रदेश सरकार को इस प्रकरण की गहन जांच कर टीके फेंकने के पीछे परिचारिका का सटीक उद्देश्य ढूंढकर आरोपी को कठोर दंड देना चाहिए, जिससे कोई भी ऐसी कृति पुन: नहीं करेगा । इस कुकृत्य में अन्य किसी का सहभाग हो, तो उन्हें भी कठोर दंड देने के लिए प्रयास किए जाने चाहिए । इस प्रकरण में अच्छी बात यह हुई की संक्षेप में आरोपी की मानसिकता ध्यान में रख फौजदारी अपराध प्रविष्ट किया गया । इसी पद्धति से विभागीय जांच कर ऐसे व्यक्ति को निलंबित करना ही उचित होगा ।’

श्रीकृष्णार्पणमस्तु ।

– (पू.) अधिवक्ता सुरेश कुलकर्णी, संस्थापक सदस्य, हिन्दू विधिज्ञ परिषद और अधिवक्ता, मुंबई उच्च न्यायालय (२६.७.२०२१)