५६ इस्लामी देशों में से केवल पाक और कतर का तालिबान को समर्थन !

तालिबान को रशिया और चीन से आशा

इस्लामी देशों का संगठन तालिबान को समर्थन नहीं दे रहा; लेकिन भारत के मुसलमान संगठन और कुछ नेता और प्रसिद्ध लोग उसको समर्थन देकर हम अधिक कट्टर मुसलमान हैं, यह दिखाने का प्रयास कर रहे हैं, यह ध्यान दें ! – संपादक

नई दिल्ली – अफगानिस्तान पर नियंत्रण करने के बाद तालिबान की ओर से सरकार बनाने के प्रयास चालू है । उसके द्वारा विश्व के देश तालिबान सरकार को मान्यता दें, इसके लिए तालिबान प्रयास कर रहा है । इसके लिए तालिबान की ओर से इस्लामी देशों से संपर्क करने का प्रयास चालू है । अभी तक पाकिस्तान और कतर को छोडकर ५६ इस्लामी देशों में से अन्य किसी भी इस्लामी देश ने खुलेतौर पर तालिबान के नियंत्रण को मान्यता नहीं दी है । स्वार्थ सिद्ध करने के लिए उतावले रशिया और चीन भी तालिबान को मान्यता देने के विषय में स्पष्ट रुप से कुछ बोल नहीं रहे हैं; कारण विश्व के साथ उन्हें अपने देश में भी विरोध का सामना करना पड रहा है । दूसरी ओर अफगानिस्तान के पडोसी देश तजाकिस्तान और कजाकिस्तान इन इस्लामी देशों ने तालिबान के विरोध में सीमा पर सैन्य क्षमता बढाई है ।

५६ इस्लामी देशों के संगठन का महत्व कम !

५६ इस्लामी देशों की ‘आर्गनाइजेशन ऑफ इस्लामिक को-ऑपरेशन (ओआईसी)’ यह बडा संगठन होने पर भी, उसको अब उतना राजकीय महत्व नहीं मिलता । साथ ही अफगानिस्तान के सूत्र पर उसकी भूमिका को महत्व नहीं; कारण अफगानिस्तान में तालिबान के विरोध में लड़ने वाली शक्तियां भी मुसलमान ही हैं । पश्चिम एशिया के देश उसमें सहभागी हुए, तभी कोई एक दृष्टिकोण स्पष्ट होगा ।

खाडी देशों का तालिबान को समर्थन देने से मना 

कतर के अतिरिक्त अन्य सभी खाडी देशों ने तालिबान को समर्थन देने से मना कर दिया है । पिछले २ माह में इन ५६ देशों के अलग अलग संगठनों ने अफगान सरकार के समर्थन में वक्तव्य दिए थे; लेकिन वे अब शांत हैं । दूसरी ओर संयुक्त अरब अमिरात और सौदी अरेबिया जैसे प्रमुख खाडी़ देश अमेरिका की ओर से रहेंगे, ऐसा कहा जा रहा है ।

रशिया और चीन की ओर से स्वार्थ के लिए समर्थन !

रशिया और चीन की ओर से तालिबान को कुछ मात्रा में समर्थन देने के विधान किए होंगे, फिर भी सीधा समर्थन नहीं दिया है । यदि ऐसा समर्थन दिया गया, तो तालिबान की शक्ति बढेगी; लेकिन ये दोनों देश केवल आर्थिक और सामरिक हित देखकर ही अफगानिस्तान को समर्थन देंगे, ऐसी चर्चा है । इस कारण ही रशिया और चीन तालिबान को अप्रसन्न नहीं करना चाहते । सामान्यत: ये दोनों देश स्वयं के देश में धर्मांध और जिहादियों को समाप्त करने के लिए प्रयत्नशील रहते हैं ।