तमिलनाडु के मंदिरों में पुजारियों की सरकारी नियुक्तियों के विरुद्ध न्यायालय जाएंगे ! – डॉ सुब्रह्मण्यम् स्वामी

डॉ स्वामी के अतिरिक्त अधिकांश हिन्दू जनप्रतिनिधि मंदिरों के लिए कानूनी संघर्ष करते हुए नहीं दिखाई देते । ऐसे निष्क्रिय एवं धर्माभिमान-रहित जनप्रतिनिधियों को चुनना, यह हिन्दुओं के लिए लज्जाजनक ! – संपादक

डॉ सुब्रह्मण्यम् स्वामी

नई दिल्ली – तमिलनाडु में सत्तारूढ द्रविड मुनेत्र कळघम (द्रमुक)(द्रविड प्रगति संघ) दल द्वारा मंदिरों के पुजारियों की नियुक्ति सरकारी स्तर से करने का प्रयास किया जा रहा है । भाजपा के वरिष्ठ नेता एवं सांसद डॉ सुब्रह्मण्यम् स्वामी ने इसका विरोध किया है । वर्तमान में, न्यायालय ने नियुक्तियों को स्थगित किया है । इस पृष्ठभूमि पर भाजपा के वरिष्ठ नेता एवं सांसद डॉ सुब्रमण्यम् स्वामी ने ट्वीट कर सत्तारूढ द्रमुक की आलोचना की है । डॉ स्वामी ने कहा है, ‘वर्ष २०१४ में सभानयागार नटराज मंदिर प्रकरण में सर्वोच्च न्यायालय ने मुख्यमंत्री स्टालिन को सबक सिखाया है । हाल ही में द्रमुक ने मंदिर के पुजारियों की नियुक्ति में हस्तक्षेप किया है, इसलिए, मुझे अब न्यायालय जाना आवश्यक हो गया है ।’

क्या है सभानयागार नटराज मंदिर का प्रकरण ?

सभानयागार नटराज मंदिर

१ सहस्र वर्ष प्राचीन सभानयागार नटराज मंदिर (चिदंबरम् नटराज मंदिर) के दीक्षितों (पुजारी) ने १०० वर्षों से अपने धार्मिक अधिकारों के संघर्ष किया हैं । दीक्षितों ने ‘मंदिर का प्रबंधन भक्तों के हाथों में रहना चाहिए’, इस न्याय-संगत मांग के लिए तत्कालीन मद्रास प्रांतीय सरकार एवं स्वतंत्रता के पश्चात तमिलनाडु सरकार के विरुद्ध एक प्रदीर्घ न्यायालयीन संघर्ष किया है । अंततः वर्ष २०१४ में दीक्षितों को सर्वोच्च न्यायालय से न्याय मिला । सर्वोच्च न्यायालय ने तमिलनाडु सरकार के विरुद्ध निर्णय देते हुए दीक्षितों को मंदिर का दायित्व प्रदान किया था । इस प्रकरण में, भाजपा के वरिष्ठ नेता एवं सांसद डॉ सुब्रह्मण्यम् स्वामी ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी ।