साधकों प्रत्येक क्षण साधना के लिए उपयोग कर साधना की फलनिष्पत्ति बढाएं और आध्यात्मिक उन्नति का ध्येय शीघ्र प्राप्त करें !

परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी की कृपा से सभी साधकों को वर्तमान घोर आपातकाल में भी साधना कर जीवनमुक्त होने का अमूल्य अवसर प्राप्त हुआ है । आध्यात्मिक उन्नति द्वारा मनुष्यजन्म सार्थक करने हेतु ध्येय ध्यान में रखकर ‘अपना प्रत्येक क्षण व्यष्टि-समष्टि साधना हेतु दिया जा रहा है ना ?’, प्रत्येक साधक को इसका विचार अंर्तमुख होकर करना चाहिए । ‘समय अमूल्य है । बीता हुआ समय पुनः नहीं मिलता’, इस तत्व के अनुसार साधकों द्वारा एक भी क्षण व्यर्थ न करते हुए साधना के लिए समर्पित होकर प्रयास करना अपेक्षित है ।

श्रीसत्शक्ति (श्रीमती) बिंदा सिंगबाळ

१. सामाजिक माध्यमों का अनुचित उपयोग कर समय व्यर्थ न करें !

कुछ साधक ‘व्हाट्सएप’, ‘फेसबुक’, ‘ट्विटर’, ‘टेलीग्राम’, ‘इन्स्टाग्राम’, जैसे सामाजिक माध्यमों पर सक्रिय रहकर साधना का अमूल्य समय व्यर्थ करते हैं । ‘व्हाट्सएप’ पर ‘परिजनों का गुट’, ‘कार्यालय के सहकर्मियों का गुट’, ‘गृहनिर्माण संकुल के सदस्यों का गुट’ इत्यादि अनेक गुट बनाएं जाते हैं । ऐसे गुटों में कुछ-कुछ समय के उपरांत कोई संदेश आया है क्या ?, यह देखने के लिए समय दिया जाता है । कुछ साधक ऐसे गुटों में ‘सुप्रभात’, ‘शुभ रात्रि’, ‘सुवचन’, ‘विनोद’, ‘वीडियो’ इत्यादि भेज कर स्वयं के साथ अन्यों का समय व्यर्थ करते हैं । ‘व्हाट्सएप’ के साथ ‘फेसबुक’, ‘ट्विटर’, ‘टेलीग्राम’, ‘इन्स्टाग्राम’ इत्यादि सामाजिक माध्यमों पर भी साधकों का अत्याधिक समय व्यर्थ होता है । सामाजिक माध्यमों के कारण साधना की होनेवाली हानि से बचने के लिए निम्न दृष्टिकोण ध्यान में रखें

अ. साधक अनावश्यक संदेश, वीडियो साथ ही स्टेटस देखने में समय व्यर्थ करते हैं, तब उनकी बहिर्मुखता बढती है । साधना हेतु अनावश्यक माया के विचार बढने से साधना व्यय होती है । संदेश भेजनेवाले साधक द्वारा स्वयं के साथ अन्य साधकों का साधना का समय व्यर्थ करने के कारण उसकी साधना की हानि होती है । साथ ही संदेश पढनेवाला साधक भी स्वयं की साधना का अमूल्य समय व्यर्थ करता है, जिससे उसकी साधना की भी हानि होती है ।

आ. साधक द्वारा साधना में उन्नति कर मन के संस्कार न्यून करना अपेक्षित है । सामाजिक माध्यमों पर विनोद, मनोरंजन, समाचार इत्यादि देखने के कारण साधक के मन पर नए संस्कार अंकित होते हैं ।

इ. कुछ साधक रात्रि के समय सामाजिक माध्यमों पर अनावश्यक संदेश पढना अथवा वीडियो देखना इनमें कुछ घंटे व्यय करते हैं, जिससे उनकी साधना भी व्यय होती है । साथ ही रात्रि के समय ऐसे संदेश पढने के कारण नींद आने तक मन पर उसका प्रभाव रहता है और अनिष्ट शक्तियों का आवरण भी आता है । इसका परिणाम अगले दिन सुबह उठने से लेकर पूरे दिन की सेवाओं पर होता है ।

ई. सामाजिक माध्यमों का अत्यधिक उपयोग एक प्रकार का व्यसन ही है । वास्तव में निरंतर भ्रमणभाष का उपयोग करने पर सिरदर्द, गर्दनदर्द इत्यादि शारीरिक कष्टों के साथ ही अनेक मानसिक रोग भी होते हैं । सामाजिक माध्यमों का निरंतर उपयोग करने से कार्यक्षमता अल्प होती है ।

२. सामाजिक माध्यमों के अत्यधिक उपयोग से बचने के लिए कृतिशील प्रयास करें !

सामाजिक माध्यमों का अत्यधिक उपयोग से बचने के लिए साधकों द्वारा कृतिशील प्रयत्न अपेक्षित है । सभी अनावश्यक गुटों से बाहर निकलना, अनावश्यक संदेश वीडियो न देखना, उनका लेनदेन न करना, समष्टि साधना हेतु पूरक सामाजिक माध्यमों का उपयोग करना और अनावश्यक उपयोग से बचने के लिए स्वसूचना लेना अथवा आवश्यकतानुसार दंडपद्धति का उपयोग करना, ऐसे प्रयत्न साधक निष्ठा से करें ।

३. दूरदर्शन एवं यू-ट्यूब के कार्यक्रम देखने में समय व्यर्थ न करें !

ऐसा ध्यान में आया है कि कुछ साधक कोरोना महामारी के काल में छुट्टी का उपभोग करने के समान समय व्यर्थ करते हैं । कुछ साधक आवश्यकता न होते हुए भी दूरदर्शन एवं यू-ट्यूब के विविध कार्यक्रम, शृंंखला, प्रवचन इत्यादि देखने के लिए समय व्यर्थ करते हैं । कुछ साधक यू-ट्यूब पर दी गई अभिनव पाककला देखकर वह बनाने में समय व्यर्थ करते हैं । वास्तव में अभी आपातकाल की तीव्रता अधिक है, ऐसी स्थिति में साधकों से साधना की गति बढाना अपेक्षित है । साधको, आपातकाल में जीवित रहने के लिए साधना करना आवश्यक है । अत: इस प्रकार समय व्यर्थ न करें ।

४. साधना के लिए प्रत्येक क्षण का उपयोग करने हेतु किए जानेवाले प्रयास

अ. इस आपातकाल में परिणामकारक साधना करने का असाधारण महत्व ध्यान में रखकर सभी साधक स्वयं की क्षमता, प्रकृति, परिवार का दायित्व इत्यादि ध्यान में रखकर स्वयं के 24 घंटे का दिनक्रम निश्‍चित करें ।

आ. इस दिनक्रम में दैनंदिन व्यक्तिगत कृतियां, व्यष्टि साधना और सत्सेवा के लिए दिए जाने वाले समय का ईश्‍वर को अपेक्षित ऐसा नियोजन कर अपने उत्तरदायी साधक को दिखाएं ।

इ. ‘नियोजन के अनुसार कृति हो रही है न ?’, इसकी नियमित दैनंदिनी लिखकर गुरुचरणों में आत्मनिवेदन करें और उसका ब्योरा उत्तरदायी साधक को दें ।

५. आपातकाल की तीव्रता को ध्यान में रखकर साधना के लिए अधिक समय दें !

साधको, ‘घोर आपातकाल आरंभ हो गया है । संत भविष्यवक्ताआें के बताए अनुसार संपूर्ण विश्‍व तीसरे महायुद्ध की दहरी पर खडा है । आगामी भीषण काल में साधना करना भी कठिन होगा यह ध्यान में रखकर जागृत अवस्था का प्रत्येक क्षण साधना के लिए किस प्रकार उपयोग करें ?’, इस लगन के साथ प्रयास करें । इस आपातकाल में अपनी साधना की फलनिष्पत्ति बढाने पर शीघ्र आध्यात्मिक उन्नति होगी, इसका विश्‍वास रखें ।

– श्रीसत्शक्ति (श्रीमती) बिंदा सिंगबाळ (९.६.२०२१)

साधकों का समय-नियोजन एवं उत्तरदायी साधकों का दायित्व

१. ‘क्या प्रत्येक साधक की व्यक्तिगत कृति, व्यष्टि साधना और सत्सेवा का 24 घंटे का नियोजन उचित हुआ है ?’, यह सुनिश्‍चित करना उत्तरदायी साधकों का दायित्व है ।

२. उत्तरदायी साधक सहसाधकों के दैनिक नियोजन में आनेवाली समस्याएं सुलझाएं और उन्हें साधना के अगले चरण में ले जाने का प्रयास करें ।

३. उत्तरदायी साधक अन्य साधकों की दैनंदिनी नियमित रूप से जांचे । उसी प्रकार साधक की क्षमता, निपुणता देखकर ‘उसकी फलनिष्पत्ति और साधना की गति में किस प्रकार वृद्धि हो सकती है ?’, इसका अध्ययन करें, उदा. ‘घर की सेवा करने में कितना समय लगना अपेक्षित है ?’, नियतकालिकों का (समाचारपत्रों का) वितरण करने में कितना समय लगना अपेक्षित है ?’, ‘सत्संग की पूर्व सिद्धता हेतु कितना समय आवश्यक है ?’, ‘१ घंटे में कितने ‘केबी’ का टंकलेखन होना अपेक्षित है ?’ इत्यादि का अध्ययन कर उन्हें आवश्यक मार्गदर्शन करें । साधकों को किए मार्गदर्शन के अनुसार उनसे कृति हो रही है ना ? यह सुनिश्‍चित करें ।

४. वृद्ध, रोगी, अल्प प्राणशक्तिवाले साधक अथवा अनिष्ट शक्तियों के तीव्र कष्ट से पीडित साधक स्वयं की क्षमता के अनुसार सेवा और साधना करने का प्रयास करते हैं । उत्तरदायी साधकों को ‘ऐसे साधकों का नियोजन उनकी क्षमतानुसार ईश्‍वर को अपेक्षित हो रहा है ना ?’, इसका भी अध्ययन करना अपेक्षित है ।

– श्रीसत्शक्ति (श्रीमती) बिंदा सिंगबाळ (९.६.२०२१)

बुरी शक्‍ति : वातावरण में अच्‍छी तथा बुरी (अनिष्‍ट) शक्‍तियां कार्यरत रहती हैं । अच्‍छे कार्य में अच्‍छी शक्‍तियां मानव की सहायता करती हैं, जबकि अनिष्‍ट शक्‍तियां मानव को कष्‍ट देती हैं । प्राचीन काल में ऋषि-मुनियों के यज्ञों में राक्षसों ने विघ्‍न डाले, ऐसी अनेक कथाएं वेद-पुराणों में हैं । ‘अथर्ववेद में अनेक स्‍थानों पर अनिष्‍ट शक्‍तियां, उदा. असुर, राक्षस, पिशाच को प्रतिबंधित करने हेतु मंत्र दिए हैं ।’ अनिष्‍ट शक्‍ति के कष्‍ट के निवारणार्थ विविध आध्‍यात्‍मिक उपाय वेदादी धर्मग्रंथों में वर्णित हैं ।