किसी भी धर्म का प्रसार करते हुए अन्य धर्मों का अनादर करने का अधिकार किसी धर्म को नहीं है ! – कर्नाटक उच्च न्यायालय

ईसाई धर्मप्रसारकों द्वारा गीता एवं कुरान के संबंध में अपशब्द कहने के विरुद्ध हिन्दू महिलाने शिकायत प्रविष्ट की थी, यह शिकायतपीछे लेने के लिए आरोपियों द्वारा प्रविष्ट याचिका उच्च न्यायालय ने अस्वीकार कर दी !

ईसाई धर्म प्रचारकों द्वारा अन्य धर्मों, विशेष रूप से हिन्दू धर्म का, विरोध किया जाता है । इसे तुच्छ कहा जाता । इस संबंध में धर्मनिरपेक्षतावादी एवं आधुनिकतावादी कभी अपना मुंह नहीं खोलते हैं, यह ध्यान रखें !

बेंगळूरू (कर्नाटक) – किसी भी धर्म का प्रचार करते समय अन्य धर्मों का अनादर करने का मौलिक अधिकार किसी भी धर्म को नहीं दिया गया है । किसी भी धर्मगुरु अथवा किसी भी व्यक्ति द्वारा अपने धर्म का प्रचार करते समय अन्य धर्मों अनादर न हो, इसका विशेष ध्यान रखा जाना चाहिए, ऐसा मत कर्नाटक उच्च न्यायालय के न्यायमूर्ति एच पी संदेश द्वारा व्यक्त किया गया । उन्होंने धर्म की मानहानि का आरोप लगाने वाली फौजदारी शिकायत निरस्त करने की आरोपियों द्वारा की गर्इ मांग खारिज करते हुए यह वक्तव्य दिया ।

१. एक हिन्दू महिला ने शिकायत की है कि ईसाई धर्म प्रसारक उसके आवास पर आए तथा उन्होंने अन्य धर्मों की अवहेलना की । उन्होंने कहा कि न तो श्रीमद्भगवद्गीता तथा न ही कुरान से शांति प्राप्त होगी । आपातकाल में ईसामसीह के अतिरिक्त अन्य कोई भी संकट से बाहर निकालने के लिए नहीं आएगा । (यदि ऐसा है, तो आज अमेरिका एवं यूरोप में जो लाखों ईसाई कोरोना के कारण मर चुके हैं, उन्हें ईसामसीह ने क्यों नहीं बचाया ? क्या वे इसका उत्तर देंगे ? – संपादक)

२. यह परिवाद प्रविष्ट करने के लिए दिया आदेश परिवर्तित करने के लिए ईसाई धर्म प्रचारक आरोपी उच्च न्यायालय पहुंचे । उन्होंने याचिका में कहा था कि, यह आदेश भारतीय संविधान के अनुच्छेद १४, २१ एवं २५ का उल्लंघन करता है ।

३. इस याचिका पर उच्च न्यायालय ने उल्लेख किया कि ऐसा दिखाई देता है कि, आरोपियों के कथन अन्य धर्मों की धार्मिक भावनाओं को आहत करने के उद्देश्य से किए गए थे । जब ऐसे प्रकरण में तथ्य होता है, तब यह भारतीय दंड संहिता की धारा २९८ (धर्म भावना आहत करना) के अंतर्गत अपराध बन जाता है । इसलिए फौजदारी शिकायत निरस्त करने की याचिका अस्वीकार की जाती है ।