आरक्षण में भी धर्म के आधार पर भेदभाव करने वाली केरल की साम्यवादी (कम्युनिस्ट) सरकार कहती है कि वो साम्यवाद लाएगी ! इससे स्पष्ट होता है कि, साम्यवादियों का साम्यवाद कितना पाखंडी एवं धर्मांध है ! ध्यान दें कि, ऐसे साम्यवादी लोग हिंदुओं को धर्मनिरपेक्षता का पाठ पढाते हैं !
क्या केरल उच्च न्यायालय के इस निर्णय पर तथाकथित धर्मनिरपेक्षतावादी एवं अधोगामी लोग अब मुंह खोलेंगे ?
तिरुवनंतपुरम (केरल) – केरल उच्च न्यायालय ने मुसलमान छात्रों को छात्रवृत्ति में ८० प्रतिशत, तो लैटिन कैथोलिक एवं धर्मान्तरित लोगों को २० प्रतिशत आरक्षण देने के राज्य सरकार के आदेश को निरस्त कर दिया है । न्यायालय ने कहा कि, राज्य सरकार का आदेश कानून की समीक्षा के सामने खडा नहीं रह पाएगा । इसलिए, सरकार को सभी अधिसूचित अल्पसंख्यकों को गुणवत्ता के आधार पर आरक्षण देना चाहिए ।
१. न्यायालय ने कहा कि, सरकार द्वारा दुर्बल घटकों को आरक्षण देना अनुचित नहीं है ; परंतु जब अधिसूचित अल्पसंख्यकों की बात आती है, तो उनके साथ समान व्यवहार किया जाना चाहिए । सरकार को अल्पसंख्यकों के साथ भेदभाव करने का कोई अधिकार नहीं है । इस प्रकरण में राज्य के ईसाईयों को उनकी जनसंख्या के आधार पर आरक्षण मिलने के उनके अधिकार की अनदेखी करते हुए मुसलमानों को ८० प्रतिशत आरक्षण दिया जा रहा है । यह असंवैधानिक है तथा कोई भी कानून इसका समर्थन नहीं करेगा ।
२. अधिवक्ता जस्टिन पल्लीवथुकल ने सरकार के आदेश के विरुद्ध याचिका प्रविष्ट करते हुए कहा था कि, ‘सरकार मुसलमानों को अधिक प्राथमिकता दे रही है । सरकार स्नातक एवं स्नातकोत्तर अध्ययन करने वाले अल्पसंख्यक धर्मों के छात्रों को छात्रवृत्ति प्रदान करती है ।’