परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी के जन्मोत्सव के उपलक्ष्य में साधकों को ‘श्रीसत्यनारायण’ रूप में दिए दर्शन का एसएसआरएफ की साधिका श्रीमती योया वाले द्वारा बनाया सूक्ष्मचित्र और उसका विश्लेषण !

श्रीमती योया वाले

     ११.५.२०१९ को रामनाथी, गोवा के सनातन आश्रम में परात्पर गुरु डॉ. जयंत आठवलेजी का ७७ वां जन्मोत्सव समारोह भावपूर्ण वातावरण में मनाया गया । पू. डॉ. ॐ उलगनाथन्जी के माध्यम से मयन महर्षि की आज्ञानुसार इस समारोह में परात्पर गुरु डॉ. जयंत आठवलेजी ने सनातन के साधकों को ‘श्रीसत्यनारायण’ रूप में दर्शन दिए । एसएसआरएफ की साधिका श्रीमती योया वाले के बनाए सूक्ष्मचित्र और उनका विश्लेषण आगे दिया है ।

१. विष्णुतत्त्व

१ अ. विष्णुतत्त्व का प्रवाह आशीर्वाद के रूप में परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी की ओर आकृष्ट होना

१ आ. विष्णुतत्त्व का निर्गुण वलय परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी के आज्ञाचक्र के स्थान पर तेजस्वी रूप में कार्यरत होना : परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी का ‘ईश्वरीय राज्य की स्थापना करना’ ही समष्टि ध्येय है । इस ध्येय की पूर्ति हेतु उनका संकल्प कार्यरत होने से ऐसा हुआ ।

१ इ. विष्णुतत्त्व का कवच परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी की देह के पास रहना : इसका कारण यह है कि परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी में विष्णुतत्त्व है ।

१ ई. विष्णुतत्त्व का वलय परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी के चेहरे के आस-पास कार्यरत होकर प्रकाशरूप में प्रक्षेपित होना

१ उ. विष्णुतत्त्व का वलय वातावरण में कार्यरत होकर प्रक्षेपित होना : इसलिए ‘हम साक्षात वैकुंठ लोक में हैं’, ऐसी अनुभूति साधकों को हो रही थी ।

२. तारक शक्ति

२ अ. तारक शक्ति का वलय परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी के अनाहतचक्र के स्थान पर कार्यरत होना

२ आ. परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी से वातावरण में तारक शक्ति के कण प्रक्षेपित होना : परात्पर गुरु डॉक्टरजी द्वारा आरंभ किए ‘ईश्वरीय राज्य की स्थापना’ के कार्य में सहभागी साधकों को इस माध्यम से आशीर्वाद मिला । साथ ही परात्पर गुरु डॉक्टरजी द्वारा निरंतर साधकों के कल्याण का विचार करने से साधकों को साधना करने हेतु उत्तम स्वास्थ्य और समृद्धि मिली ।

३. सगुण चैतन्य

३ अ. परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी के अनाहतचक्र के स्थान पर सगुण चैतन्य का वलय कार्यरत होना

३ आ. सगुण चैतन्य का वलय प्रकाशरूप में वातावरण में प्रक्षेपित होना : साधक चैतन्य की अनुभूति ले सकें, इसलिए ऐसा हुआ ।

४. निर्गुण चैतन्य

४ अ. निर्गुण चैतन्य का वलय प्रकाशरूप में वातावरण में प्रक्षेपित होना

५. आनंद

५ अ. आनंद का वलय परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी के चेहरे के आस-पास तेजस्वी रूप में कार्यरत होना : परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी निर्गुणावस्था में होने के कारण ऐसा होता है ।

६. अन्य सूत्र

अ. परात्पर गुरु डॉक्टरजी निरंतर निर्गुणावस्था में रहते हैं । इसलिए स्थूल से वहां होने पर भी उनके स्थान पर केवल श्रीसत्यनारायण देवता का अस्तित्व था । परात्पर गुरु डॉक्टरजी द्वारा आरंभ किए ‘ईश्वरीय राज्य की स्थापना’ के कार्य में स्थूल और सूक्ष्म, दोनों स्तरों पर सहायता करने हेतु सभी देवता सदैव तत्पर रहते हैं ।

आ. श्रीसत्यनारायण आवश्यकतानुसार विशिष्ट शक्ति निर्माण कर सकते हैं । व्यक्ति को शारीरिक और आध्यात्मिक स्तर पर इस शक्ति का लाभ होता है । वर्तमान कलियुग में श्रीसत्यनारायण देवता का तत्त्व (शक्ति) कार्यरत रहना संपूर्ण मानवजाति हेतु अत्यंत लाभदायक है । ‘ईश्वरीय राज्य की स्थापना’ के कार्य में इस समारोह के समय यह शक्ति सूक्ष्म रूप से श्रीचित्शक्ति (श्रीमती) अंजली गाडगीळजी और श्रीसत्शक्ति (श्रीमती) बिंदा सिंगबाळजी की ओर प्रवाहित हुई ।

इ. समारोह में कु. शर्वरी कानस्कर ने परात्पर गुरु डॉक्टरजी के समक्ष नृत्य प्रस्तुत किया । उस समय कु. शर्वरी से अत्यधिक मात्रा में भाव प्रक्षेपित हो रहा था । उसके भाव के कारण यह समारोह देख रहे साधकों का भी भाव जागृत हो रहा था । ‘परात्पर गुरु डॉक्टरजी के समक्ष हम भी नृत्य प्रस्तुत करें’, ऐसी तीव्र इच्छा प्रत्येक साधक के मन में निर्माण हुई ।’

– एसएसआरएफ की साधिका श्रीमती योया वाले (६.५.२०२०)

  • सूक्ष्म : व्यक्ति के स्थूल अर्थात प्रत्यक्ष दिखनेवाले अवयव नाक, कान, नेत्र, जीभ एवं त्वचा, ये पंचज्ञानेंद्रिय हैं । जो स्थूल पंचज्ञानेंद्रिय, मन एवं बुद्धि के परे है, वह ‘सूक्ष्म’ है ।
  • सूक्ष्म ज्ञान संबंधी चित्र : कुछ साधकों को किसी विषय से संबंधित जो अनुभव होता है तथा अंतर्दृष्टि से जो दिखाई देता है, उसके रेखांकन को (कागज पर बनाए चित्र को) ‘सूक्ष्म ज्ञान संबंधी चित्र’ कहते हैं ।
  • सूक्ष्म परीक्षण : किसी घटना के विषय में अथवा प्रक्रिया के विषय में चित्त को (अंतर्मन को) जो अनुभव होता है, उसे ‘सूक्ष्म परीक्षण’ कहते हैं ।
  • इस अंक में प्रकाशित अनुभूतियां, ‘जहां भाव, वहां भगवान’ इस उक्‍ति अनुसार साधकों की व्‍यक्‍तिगत अनुभूतियां हैं । वैसी अनूभूतियां सभी को हों, यह आवश्‍यक नहीं है । – संपादक