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नई दिल्ली – वर्तमान में देश में और विश्व में कोरोना रोकथाम के लिए वैक्सीनेशन चालू है । वैक्सीन के दो डोज इंजेक्शन द्वारा दिए जा रहे हैं; लेकिन जल्द ही नाक के रास्ते स्प्रे मारकर वैक्सीन देने की संभावना निर्माण हुई है । ब्रिटेन में नाक से लिये जाने वाले स्प्रे (नेजेल स्प्रे) कोरोना को रोकने में सफल होते दिख रहा है ।
१. वैंकोवर की ‘सेनोटाईज’ कम्पनी ने यह नाइट्रिक ऑक्साईड नेजल स्प्रे विकसित किया है । कोरोना के मरीज नेजल स्प्रे स्वयं ही अपनी नाक में डाल सकते हैं । यह स्प्रे नाक में डालते ही विषाणुओं का प्रमाण कम हो जाता है । इस स्प्रे के कारण वायरस बढता नहीं है साथ ही फेफडों को कुछ भी हानि नहीं होती है ।
२. कैनाडा और ब्रिटेन में इसका परीक्षण हुआ है । इसमें ७९ कोरोना मरीजों पर दो स्तरों पर प्रयोग किया गया । यह नेजल स्प्रे २४ घंटे के अंदर ९५ प्रतिशत विषाणु कम करने की क्षमता रखता है,ऐसा सामने आया है । ७२ घंटे में ९९ प्रतिशत विषाणु नष्ट हो रहे हैं यह प्रयोग से स्पष्ट हुआ ।
३. वर्तमान में ‘सेनोटाईज’ कम्पनी ने ब्रिटेन और कैनाडा इन देशों ने आपातकालीन मामले में इसका प्रयोग करने की अनुमति मांगी है । इस्रायल और न्यूजीलैंड ने इस स्प्रे को उपचार में लेने की पहले ही अनुमति दे दी है । इस कम्पनी ने पिछले माह से इस्रायल में स्प्रे का उत्पादन चालू किया है । अगले माह से वहां ३० अमेरिकी डॉलर (२ सहस्र २५० रुपये) की कीमत पर एक नेजल स्प्रे बोतल मिलेगी ।
४. अमेरिका की एल्टिम्यून ने नेजल स्प्रे, नाक से दी जाने वाली वैक्सीन विकसित की है । अभी की स्थिति में यह स्प्रे कोरोना रोकने में सफल रहा है । प्रमुखता से छोटे बच्चों में इसका प्रयोग कर संक्रमण को रोका जा सकता है, ऐसा भी निष्कर्ष निकाला गया है ।
५. सेनोटाईज के सीईओ और सहसंस्थापिका डॉ. गिली रेगेव ने बताया कि, भारत में उत्पादन के लिए भागीदार की खोज में है । भारत में इस स्प्रे को ‘मेडिकल डिवाईस’ कहकर अनुमति मिलने की अपेक्षा है । इसके लिए भारत की कुछ बडी दवा कंपनियों के साथ चर्चा चालू है; परंतु भारत सरकार और नियामक से अभी तक संपर्क नहीं हुआ है ।
भारत बायोटेक की ओर से भी नेजल स्प्रे का परीक्षण
भारत में कोवैक्सीन टीका बनाने वाली भारत बायोटेक ,यह कंपनी भी नेजल स्प्रे वैक्सीन का परीक्षण कर रही है । जनवरी माह से परीक्षण चालू है । भारत बायोटेक के संस्थापक डॉ. कृष्णा एल्ला ने बताया कि, नेजल स्प्रे वैक्सीन एक बार ही लेनी पडेगी । इसके लिए कंपनी ने वाशिंगटन विद्यापीठ के साथ समझौता किया है ।