‘सवेरे चाय के साथ बिस्किट खाना प्रायः सभी को अच्छा लगता है महर्षि अध्यात्म विश्वविद्यालय’ द्वारा बाहर की बेकरी में बनाए और सनातन के रामनाथी आश्रम की बेकरी में बनाए बिस्किटों के संदर्भ में प्रयोग किए गए । पहले प्रयोग में साधकों को बाहर की ‘बेकरी’ में बनाए बिस्किट (प्रत्येक को २ बिस्किट) खाने के लिए दिए गए तथा दूसरे प्रयोग में उन्हें सनातन के आश्रम की ‘बेकरी’ में बनाए (प्रत्येक को २ बिस्किट) खाने के लिए दिए गए । दोनों प्रयोगों में साधकों को प्रतीत हुए सूत्र निम्नानुसार हैं । (भाग १)
प्रयोग का निष्कर्ष
कोई पदार्थ बनाते समय उपयोग की जानेवाली वस्तुएं, पदार्थ बनाने का स्थान (उदा. बिस्किट बनाए जाते हैं, वह बेकरी), वहां का वातावरण, पदार्थ बनानेवाला व्यक्ति आदि बातों पर पदार्थ की सात्त्विकता निर्भर होती है । ये सर्व घटक जितने सात्त्विक होंगे, वह पदार्थ उतना सात्त्विक बनता है । आश्रम की बेकरी में बनाए बिस्किट सात्त्विक होने के कारण उन्हें खाने पर साधकों को अच्छी अनुभूतियां हुईं ।’
– श्रीमती मधुरा धनंजय कर्वे, महर्षि अध्यात्म विश्वविद्यालय, गोवा. (१२.१२.२०२०)
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आधुनिक आहार के दुष्परिणामों से बचने के लिए घर में बनाए भारतीय खाद्यपदार्थों का सेवन करें !‘वर्तमान आधुनिक संसार में धर्मशास्त्र में बताए आहार से संबंधित नियमों का पालन न करने से जितनी हानि होती है, उससे अधिक हानि आधुनिक आहारपद्धति स्वीकारने से हो रही है । घर में गृहिणी के हाथ का भोजन अथवा अल्पाहार (नाश्ता) ग्रहण करने से हम दूर होते जा रहे हैं । पाव-केक, बिस्किट, ‘सॉस’ और ‘जैम’ आ गए हैं । कृत्रिम शीतपेय हों; पिज्जा, बर्गर जैसे ‘फास्ट फूड’ हों अथवा ‘कुरकुरे’ जैसे ‘जंक फूड’ हो, (जंक अर्थात फेंकने योग्य) उनके अनेक दुष्परिणाम वर्तमान पीढी पर दिखाई दे रहे हैं । उनमें मोटापा, पाचन तंत्र और श्वसन तंत्र के विकार आदि अनेक शारीरिक बाधाआें का सामना करना पडता है । ऐेसे पदार्थों का सेवन करने से सर्वाधिक हानि यह है कि कष्टदायक शक्ति आकर्षित करनेवाले ये तमोगुणी पदार्थ निरंतर सेवन करनेवाला व्यक्ति अनिष्ट शक्तियों की पीडा की बलि चढ जाता है । आधुनिक आहार के शारीरिक दुष्परिणाम केवल इसी जन्म तक भोगने पडते हैं; परंतु उससे हो सकनेवाली अनिष्ट शक्तियों की पीडा अनेक जन्मों तक पीछा नहीं छोडती । सबको घर में बनाए हुए भारतीय खाद्यपदार्थ खाने चाहिए । वे ताजे, पचने में हल्के और पौष्टिक होते हैं । इसलिए भोजन के प्राकृतिक तत्त्व और जीवनसत्त्व नष्ट नहीं होंगे तथा ये पदार्थ खाने से मानसिक स्वास्थ्य भी अच्छा रहने में सहायता मिलती है ।’ (इससे संबंधित शास्त्रीय कारणमीमांसा सनातन निर्मित ग्रंथ ‘आधुनिक आहार की हानि’ में की गई है ।) |