उत्तर प्रदेशके गाजियाबाद के डासना क्षेत्र में स्थित देवी का मंदिर आजकल चर्चा का विषय बन गया है । देश में कोई बात चर्चा में आना अथवा लाई जाना; अर्थात उससे संबंधित कुछ विवाद निर्माण होने के कारण अथवा अनेक बार वह तैयार किए जानेके कारण ! डासनादेवी मंदिर के संदर्भ में भी वैसा ही है ! कुछ दिनों पूर्व ही आसिफ नामक एक १४-१५ वर्ष के लडके ने मंदिर के प्रांगण में आकर पानी पीने से उसे मंदिर के हिन्दू श्रद्धालुआें ने पीटा, ऐसा समाचार प्रकाशित हुआ । दूसरी ओर जानबूझकर हिन्दुआें को सदा की भांति आरोपी के पिंजरे में खडा किया गया । जिस प्रकार डासना से केवल २२ कि.मी. की दूरी पर स्थित दादरी में साढे पांच वर्ष पूर्व अखलाक नामक मुसलमान की हिन्दुआें द्वारा कथित रूप से हत्या करने पर राहुल गांधी, केजरीवाल से लेकर देश के सभी ‘धर्मनिरपेक्षता’वादी पक्षों के नेताआें ने उसके घर के सामने कतार लगा दी थी, वही अब इस ‘कोमल’ लडके के संदर्भ में हो रहा है ।
इस निमित्त से डासनादेवी मंदिर के मुख्य पुजारी यति नरसिंहानंद सरस्वतीजी ने मंदिर के गत कुछ वर्षों का इतिहास बताया । तथाकथित ‘शांतिपूर्ण’ समाज की ९५ प्रतिशत जनसंख्यावाले डासना क्षेत्र में हिन्दुआें का यह एकमेव मंदिर है । धर्मांधों ने यहां कुछ साधुआें की हत्या की है । मंदिर के अनेक महंतों ने धर्मांधों के भय से पलायन किया है । धर्मांधों ने मंदिर में घुसकर अनेक बार चोरियां की हैं और लाखों रुपए लूट ले गए हैं । पडोस के गांवों से आनेवाली महिला श्रद्धालुआें को छेडना, यह नित्य का हो गया है । इन सभी से क्षुब्ध होकर मंदिर व्यवस्थापन ने ठोस निर्णय लेते हुए मंदिर के बाहर ‘मुसलमानों को मंदिर प्रवेश के लिए मनाही है’, इस आशय का फलक कुछ वर्षों पूर्व लगाया । फलक होते हुए भी ‘आसिफ पानी पीने के बहाने मंदिर के प्रांगण में आया और चोरी करने का प्रयत्न करने लगा । इसीलिए उपस्थित हिन्दुआें ने उसे पीटा, ऐसे यति नरसिंहानंद सरस्वतीजी ने स्पष्ट किया है । यह प्रकरण सामने आते ही फलक का विषय भी प्रसिद्धि के दायरे में आया । इस फलक के कारण अब बडा विवाद निर्माण हो गया है । ‘आसिफ पर सांप्रदायिक अन्याय’ इस प्रकार हिन्दुआें पर लांछन लगानेवाले प्रसारमाध्यम मंदिर का ‘जिहादी आक्रमणकारी’ इतिहास नहीं बता रहे । इसके साथ ही साम्यवादियों से लेकर धर्मनिरपेक्षतावादियों तक, समाजवादियों से आधुनिकतावादियों तक, सभी ने इस विषय पर गपशप करना आरंभ कर दिया है । इससे अनेक प्रश्न उपस्थित होते हैं ।
सर्वधर्म समभाववालों को पेटदर्द क्यों ?
भारत की अधिकांश मस्जिदों में अहिन्दुआें को प्रवेश करने के लिए मनाही है, जो सर्वधर्म समभाववालों को मान्य है; परंतु किसी मंदिर में स्वरक्षा हेतु मुसलमानों को प्रवेश की अनुमति नाकारी, तो इतना शोर क्यों ? केरल के चर्च में महिलाआें को सभ्य पहनावे का नियम स्वीकारा जाता है; परंतु शिर्डी के श्री साईबाबा के मंदिर में प्रवेश करने के लिए मार्गदर्शक सूचनाआें के केवल फलक लगाने पर पेटदर्द क्यों ? हिन्दू धर्म के सर्वोच्च धार्मिक क्षेत्र अयोध्या में मुसलमानों को मस्जिद बनाने के लिए हिन्दुआें ने ५ एकड भूमि दी; परंतु उस पर आभार के चार शब्द भी कोई नहीं बोलता, यह भी ध्यान देनेवाली बात है । अब डासनादेवी मंदिर के बाहर लगाए गए फलक के विवाद से यदि कोई कहे ‘दरगाह में आनेवाले हिन्दुआें को पीटो’, तो आश्चर्य नहीं लगना चाहिए । अर्थात इस निमित्त से जिसका ‘धर्मशिक्षा’ से दूर-दूर का संबंध नहीं और ‘दरगाह में चादर चढाकर माथा टेकनेवाले हिन्दुआें को सबक मिलेगा’, ऐसा किसी हिन्दुत्वनिष्ठ ने यदि कहा, तो उसमें कुछ अनुचित नहीं लगता ।
धर्मांधों के कारण देश की हो रही दयनीय स्थिति
जहां धर्मांधों की संख्या बढती जाती है, वहां वे मुंहजोर हो जाते हैं, यह जागतिक इतिहास है । भारत भी इसका अपवाद नहीं । डासना का उदाहरण देखने पर उसका अनुभव आता है । डासना के धर्मांधों ने उन्हें मंदिर में प्रवेश पर रोक, इसका प्रखर विरोध आरंभ किया है । यहां के बसपा के विधायक अस्लम चौधरी ने निंदनीय भाषाप्रयोग करते हुए स्थानीय हिन्दुआें के लिए पूज्य यति नरसिंहानंद सरस्वतीजी को ‘माफिया’ संबोधित किया । चौधरी ने धमकी दी है कि ‘मैं देखता हूं कि मुझे मंदिर में जाने से कौन रोक सकता है ।’ धर्मांध बहुसंख्यक क्षेत्र की दयनीय अवस्था देश के लगभग प्रत्येक शहर, नगर और गांव के हिन्दुआें ने अनुभव की है । इसका व्यापक रूप पाकिस्तान और बांग्लादेश, ये इस्लामी राष्ट्र हैं ! हिन्दू जागृत नहीं हुआ, तो आनेवाले कुछ वर्षों में भारत की और कितनी हानि होगी, इसकी गणना ही नहीं ।
हिन्दुआें का दबाव गुट तैयार करें !
डासनादेवी मंदिर के प्रकरण में क्या होता है, वह अब देखना होगा; परंतु इस प्रातिनिधिक घटना से एक बडी घटना संबंधी विचारप्रवण होने की आवश्यकता है । मंदिर हिन्दू धर्म की आधारशिला, हिन्दुआें के श्रद्धाकेंद्र और आध्यात्मिक शक्ति प्रदान करनेवाले धार्मिक स्थान हैं । हिन्दू धर्म को नामशेष करने के लिए निकली ‘इकोसिस्टम’ (व्यापक व्यवस्था), उसके मूल स्रोत मंदिरों पर इसीलिए आघात कर रही है । सर्वपक्षीय सरकारों के माध्यम से ही मंदिरों का सरकारीकरण किया जा रहा है । हाल ही में ओडिशा की बीजू जनता दल सरकार ने जगन्नाथपुरी मंदिर के स्वामित्व की ३५ सहस्र एकड भूमि बेचना निर्धारित किया है । तमिलनाडु सरकार के नियंत्रण में ३७ सहस्र मंदिरों की देखभाल करने के लिए केवल एक ही व्यक्ति, तथा ११ सहस्र ९९९ मंदिरों में एक भी पुजारी नहीं । महाराष्ट्र में सरकारीकरण हुए मंदिरों की दयनीय स्थिति तो जगजाहिर है ही । इससे सरकार किसी की भी हो, इस माध्यम से हिन्दू मंदिरों पर हर हाल में आघात किए जाते हैं, यही सत्य है । गत १ सहस्र वर्ष इस्लामी आक्रामकों ने यह किया ही है । आज जनतानियुक्त सर्वपक्षीय सरकारों द्वारा वे लूटे जा रहे हैं । तमिलनाडु समान अनेक राज्यों के असंख्य मंदिर दुर्लक्षित स्थिति में हैं । मंदिरों पर राजनीति की जाती है । कुछ वर्षों पूर्व जम्मू के कठुआ में अल्पसंख्यक की एक लडकी पर हिन्दुआें ने बलात्कार किया, ऐसा कहते हुए अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मंदिरों को लक्ष्य किया गया था । यह भुलाया नहीं जा सकता ।
डासनादेवी मंदिर के विषय के निमित्त से मंदिरों पर आघात रोकने के लिए हिन्दुआें को संगठित होकर कृति करनी चाहिए । हिन्दुआें को अपनी ‘हिन्दू इकोसिस्टम’ निर्माण करने के लिए (आर्थिक, सामाजिक, न्यायिक, सांस्कृतिक और राजनीतिक, ऐसे सर्व स्तरों पर व्यापक हिन्दू-संगठन बनाकर दबाव गुट बनाना) तैयार होना चाहिए ।