अन्सारी और असुरक्षा !

     भारत के भूतपूर्व उपराष्‍ट्रपति हमीद अन्‍सारी की नई पुस्‍तक ‘बाय मैनी ए हैपी एक्‍सिडेंट : रिकलेक्‍शन ऑफ लाइफ’ आजकल सर्वत्र चर्चा का विषय बनी हुई है । एक प्रशासकीय अधिकारी के रूप में अनेक देशों में भारत का राजदूत रहे, अलीगढ मुस्‍लिम विश्‍वविद्यालय का ‘उपकुलपति’ पद सुशोभित कर चुके, राष्‍ट्रीय अल्‍पसंख्‍यक आयोग का अध्‍यक्ष रह चुके और २ बार (१० वर्ष तक) इस सार्वभौम राष्‍ट्र का उपराष्‍ट्रपति पद सुशोभित कर चुके इस महाशय ने अपने सामाजिक जीवन में घटित कुछ प्रसंगों को इस पुस्‍तक के माध्‍यम से अभिव्‍यक्‍ति दी है । देश की वर्तमान राजनीतिक और सामाजिक परिस्‍थिति पर विचार करें, तो इस पुस्‍तक के माध्‍यम से अन्‍सारी ने अपने ढंग से विश्‍लेषण करने का एक प्रयत्न किया है । इस पुस्‍तक के कुछ अंशों से तथा आजकल के अनेक प्रसिद्ध संपादकों और पत्रकारों ने इस विषय में अन्‍सारी से जो भेंटवार्ताएं की हैं, उससे तहलका मचा हुआ है । वैसे, ऐसा होना स्‍वाभाविक ही है !

भारतीय मुसलमान ‘खतरे में’ ?

     वर्ष २०१७ में उपराष्‍ट्रपति पद से निवृत्त अन्‍सारी इस पुस्‍तक में एक स्‍थान पर लिखते हैं, ‘देश के मुसलमान असुरक्षित जीवन जी रहे हैं ।’ एक उत्तरदायी व्‍यक्‍ति के लिए इतना संवेदनशील वक्‍तव्‍य करते समय तथ्‍य और समुचित तर्क देना अत्‍यंत आवश्‍यक होता है। अन्‍सारी के इस वक्‍तव्‍य पर एक पत्रकार ने उनसे भेंटवार्ता में पूछा, ‘क्‍या आपको नहीं लगता कि हिन्‍दू भी असुरक्षित जीवन जी रहे हैं ? ‘मॉब लिंचिंग’ केवल मुसलमानों की नहीं, हिन्‍दुओं की भी होती है । ये हत्‍याएं धर्म देखकर की जाती हैं ?’ ऐसे प्रश्‍न करने पर अन्‍सारी महाशय भेंटवार्ता छोडकर चले गए । अर्थात एक ओर अलीगढ मुस्‍लिम विश्‍वविद्यालय में मोहम्‍मद अली जिना का अनेक वर्षों से लगाया हुआ तैलचित्र निकालने पर उसका विरोध करनेवाले और दादरी में हुई ‘अकलाख’ की हत्‍या पर आकाश सिर पर लेनेवाले; परंतु दूसरी ओर गोरक्षक ‘प्रशांत पुजारी’ की निर्मम हत्‍या पर मौन धारण करनेवाले तत्‍कालीन माननीय उपराष्‍ट्रपति का भेंटवार्ता से उठकर चले जाना, किसी को आश्‍चर्यजनक नहीं लगा ।

भारतीय मुसलमान का सम्‍मान !

     अन्‍सारी कहते हैं कि हम मुसलमान हैं, यह अब महत्त्वपूर्ण नहीं रहा; हमारी व्‍यावसायिक योग्‍यता महत्त्वपूर्ण हो गई है । मैं इस देश का नागरिक हूं अथवा नहीं ? यदि नागरिक हूं, तो नागरिकता के कारण मिलनेवाले सब अधिकार मुझे मिलना चाहिए । अन्‍सारी का यह वक्‍तव्‍य सत्‍य है और इसीलिए उन्‍हें इस ‘देश का दूसरा नागरिक’ होने का सम्‍मान १० वर्ष तक मिला । इसीलिए, एक मुसलमान नेता देश के सर्वाधिक विकसित राज्‍य का मुख्‍यमंत्री बना था, एक मुसलमान वैज्ञानिक का ‘भारत का मिसाइलमैन’ नाम से गौरव किया । उन्‍हें इस देश का राष्‍ट्रपति होने का सम्‍मान भी मिला और सर्वोच्‍च नागरी पुरस्‍कार से सम्‍मानित भी किया गया । इसी प्रकार, सीएए कानून का विरोध कर, मुसलमान नागरिकों को भ्रमित करने की स्‍वतंत्रता भी इस देश का अभिन्‍न घटक अर्थात नागरिक रहने के कारण ही मुसलमानों को मिली है, यह कैसे भुलाया जा सकता है । दूसरी ओर, क्‍या जम्‍मू-कश्‍मीर का मुख्‍यमंत्री बनने का सपना कोई हिन्‍दू देख सकता है ?

गंगा जमुनी तहजीब !

     इसी कश्‍मीर को विशेष अधिकार प्रदान करनेवाले अनुच्‍छेद ३७० को निरस्‍त करने की पद्धति पर अन्‍सारीजी ने आपत्ति जताई है तथा इसे निरस्‍त करना उचित था अथवा अनुचित, इस प्रश्‍न का उत्तर नहीं दिया । देश की अखंडता अबाधित रखनेवाले ऐतिहासिक प्रयत्न पर तथा उसे निरस्‍त करने की पद्धति पर उंगली उठाना अधिक घातक है । देश के ७५ लाख से अधिक नागरिकों को पिछडा रखनेवाले, सहस्रों सैनिकों और निरपराध नागरिकों का बलिदान सहने की परिस्‍थिति में यह अनुच्‍छेद निरस्‍त करना, एक मात्र उपाय था ।  वास्‍तविक, ‘गंगा जमुनी तहजीब’ (गंगा और जमुना के किनारे बसे हिन्‍दुओं और मुसलमानों के बीच की कथित एकता) स्‍वीकारने का उपदेश केवल हिन्‍दुओं को करनेवालों की मानसिकता से आज देश को सतर्क रहने की आवश्‍यकता है । जिस राष्‍ट्र की संस्‍कृति ने स्‍वयं पर १ सहस्र वर्ष तक आघात करनेवाले अल्‍पसंख्‍यकों को सम्‍मान दिया, उन्‍हें इस संस्‍कृति के उपासक बहुसंख्‍यकों पर अत्‍याचार करने का नैतिक अधिकार है भी क्‍या ? आज ‘ग्रेटा’ और ‘रिहाना’ के काल में जहां सब राष्‍ट्रप्रेमी नागरिकों को एकजुट होकर विश्‍व के सबसे बडे लोकतंत्र को कलंकित करनेवाले अंतरराष्‍ट्रीय षड्‍यंत्रों को समूल नष्‍ट करने के लिए संकल्‍पबद्ध होना चाहिए, वहां ऐसे वक्‍तव्‍य और राष्‍ट्रघाती ‘मौन’ इस षड्‍यंत्ररूपी आग में तेल डालने का काम नहीं कर रहे हैं क्‍या ? इसीलिए केंद्रशासन ने अनुच्‍छेद ३७० निरस्‍त करने की नीति का आश्रय लिया था, वह १०० प्रतिशत राष्‍ट्रहित में थी । अन्‍सारी के वक्‍तव्‍य, वैचारिक आतंकवाद का ऐसा प्रकार है, जो जिहादी आतंकवाद से अधिक भयानक है । इसलिए, उनके वक्‍तव्‍यों का सभी विचारमंचों से प्रतिवाद होना आवश्‍यक है । इसके लिए धर्मप्रेमी, राष्‍ट्रप्रेमी और सरकार को कठोर प्रयत्न करने चाहिए !