राजनेताओं को अलग रखकर एक शांतिपूर्ण, कानूनी एवं समावेशी धार्मिक आंदोलन आरंभ करने का निर्णय

दक्षिण भारत के हिन्‍दू मंदिरों पर होनेवाले आघातों
से रक्षा करने के लिए शंकराचार्य, साधु व संतों की बैठक

हिन्‍दुओं के मंदिरों पर होनेवाले आक्रमणों के लिए साधु-संतों को प्रयास करना पडता है, यह हिन्‍दू राजनीतिक नेताओं के लिए लज्‍जाजनक ! मंदिरों की रक्षा व संतों को धर्मशिक्षा हेतु समय देने के लिए हिन्‍दू राष्‍ट्र को पर्याय नहीं!

     तिरुपति (आंध्र प्रदेश) – हिन्‍दू धर्म, मंदिर और संप्रदायों  का रक्षण और संवर्धन करने के लिए रूपरेखा तैयार कर उसे अंतिम रूप देने के लिए तिरुपति मंदिर से ५० कि.मी. दरू पोन्‍नडी गांव में दक्षिण के राज्‍यों के महत्त्वपूर्ण संतों की बैठक जारी है । आंध्र प्रदेश में हाल ही में मंदिरों और देवताओं की मूर्तियां तोडने की अनेक घटनाएं हुई थीं। इस पृष्‍ठभूमि पर इस बैठक का अधिक महत्त्व माना जा रहा है। इस बैठक में साधु और संतों ने पीडित हिन्‍द़ुओं को एकत्र करने एवं आक्रमणों से हिन्‍द़ू धर्म की रक्षा हेतु प्रभावी अल्‍पकालीन एवं दीर्घकालीन योजना बनाने का निर्णय लिया है । बैठक में धार्मिक शक्तियों को समर्थन एवं एकता का महत्त्व व्‍यक्‍त किया गया है । राजनेताओं को अलग रखकर एक शांतिपूर्ण, कानूनी और समावेशी धार्मिक आंदोलन आरंभ करने का निर्णय लिया गया।

     इस बैठक में कांची कामकोटी पीठ के विद्यमान शंकराचार्य श्री विजयेंद्र सरस्‍वती स्‍वामी, श्रृंगेरी मठ के प्रमुख शंकराचार्य श्री भारती तीर्थ स्‍वामी के प्रतिनिधि श्री गौरीशंकर, पेजावर मठ के प्रमुख विश्‍व प्रसन्‍ना तीर्थ स्‍वामी, हंपी विद्यारण्‍य महा संस्‍थान पीठ के प्रमुख श्री विद्यारण्‍य भारती स्‍वामी, पुष्‍पगिरी मठ के प्रमुख श्री विद्याशंकर भारती स्‍वामी, तुनी सच्‍चिदानंद तपोवन प्रमुख श्री सच्‍चिदानंद सरस्‍वती, अहोबीला मठ प्रमुख श्री रंगनथ यतींद्र महा देसीकन के प्रतिनिधि, भुवनेश्‍वरी महापीठ प्रमुख श्री कमलानंद भारती, श्री मामुक्षजून पीठ के प्रमुख श्री सीताराम, ज्‍येष्‍ठ संपादक श्री. कमलानंद भारती एम.वी.आर. शास्‍त्री इत्‍यादि उपस्‍थित थे ।

     आंध्र प्रदेश में पिछले डेढ वर्षों से मंदिरों पर नियमित होनेवाले आक्रमणों के विषय में चिंता व्‍यक्‍त की गई । इसके पीछे राज्‍य शासन की उदासीनता, शासक प्रतिष्‍ठानों की नकारात्‍मक मनोवृत्ति, अल्‍पसंख्‍यकों की चमचागिरी, हिन्‍दू विरोधी प्रशासन का घृणित आचरण, प्रशासन में हिन्‍दू विरोधी कट्टरवारी विचारधारा के लोगों का हस्‍तक्षेप, इन कारणों पर चर्चा की गई । मंदिरों का प्रशासन अहिन्‍दुओं के हाथ में होना, मंदिर में अन्‍य धर्मियों का अवैध प्रचार आरंभ होना, उच्‍च पद पर बैठे अधिकारियों का धर्मनिरपेक्षता का पाठ पढाने का प्रयास, अनुचित प्रलोभन देकर और बलपूर्वक धर्म-परिवर्तन करना, यह सब चिंताजनक है, ऐसा बैठक में बताया गया।  साथ ही उपस्थित मान्‍यवर ने कहा कि ‘धर्म संकट में होते हुए धर्माचार्य शांत नहीं रह सकते । जब विकृत मानसिकता की राजनीतिक पार्टियां चुनाव लडने में अधिक व्‍यस्‍त हुई हैं, उनकी गंदी चालों ने और झगडे ने स्थिति को भ्रमित कर दिया है, जब प्रचारमाध्‍यम, बुद्धिजीवी और नास्तिक समाज और बुरी शक्तियों का सामना करने में असफल रहे हैं, जब लोग भ्रमित हो रहे हैं और जीवन पर उदार होकर मार्गदर्शन चाह रहे हैं, तब साधु-संतों को उनका मार्गदर्शन करना चाहिए । इसलिए हिन्‍दू समाज को जागृत करने का संदेश, उसी प्रकार राज्‍य सरकार और नेताओं को कठोर चेतावनी देना, यह साधु-संतों ने तय किया है ।’

     तेलंगाना उच्‍च न्‍यायालय के पूर्व न्‍यायमूर्ति और आंध्र प्रदेश राज्‍य के न्‍यायिक पूर्वावलोकन समिति के सदस्‍य डॉ.बुलुसु शिवशंकरा राव ने व्‍यक्‍तिगत स्‍तर पर राष्‍ट्रपति रामनाथ कोविंद को एक पत्र के माध्‍यम से आवाहन किया कि ‘संवैधानिक नैतिकता के अनुसार मंदिरों और देवताओं के अधिकारों के संबंध में उचित कार्यवाही करें, जो भारतीय संविधान की आत्‍मा, सिद्धांतों और राजधर्म का हिस्‍सा है।’     (१०.२.२०२१)