चर्च में पादरियों के सामने ‘स्वीकारोक्ति’ (पापों का कबूल नामा) देने की प्रथा बंद की जाए ! – सर्वोच्च न्यायालय को ५ ईसाई महिलाओं की याचिका

कबूलनामे का लाभ उठाकर पादरियों द्वारा महिलाओं का यौन शोषण किया जाता है ! – महिलाओं का आरोप

 

  • पादरियों द्वारा महिलाओं, बच्चों और ननों के यौन शोषण की सैकडों घटनाएं विदेशों के साथ-साथ भारत में भी हुई हैं । इसलिए, यदि ऐसी कोई याचिका अब ईसाई महिलाओं द्वारा प्रस्तुत की जा रही है, तो इसमें आश्चर्य की क्या बात है ?

  • भारतीय चलचित्रों में पादरी हमेशा अच्छे दिखाए जाते हैं, जबकि हिंदू पुजारी हमेशा बुरे चित्रित किए जाते हैं । क्या अब निर्देशक इसे बदलने का साहस दिखाएंगे ?

नई दिल्ली : केरल के, ‘मलंकारा ऑर्थोडॉक्स सीरियन चर्च’ की पांच ईसाई महिलाओं ने केरल की पाप स्वीकारोक्ति की परंपरा (चर्च में पिछले पापों को स्वीकार करने की परंपरा ) के विरोध मे सर्वोच्च न्यायालय में याचिका दायर की है । याचिका में कहा गया है कि, यह परंपरा धर्म और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार के विरुद्ध है और पादरी स्वीकारोक्ति के बदले शारीरिक संपर्क की मांग करते हैं । इस पर, अदालत ने याचिका को और संशोधनों और उद्धरणों के साथ प्रस्तुत करने की अनुमति दी है । मामले में केरल और केंद्र सरकार पर मुकदमा दर्ज किया गया है । महिलाओं के यौन शोषण की घटनाओं पर राष्ट्रीय महिला आयोग ने पहले ही ‘कन्फेशन’ पद्धति को बंद करने का निर्देश दिया था ।

१. सर्वोच्च न्यायालय ने इन ईसाई महिलाओं के वकील, मुकुल रोहतगी से पूछा कि, आपने इस मामले में केरल उच्च न्यायालय में याचिका क्यों नहीं दायर की ? उन्होंने कहा कि, इससे पहले शबरीमला के प्रकरण में अनेक प्रश्न उपस्थित हुए थे, तथा उच्च न्यायालय ने वह प्रकरण सर्वोच्च न्यायालय के ९ जजों की संविधान पीठ को भेजा है । उसे देखते हुए याचिका यहां प्रस्तुत की है ।

२. याचिका में कहा गया है कि, महिलाओं को बयान देते हुए पादरी चुनने की स्वतंत्रता दी जानी चाहिए । ईसाई महिलाओं को ‘पाप स्वीकारोक्ति’ की परंपरा मानने के लिए बाध्य नहीं किया जाना चाहिए ; ऐसा इसलिए है क्योंकि, इस ‘पाप स्वीकारोक्ति’ में दी गई जानकारी के आधार पर पादरी द्वारा संबंधित महिलाओं को ब्लैकमेल करने की घटनाओं का खुलासा हुआ है ।

३. सर्वोच्च न्यायालय ने देश के अटॉर्नी जनरल, के.सी. वेणुगोपाल से इस संबंध में उनकी राय भी मांगी गई है । वेणुगोपाल के अनुसार, मामला मलंनकारा चर्च में जैकबाइट और रूढिवादी समूहों के बीच संघर्ष से उपजा है । संघर्ष अब सर्वोच्च न्यायालय तक पहुंच गया है ।

४. अधिवक्ता मुकुल रोहतगी ने कहा, ऐसे मामले में संवैधानिक अधिकारों के साथ-साथ यह भी देखा जाना चाहिए कि क्या ‘कन्फेशन’ एक बाध्यकारी धार्मिक प्रक्रिया है । इस बात पर भी ध्यान दिया जाना चाहिए कि धार्मिक अधिकारों के आधार पर किसी व्यक्ति की व्यक्तिगत स्वतंत्रता का उल्लंघन पादरी द्वारा किया जा सकता है या नहीं । कुछ पादरी, महिलाओं द्वारा दिए गए बयानों का भी दुरुपयोग करते हैं । न्यायालय ने कहा, ‘इस तरह के मामले व्यक्तिगत अनुभवों के कारणों से भिन्न हो सकते हैं ।’ अधिवक्ता रोहतगी ने कहा, ‘हम उन्हें अपनी याचिका में जोड देंगे ।’

वर्ष २०१८ में केरल उच्च न्यायालय ने स्वीकारोक्ति को रद्द करने की याचिका को निरस्त कर दिया था !

२०१८ में, केरल उच्च न्यायालय ने स्वीकारोक्ति को हटाने की मांग वाली याचिका को निरस्त करते हुए कहा था कि, जब कोई व्यक्ति किसी धर्म में विश्वास करता है, तो इसका मतलब है कि वह उसके अंतर्गत आने वाले सभी नियमों और विनियमों को स्वीकार करता है । स्वीकारोक्ति की प्रक्रिया ईसाई धर्म का एक हिस्सा है । अगर याचिकाकर्ता इससे अप्रसन्न हैं, तो वे उस धर्म को छोड सकते हैं ।

पादरी चर्च में ननों के साथ शारीरिक संबंध रखते हैं ! – पूर्व नन का आरोप

केरल की सिस्टर लुसी ने अपनी आत्मकथा में आरोप लगाया था कि, एक पादरी अपने कमरे में नन को बुलाकर, सुरक्षित यौन संबंध कैसे बनाए जाएं इसका प्रात्यक्षिक दिखा रहा था । उस समय वह नन के साथ शारीरिक संबंध बनाता था । पादरी के विरुद्ध शिकायत दर्ज होने के बाद भी उसके विरुद्ध कोई कार्रवाई नहीं की गई । इस दौरान मेरे सेवानिवृत्त होने तक साथ कई ननों के साथ अत्याचार हुए । मेरी सहकारी नन ने उसके साथ जो हुआ, वह जानकारी दी, अत्यंत भयंकर थी ।