जिसे अध्यात्म की गंध भी नहीं मालूम, उस तृप्ति देसाई द्वारा अध्ययनहीन आलोचना !
किसी व्यक्ति द्वारा पहने गए वस्त्र उसके मन को प्रभावित करते हैं । अल्प व चुस्त वस्त्र पहनने से मन चंचल रहता है । इसलिए, मंदिरों में, साथ ही धार्मिक समारोहों में, भारतीय संस्कृति के अनुसार वस्त्र पहनने की एक विधि है । महिलाओं के लिए नौ गज साडी, जबकि पुरुषों के लिए कुर्ता और धोती सात्विक वस्त्र हैं । धर्मशास्त्र के अनुसार, पुजारी मंदिर में रेशम या कोसे से बने पीतांबर पहनते हैं । जिन को अध्यात्म की गंध भी नहीं मालूम, उन तृप्ति देसाई द्वारा दिया गया वक्तव्य उनकी अज्ञानता को दर्शाता है !
मुंबई : ‘मंदिरों में पुजारी अर्धनग्न होते हैं, फिर भक्तों के कपड़े पर प्रतिबंध क्यों लगाया जाता है ?’ ऐसा प्रश्न, शिरडी के श्री साईं संस्थान से तथाकथित सामाजिक कार्यकर्ता, तृप्ति देसाई ने पूछा है । भक्तों ने शिरडी के श्री साईं देवस्थान में अल्प वस्त्रों का परिधान कर दर्शन के लिए आने की शिकायत की थी । इसीलिए, श्री साईं बाबा देवस्थान ने, मंदिर में सभ्यतापूर्ण कपड़े पहन कर आने की अपील की है । तृप्ति देसाई ने इसकी आलोचना की है । तृप्ति देसाई ने कहा, “भक्तों को पता है कि मंदिर में प्रवेश करते समय किस तरह के कपड़े पहनने होते हैं । भक्तों की आस्था कपड़े से निर्धारित नहीं की जा सकती, अपितु उनकी श्रद्धा महत्वपूर्ण है ।”
(सौजन्य : TV9 Marathi)
मंदिर की वस्त्रसंहिता नग्नता से नहीं; धर्मशास्त्र से संबंधित ! – हिन्दू जनजागृति समिति
सभी मंदिरों में वस्त्रसंहिता लागू करने का मंदिर न्यासियों से आवाहन
मुंबई –शिर्डी के श्री साईबाबा संस्थान ने हाल ही में श्रद्धालुओं को भारतीय संस्कृति के अनुसार सभ्यतापूर्ण वस्त्र परिधान करने का आवाहन किया । इस प्रकार केवल साई संस्थान में ही नहीं; पूरे देश के अनेक मंदिरों में, साथ ही गोवा की चर्च में वस्त्रसंहिता (ड्रेस-कोड) लागू की गई है । मंदिरों में लागू की गई वस्त्रसंहिता नग्नता से नहीं; धर्मशास्त्र से संबंधित है । केवल मंदिर ही नहीं, विविध क्षेत्रों में कौन से वस्त्र पहनने चाहिए, इसके कुछ नियम निर्धारित हैं । वहां कोई नहीं पूछता ‘ऐसे ही वस्त्र क्यों ?’; परंतु हिन्दू देवस्थान यदि ऐसा आवाहन करें, तो तत्काल अन्याय का अर्थहीन शोर मचाया जाता है ।
मंदिर में श्रद्धा से आनेवाले भक्त और धर्मपरंपरा का पालन करनेवाले श्रद्धालु इस आवाहन का स्वागत ही करेंगे, वे इसे सकारात्मक प्रतिसाद देकर आनंद से इसका पालन करेंगे, ऐसा हिन्दू जनजागृति समिति के महाराष्ट्र तथा छत्तीसगढ राज्य के संगठक श्री. सुनील घनवट ने कहा । साथ ही उन्होंने सभी मंदिरों के विश्वस्तों से आवाहन किया है कि साई संस्थान की भांति सभी मंदिरों में भारतीय संस्कृति अनुसार वस्त्रसंहिता लागू की जाए ।
Ghanwat appeals to enforce the dress code in temples https://t.co/129WLc1gtt
— baatami (@baatami) December 2, 2020
श्री घनवट ने प्रेस विज्ञप्ति में आगे कहा कि, मंदिर के पुजारी अर्धनग्न होते हैं, ऐसी अत्यंत अर्थहीन टिप्पणी करनेवाले तथाकथित आधुनिकतावादी, यह भी ढंग से नहीं पढते कि संस्थान ने क्या आवाहन किया है । संस्थान ने कहीं भी तंग कपडों का उल्लेख नहीं किया है । पुरुष-महिला ऐसा उल्लेख नहीं किया है । तब भी अनेक दिन प्रसिद्धि न मिलने के कारण आधुनिकतावादियों ने यह ‘पब्लिसिटी स्टंट’ किया है । संस्थान ने कोई बंधन नहीं डाले हैं । धोती-उपवस्त्र पहननेवाले पुजारियों को अर्धनग्न कहना, बौद्धिक दिवालियापन है । पुलिस का खाकी गणवेश, डॉक्टरों का श्वेत कोट, वकीलों का काला कोट, ये सब धर्मनिरपेक्ष शासन द्वारा बनाए गए ‘ड्रेसकोड’ स्वीकार हैं; परंतु मंदिर द्वारा संस्कृतिप्रधान वस्त्र पहनने का केवल आवाहन भी स्वीकार नहीं । यह आधुनिकतावादियों का भारतीय संस्कृतिद्वेष ही है ।
Why civilised dress must only for devotees, not priests, asks social activist Trupti Desai against the backdrop of Shirdi Saibaba temple trust's appeal to devotees to be dressed in 'civilised manner'
— Press Trust of India (@PTI_News) December 2, 2020
संभाजीनगर के श्री घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग देवस्थान में कोई पुरुष कमर के ऊपर वस्त्र न पहने, ऐसा नियम है । वह महिलाओं के लिए नहीं है । यहां धर्मशास्त्र में महिलाओं के लज्जारक्षण का विचार किया है; परंतु यह समझने की जिनकी इच्छा ही नहीं है, उन्हें क्या कह सकते हैं ? पैरों तक लंबा श्वेत चोगा पहननेवाले ईसाई पादरी पर, तंग पायजमा पहननेवाले मौलवी पर अथवा मुस्लिम महिलाओं द्वारा काला बुरखा पहनने की पद्धति पर टिप्पणी करने का साहस क्या इन आधुनिकतावादियों में है, ऐसा प्रश्न भी घनवट ने किया ।