निजी अस्पतालों में कोरोना पीड़ितों का इलाज करते हुए लूटमार ! – संसदीय समिति

  • यदि इलाज की एक निश्चित राशि होती, तो कई मृत्यु टाली जा सकती थीं ; समिति ने यह दावा किया !

  • समिति ने केंद्र सरकार से सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रणाली में अधिक निवेश करने की अनुशंसा की !

  • केंद्र सरकार को उन अस्पतालों के विरुद्ध कार्रवाई करनी चाहिए, जिन्होंने इस तरह से मरीजों को लूटा है । उन्हें, अस्पतालों के प्रशासन को, रोगियों और मृतक के परिवारजनों को हुए नुकसान की भरपाई करने के लिए बाध्य करना चाहिए !
  • स्वतंत्रता के ७२ वर्षों के उपरांत भी सरकारी अस्पताल अत्याधुनिक सुविधाओं से सज्ज नहीं हैं और सरकार का निजी अस्पतालों पर कोई नियंत्रण नहीं है ; यह आज तक के शासकों के लिए लज्जास्पद है !

नई दिल्ली : कोरोना महामारी की बढ़ती रुग्ण संख्या के अनुपात में सरकारी अस्पतालों में बिस्तरों की संख्या कम है और उपचार के लिए कोई विशेष दिशानिर्देश भी नहीं हैं । इसलिए, निजी अस्पतालों ने मरीजों से बेहिसाब पैसे वसूले हैं । यदि निजी अस्पतालों में कोरोना महामारी के उपचार के लिए एक निश्चित शुल्क लगाया जाता तो कई रोगियों को मृत्यु से बचाया जा सकता था ; ऐसा स्वास्थ्य के संदर्भ में संसदीय समिति ने अपनी रिपोर्ट में कहा है । समिति के अध्यक्ष, राम गोपाल यादव, ने राज्यसभा के सभापति और उपराष्ट्रपति, एम. वेंकैया नायडू, को रिपोर्ट सौंपी है । समिति ने केंद्र सरकार को सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रणाली में अधिक निवेश करने की अनुशंसा की है ।

समिति ने रिपोर्ट में कहा कि,

१. १३० करोड़ की जनसंख्या वाले देश में, स्वास्थ्य देखभाल पर बजट बहुत कम है । साथ ही, भारतीयों की अशक्तता ने उनके लिए कोरोना महामारी का सामना करना कठिन बना दिया है ।

२. सरकार को २०२५ तक स्वास्थ्य सेवा पर सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) का २.५ प्रतिशत तक खर्च करने के प्रयास करने की आवश्यकता है ।

३. सार्वजनिक स्वास्थ्य सुविधाओं की कमी और महामारी संकट को देखते हुए, सार्वजनिक और निजी अस्पतालों के बीच बेहतर समन्वय की आवश्यकता है ।

४. कोरोना के विरद्ध युद्ध में अपने प्राण न्यौछावर करने वाले डॉक्टरों को शहीद का दर्जा दिया जाना चाहिए और उनके परिवारजनों को उचित मुआवजा दिया जाना चाहिए ।