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नई दिल्ली : कोरोना महामारी की बढ़ती रुग्ण संख्या के अनुपात में सरकारी अस्पतालों में बिस्तरों की संख्या कम है और उपचार के लिए कोई विशेष दिशानिर्देश भी नहीं हैं । इसलिए, निजी अस्पतालों ने मरीजों से बेहिसाब पैसे वसूले हैं । यदि निजी अस्पतालों में कोरोना महामारी के उपचार के लिए एक निश्चित शुल्क लगाया जाता तो कई रोगियों को मृत्यु से बचाया जा सकता था ; ऐसा स्वास्थ्य के संदर्भ में संसदीय समिति ने अपनी रिपोर्ट में कहा है । समिति के अध्यक्ष, राम गोपाल यादव, ने राज्यसभा के सभापति और उपराष्ट्रपति, एम. वेंकैया नायडू, को रिपोर्ट सौंपी है । समिति ने केंद्र सरकार को सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रणाली में अधिक निवेश करने की अनुशंसा की है ।
Parl panel submits 1st Covid report; indicates rural under-reporting; low health spending https://t.co/VMx96ilj4h
— Republic (@republic) November 22, 2020
समिति ने रिपोर्ट में कहा कि,
१. १३० करोड़ की जनसंख्या वाले देश में, स्वास्थ्य देखभाल पर बजट बहुत कम है । साथ ही, भारतीयों की अशक्तता ने उनके लिए कोरोना महामारी का सामना करना कठिन बना दिया है ।
२. सरकार को २०२५ तक स्वास्थ्य सेवा पर सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) का २.५ प्रतिशत तक खर्च करने के प्रयास करने की आवश्यकता है ।
३. सार्वजनिक स्वास्थ्य सुविधाओं की कमी और महामारी संकट को देखते हुए, सार्वजनिक और निजी अस्पतालों के बीच बेहतर समन्वय की आवश्यकता है ।
४. कोरोना के विरद्ध युद्ध में अपने प्राण न्यौछावर करने वाले डॉक्टरों को शहीद का दर्जा दिया जाना चाहिए और उनके परिवारजनों को उचित मुआवजा दिया जाना चाहिए ।