राष्ट्रीय शिक्षा नीति – २०२० पर वेबिनार !
ग्वालियर (मध्य प्रदेश) – ‘मन, वचन और कर्म से श्रेष्ठ व्यक्ति का निर्माण, यह ‘राष्ट्रीय शिक्षा नीति’ का लक्ष्य है । आज ‘योग’ जब विदेश से ‘योगा’ बनकर आया, तब भारत में उसका पूर्णतः स्वीकार हुआ । यह मनोभूमिका बदलकर व्यक्ति को उन्नत करनेवाले प्राचीन शिक्षा व्यवस्था का विचार राष्ट्रीय शिक्षा नीति में हो’, ऐसा प्रतिपादन माधव महाविद्यालय, ग्वालियर के हिन्दी विभागाध्यक्ष तथा भारतीय शिक्षा मंडल के प्रांतीय मंत्री डॉ. शिवकुमार शर्माजी ने किया । ‘उन्नत भारत अभियान’ एवं ‘राष्ट्रीय सेवा योजना’ के अंतर्गत ‘राष्ट्रीय शिक्षा नीति – २०२०’ इस विषय पर आयोजित कार्यक्रम को वे संबोधित कर रहे थे । आईटीएम महाविद्यालय के प्रा. नरेंद्रकुमार वर्माजी और प्रा. अर्चना तोमरजी ने इस कार्यक्रम का आयोजन किया । अनेक विद्यार्थियों ने इसका लाभ लिया ।
प्राचीन भारतीय ज्ञान के आधार पर बने राष्ट्रीय शिक्षा नीति !
इस विषय पर हिन्दू जनजागृति समिति के मध्य प्रदेश एवं राजस्थान के समन्वयक श्री. आनंद जाखोटिया ने बताया कि प्राचीन भारतीय ज्ञान विद्यार्थी को शारीरिक, मानसिक, बौद्धिक, भावनिक, आध्यात्मिक सभी दृष्टि से सक्षम करनेवाला था । हमारे प्राचीन गुरुकुल इसका जीता जागता उदाहरण है । विज्ञान-तंत्रज्ञान का जब विध्वंस के लिए उपयोग करने की बुद्धि हो, तो उसे शिक्षा नहीं कह सकते । इसलिए प्रकति और विश्वमंगल की कामना की सीख देनेवाली हमारी प्राचीन शिक्षा देना काल की आवश्यकता है । और ऐसे सभी प्रकार के ज्ञान की हमारे पास कोई कमी नहीं है ।
कार्यक्रम के समापन सत्र में ‘आईटीएम महाविद्यालय’ के डीन ऑफ स्टुडेंट वेल्फेअर डॉ. मनोज मिश्राजी ने कहा कि ‘सभी को साथ में लेकर चलने का विचार हमारी संस्कृति में है । जहां प्रकृति और पर्यावरण का भी हम विचार करते हैं, वहां विश्व का विचार तो निश्चित होगा । यह सभी भाव नई शिक्षा नीति में अपेक्षित है । माधव महाविद्यालय के इतिहास विभागाध्यक्ष डॉ. मनोज अवस्थीजी ने भी राष्ट्रीय शिक्षा नीति का स्वागत किया ।