श्रद्धालुओं से विसर्जन के लिए दान के रूप में ली गई गणेशमूर्तियों को पुनः बेचने का षड्यंत्र !

पुणे महानगरमहानगरपालिका का ‘मूर्तिदान घोटाला’; गणेशभक्तों से बहुत बडी धोखाधडी !

बाईं ओर से गार्गी फाऊंडेशन के संस्थापक-अध्यक्ष श्री. विजय गावडे, राष्ट्र निर्माण संगठन के पश्चिम महाराष्ट्र युवा संपर्क प्रभारी श्री. दयालाल कुमावत, हिन्दू जनजागृति समिति के महाराष्ट्र एवं छत्तीसगढ राज्य संगठक श्री. सुनील घनवट, गणेश मूर्तिकार संगठन के अध्यक्ष श्री. प्रवीण बावधनकर तथा हिन्दू जनजागृति समिति के श्री. मिलिंद धर्माधिकारी

पुणे – विगत कुछ वर्षाें से जब भी गणेशोत्सव आता है, तब पुणे महानगरपालिका प्रशासन पर्यावरण रक्षा के नामपर निरंतर कुछ न कुछ धर्मद्रोही उपक्रम चलाती है । विसर्जन हेतु ‘कृत्रीम कुंड’की धर्मविरोधी संकल्पना के पश्चात उसने ‘अमोनियम बाइकार्बाेनेट’ नामक रसायन में मूर्ति विसर्जन करवाना आरंभ किया । इस वर्ष कोरोना महामारी की पृष्ठभूमिपर उसके द्वारा कूढापेटियों से कृत्रिम कुंड बनाने की बात उजागर हुई । संबंधित ठेकेदारों को काली सूची में डालकर महानगरपालिका यह मान्य किया । अब तो महानगरपालिका ने धर्मद्रोह की सभी सीमाएं लांघते हुए ‘मूर्तिदान’ उपक्रम के अंतर्गत श्रद्धालुओं से दान में ली गई मूर्तियों की पुनर्बिक्री की अनुमति दी है और इसके अंतर्गत सामाजिक संस्थाओं के माध्यम से मूर्तियों की बडी संख्या में पुरानी मूर्तियों की बिक्री की जाने की बात सामने आई है । (उक्त छायाचित्र में दिखाई दे रही गणेशमूर्तियों की दान में दिए जाने के पश्चात पुनर्बिक्री की गई है ।) इस मूर्तिदान उपक्रम के अंतर्गत कितनी मूर्तियां दान में मिलीं, उनमें से कितनी मूर्तियां बेची गईं, उससे मिलनेवाले पैसों का कौन और कहां उपयोग करेगा, इन सभी बातों को महानगरपालिका के आवाहन का विश्वास कर उन्हें विसर्जन के लिए मूर्तिदान करनेवाले श्रद्धालुओं से क्यों छिपाया गया, ऐसे अनेक प्रश्न उठते हैं । यह तो गणेशभक्तों की धार्मिक भावनाओं के साथ खिलवाड करनेवाला, साथ ही श्रद्धालु और मूर्तिकारों के साथ बहुत बडी धोखाधडी करनेवाला ‘मूर्तिदान घोटाला’ ही है । हिन्दू जनजागृति समिति के महाराष्ट्र राज्य संगठक श्री. सुनील घनवट ने पत्रकार परिषद में कहा । इसमें उन्होंने महानगरपालिका प्रशासन का पत्राचार और मूर्तिदान लेनेवाली गैरसरकारी संस्था ‘स्प्लेंडीड विजन’ के पदाधिकारियों का ‘स्टिंग’ वीडियो भी प्रस्तुत किए । इस पत्रकार परिषद में गणेश मूर्तिकार संगठन के अध्यक्ष श्री. प्रवीण बावधनकर, श्री. केशव कुंभार, ‘गार्गी फाऊंडेशन’के श्री. विजय गावडे, ‘राष्ट्र निर्माण’ संगठन के पश्चिम महाराष्ट्र युवा संपर्क प्रभारी श्री. दयावान कुमावत और हिन्दू जनजागृति समिति के श्री. मिलिंद धर्माधिकारी भी उपस्थित थे ।

एक ओर महानगरपालिका ने नदीक्षेत्र में मूर्तिविसर्जन करनेपर बलपूर्वक प्रतिबंध लगाया है, तो दूसरी ओर इसका लाभ उठाकर बडी संख्या में मूर्तियां दान में लेनेवाले सामाजिक संस्थाओं के माध्यम से इन मूर्तियों की पुनर्बिक्री का षड्यंत्र रचा गया है । क्या महानगरपालिका प्रशासन और सामाजिक संस्थाओं को इस प्रकार विसर्जन के लिए दान में ली मूर्तियों को बेचने का अधिकार है ?, इस बिक्री में महानगरपालिका अधिकारियों का ‘कितने परसेंट’ सुनिश्चित हुए हैं, धर्मशास्त्र की दृष्टि से विसर्जन के लिए दान में ली गई मूर्तियां बेचकर अगले वर्ष क्या उनकी पुनः प्रतिष्ठापना की जा सकती है ?, महानगरपालिका को हिन्दुओं के धार्मिक कृत्यों में हस्तक्षेप करने का और गणेशजी को बेचने के अधिकार किसने दिया ?, ऐसे प्रश्न उठाकर ‘महानगरपालिका प्रशासन को इन प्रश्नों के उत्तर हमें देने ही होंगे’, यह मांग भी श्री. घनवट ने की ।

 

कुंड के स्थानपर ‘सोशल डिस्टेंसिंग’ का पालन न कर विसर्जन करने का दृश्य दिखाई देता है, तो नदीक्षेत्र में विसर्जन करनेपर प्रतिबंध किसलिए ? श्री. घनवट ने महानगरपालिका से गणेशोत्सव के १०वें दिन श्रद्धालुओं के लिए गणेशमूर्ति विसर्जन हेतु नदीक्षेत्र खुला करने की मांग की और इस प्रकरण में राज्य के मुख्यमंत्री मा. उद्धवजी ठाकरे से भी शिकायत करने की बात कही । श्री. घनवट ने इस अवसरपर महानगरपालिका प्रशासन के इस घोटाले की जांच कर दोषियों के विरुद्ध कार्यवाही करने की भी मांग की ।

(सौजन्य : InShorts Marathi)

पुणे महामहानगरपालिका ने मूर्तिकारों की जीविकापर ही संकट उत्पन्न किया है ! – श्री. प्रवीण बावधनकर

इस अवसरपर पुणे के गणेश मूर्तिकार संगठन के अध्यक्ष श्री. बावधनकर ने बताया कि एक ओर महानगरपालिका ‘पीओपी’ से बनीं मूर्तियों के कारण प्रदूषण की बात करती है, तो दूसरी ओर ‘पीओपी’से बनीं मूर्तियों की पुनर्बिक्री के लिए सहायता करती है, जो महानगरपालिका की दोहरी नीति है । मूर्तिकारों द्वारा परिश्रम उठाकर बनाई गई मूर्तियां कौडी के भाव में बेचकर महानगरपालिका ने हमारी जीविकापर ही संकट उत्पन्न किया है । दान में ली गईं मूर्तियों को पुनः बेचकर पैसे अर्जित करने के महानगरपालिका और सामाजिक संस्थाओं के इस घोटाले की हम कडी शब्दों में निंदा करते हैं और नागरिकों से यह आवाहन करते हैं कि आपके साथ धोखाधडी करनेवाले महानगरपालिका प्रशासन को कोई भी ‘मूर्तिदान’ न दें, साथ ही समस्त मूर्तिकार भी महानगरपालिका की इस भूमिका का संगठितरूप से विरोध करें ।

क्या है प्रकरण ?

पुणे के विमाननगर क्षेत्र में बिना पंजीकृत ‘स्प्लेंडिड विजन’ नामक सामाजिक संस्था ने महानगरपालिका को पत्र भेजकर दान में ली गई मूर्तियों का संकलन कर अगले वर्ष उनकी पुनर्बिक्री करने की अनुमति मांगी । इस पत्र के प्रत्युत्तर के रूप में महानगरपालिका सहआयुक्त श्री. राजेश बनकर ने ‘स्प्लेंडिड विजन’ को इसकी अनुमति देने का पत्र भी दिया ।

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‘स्प्लेंडिड विजन’ द्वारा मूर्तिकारों से मूर्तियां खरीदने के लिए संपर्क तथा मूर्तिकारों को मूर्तियां बेचकर उसका बील न देकर संस्था के ‘लेटरहेड’पर लिखकर देने के संदर्भ में बताकर उनकी अवैध बिक्री !

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‘स्टिंग’ में ‘स्प्लेंडिड विजन’के पास २० हजार मूर्तियां होने की बात उजागर । एक संस्था के पास यदि इतनी मूर्तियां जमा होती हों, तो अन्य सभी संस्थाओं को मिलाकर कितनी मूर्तियां होंगी और उन मूर्तियों की बिक्री से लाखो रुपए का लेन-देन होता होगा ! इसलिए इस पूरे घोटाले की जांच होना आवश्यक है ।

आपका विश्वसनीय,

श्री. सुनील घनवट,
राज्य संगठक, महाराष्ट्र एवं छत्तीसगढ, हिन्दू जनजागृति समिति
(संपर्क : 70203 83264)