दोनों देशों के सेना के अधिकारियों की बैठक में सहमति
६ जून को हुई चर्चा के उपरांत भी चीन ने सेना को वापस लेनेपर सहमति जताई थी; परंतु उसने ऐसा न करते हुए वहां चौकी बनाई और जब भारत ने उसका विरोध किया, तब वहां घमासान हुआ । अब भी भले ही चीन पीछे हटनेपर सहमत हो रहा हो; परंतु उसपर विश्वास करना उचित नहीं होगा, यह ध्यान में रखकर भारतीय सेना को सतर्क रहना अत्यंत आवश्यक है ।
नई देहली – पूर्वी लद्दाख की गलवान घाटी में भारत एवं चीनी सेना के मध्य हुए घमासान के ७ दिन पश्चात अब चीन ने वहां से अपनी सेना वापस हटाने की तैयारी दर्शाई है । दोनों देशों के मेजर जनरल स्तर के अधिकारियों की ११ घंटे चली बैठक में दोनों देशों ने प्रत्यक्ष नियंत्रणरेखा से पीछे हटनेपर सहमति दर्शाई ।
१. ‘अक्साई हिन्द’ (अक्साई चिन) स्थित नियंत्रणरेखा के निकट चीन में स्थित माल्डो में यह बैठक हुई । इसमें भारत की ओर से १४वें कोअर के कमांडर लेफ्टनेंट जनरल हरिंदर सिंह सहभागी थे । सूत्रों द्वारा दी गई जानकारी के अनुसार इस बैठक में भारत ने ‘पूर्वी लद्दाख से पैगोंग त्सो क्षेत्र से चीनी सैनिकों के पीछे हटने की मांग की ।’ भारतीय सेना ने यह स्पष्टता से बता दिया कि गलवान घाटी में हुई हिंसा एक पूर्व नियोजित षड्यंत्र था । ‘अप्रैल में गलवान घाटी में जो स्थिति थी, उस प्रकार यथास्थिति को बनाए रखा जाना चाहिए’, एसीभी भारत ने मांग की । इस क्षेत्र में चीन की सेना फिंगर ८ से फिंगर ४ तक आगे बढी है । भारत ने चीन को यह स्पष्टता से बता दिया कि चीन को अपनी सेना फिंगर ४ तक पीछे हटानी चाहिए । उसके उपरांत दोनों देशों के सैनिकों ने पूर्वी लद्दाख में तनाव को अल्प करने के सूत्रपर विवादित स्थान से पीछे हटने का निर्णय लिया ।
२. २३ जून को सेनाप्रमुख जनरल मुकुंद नरवणे लेह की यात्रापर गए । वहां वे सेना की १४वीं बटालियन के साथ चर्चा करेंगे । उससे पहले २२ जून को जनरल नरवणे ने देहली में सेना के कमांडरों के साथ बैठक की । उसमें लद्दाख, अरुणाचल प्रदेश, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड इत्यादि सीमा प्रदेशों में चल रहे विवादों की जानकारी ली गई ।
कमांडिंग अधिकारी सहित २० से भी अल्प सैनिकों के मारे जाने की चीन की स्वीकृति
चीन ने पहली बार गलवान घाटी में हुए घमासान में उनके एक कमांडिंग अधिकारी के मारे जाने की स्वीकृति दी है, साथ ही उसने इस घमासान में २० से भी अल्प सैनिकों के मारे जाने की भी बात कही है । चीन के सरकारी समाचारपत्र ‘ग्लोबल टाइम्स’ ने कहा है कि ‘सीमापर संघर्ष न बढे; इसके लिए मृतक सैनिकों की संख्या सार्वजनिक नहीं की जाएगी ।’